पंकज कुमार झा : छिः, आदमी कहीं के ! ..पशुओं में भी एक छठी इंद्री…
चार साल पहले आज के दिन ही यह आंखों-देखी लिखा था।
मुझे लगता है पशुओं में भी एक छठी इंद्री होती है। उन्हें भी आगत का पता चल जाता है।
इसी इतवार की बात है। मजबूरी में ऐसी जगह सब्ज़ी लाने जाना पड़ा जहां मछली-मटन भी साथ बिकता है। हालांकि बकरे के काटने की जगह को शायद परदे में रखा गया होता है।
सब्जी तौला रहा था तबतक एक आदमी को देखा कि वह एक बकरे को बिल्कुल अपने बच्चे की तरह गोद में उठाये ले जा रहा था। वह कसाई इतने प्यार से मेमने को सहलाते हुए ले जा रहा था कि पूछिए मत। शायद ही कभी अपने बेटे से इतना प्यार जताया होगा उसने…
… फिर भी वह मेमना ऐसा चीत्कार कर रहा था कि उसे सुन कर कलेजा मूंह को आ रहा था। लग रहा था मानो छुरी चलने से पहले ही वह प्राणी दहशत से दम तोड़ देगा। बस कुछ ही देर में वह मांसपिंड हम ‘सभ्य’ लोगों के डाइनिंग टेबल पर सज जाना था।
हम तय नही कर पा रहे कि बलात्कार अधिक जघन्य अपराध है या ऐसे कृत्य! रेप के साथ यह तो है कि अमूमन महिलायें नही कर सकती! लेकिन ऐसा दुष्कृत्य??
छिः, आदमी कहीं के!