कौशल सिखौला : विज्ञान और अध्यात्म अलग अलग फील्ड हैं !
कुछ लोग यह मान बैठे हैं कि विज्ञान और अध्यात्म अलग अलग फील्ड हैं !
तभी चंद्रयान 3 की लॉन्चिंग से पूर्व इसरो के प्रमुख एस सोमनाथ मां चेंगलम्मा मंदिर और अन्य वैज्ञानिक छोटा मॉडल लेकर प्रार्थन करने तिरुपति गए तो अंध धर्म निरपेक्षों की मति खराब हो गई !

ऐसा तब भी हुआ था जब कुछ वर्ष पूर्व राफेल खरीदने पर जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राफेल पर स्वस्तिक बनाया था , चंदन तिलक लगाकर मंगल कामना की थी !
मतलब सीधा सा यह कि पढ़े लिखे लोगों , सरकार के मंत्रियों और वैज्ञानिकों को पूजा पाठ करने अथवा परमात्मा के प्रति आस्था व्यक्त करने की कोई जरूरत नहीं !
यह दकियानूसीपन है , जिससे प्रगतिशील लोगों को बचना चाहिए ! सरकारों को बचना चाहिए !
वे कहते हैं कि यदि पूजा पाठ ही करना है तो सनातन धर्म ही क्यों ? केवल पंडित लोग ही क्यों ? धर्मनिरपेक्षता को साबित करने के लिए पंडित , मौलवी , पादरी , ग्रंथी आदि सभी को बुलाइए ?
उनका मानना है कि देश में हिंदू अथवा सनातन सभ्यता मत थोपिए , यह गलत है !
दशकों तक सर्व धर्म प्रार्थना सभाएं हुई हैं , ईश्वर अल्ला तेरो नाम चला है तो अब इसरो वैज्ञानिक क्यों गए तिरूपति मंदिर ?
ऐसे लोगों का मानना है कि देश में हिंदूवाद जबरन थोपा जा रहा है , जब से मोदी सरकार आई है , देश में हिंदू हिंदू होने लगा है !
भाई लोगों की आपत्ति यह भी रही है कि अब किसी राष्ट्रध्यक्ष को ताजमहल क्यों नहीं दिखाया जाता , काशी या साबरमती या महाबलीपुरम क्यों ले जाया जाता है ?
हाल में हरिद्वार की गंगा से करोड़ों कांवड़िए गंगाजल भरकर पैदल अपने अभिष्ठ शिवालयों तक गए हैं । सरकारी आंकड़ों में कांवड़ियों की संख्या चार करोड़ बताई गई है । ऐसा हर साल होता है , साल में दो बार सावन में और फागुन में । गंगा मैया और भगवान भोलेनाथ के प्रति हिंदुओं की इस अनंत अपार आस्था की कोई मिसाल नहीं।
दुःख तब होता है जब कुछ लोग कांवड़ियों को कोसते हैं , गालियां देते हैं , पाखंडी बताते हैं । राजमार्ग बंद होने पर करोड़ों के नुकसान की रूदाली गाते हैं । रास्ते भर लगने वाले सेवा लंगरों को फिजूल खर्ची बताते हैं । बड़ी शर्म आती है ऐसे लोगों पर , जो भारतीय धर्मग्रंथों को अवैज्ञानिक बताते हैं , राम और राम सेतु को काल्पनिक बताते हैं ।
बड़े पदों पर बैठे लोगों की निजी आस्थाएं होती हैं । उसी प्रकार जिस प्रकार आम आदमी की होती हैं । कोई उसे छिपाता है , कोई प्रकट कर देता है । हमारे देश में बहुत से लोग खुद को नास्तिक बताते हैं , पूजा पाठ नहीं करते करते , मंदिरों में जाने और त्यौहार मनाने को ढोंग बताते हैं । ये लोग दशहरा , दिवाली , होली आदि की आलोचना करते हैं , पटाखों और रंगों को फिजूलखर्ची बताते हैं । लेकिन त्यौहारों पर होने वाली छुट्टियों का मजा लेते हैं , देश विदेश की यात्राओं पर निकल जाते हैं , मौज मनाते है ।
हमें उनसे जरा भी नाराजगी नहीं । नाराजगी तब होती है जब उन्हें तिरुपति जाते इसरो वैज्ञानिक बुरे लगते हैं लेकिन कुर्ते पर जनेऊ पहनकर मंदिर जाते चुनावी स्टंट अच्छे लगते हैं । वैज्ञानिक भी मनुष्य हैं । उनकी आस्थाओं का सम्मान कीजिए । इसरो प्रमुख एस सोमनाथ बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने ईश्वर के प्रति अपनी आस्था को छिपाया नहीं , प्रदर्शित किया । निःसंदेह मां चेंगलम्मा और भगवान तिरुपति चंद्रयान मिशन को सफलता प्रदान करेंगे ।
