कौशल सिखौला : अधीर रंजन नेता संसदीय दल.. ममता बनर्जी को प्राथमिकता.. कांग्रेस का परिंदा भी प्रचार करने नहीं गया

मल्लिकार्जुन खड़गे ने अधीर रंजन चौधरी को साफ साफ कह दिया कि कांग्रेस के लिए ममता जरूरी हैं , अधीर रंजन नहीं । खड़गे ने कहा कि कांग्रेस हाईकमान मैं हूं , अधीर रंजन नहीं । ममता बनर्जी इंडी गठबंधन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं , भले की बंगाल में सीट तालमेल न हुआ हो । अधीर बाबू को फटकार लगाते हुए खड़गे ने कहा ने कहा कि अधीर रंजन हमारे लिए ममता से ज्यादा जरूरी नहीं हैं । वे कहीं बाहर जाना चाहें , तो जा सकते हैं । खड़गे ने अधीर रंजन के लिए बाहर निकलने का रास्ता खुद ही साफ कर दिया है।

अब बताइए , बेचारे अधीर रंजन क्या करें ? कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं । वे अभी हाल तक लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता थे । उनके प्रचार के लिए सोनिया , खड़गे , राहुल या प्रियंका तो छोड़िए , कांग्रेस का एक भी परिंदा तक नहीं गया । अब क्या करें अधीर बाबू , खड़गे ने तो ममता को वाक ओवर दे दिया । बस एक ही तमन्ना , राहुल पीएम बनें तो सहयोगियों की कमी न रहे । अतः चढ़ा दी अधीर की बलि । बंगाल में ही नहीं , तालमेल पंजाब में भी नहीं हुआ । देखें , पंजाब का अधीर रंजन कौन बनता है।

आश्चर्य यह भी है कि दिल्ली में कल राहुल भी थे और केजरीवाल भी । लेकिन उन्होंने अलग अलग सभाएं की । कोई एक मंच साझा नहीं किया , यद्यपि दोनों इंडी का हिस्सा हैं । हालांकि राहुल को समर्थन केजरीवाल से भी लेना पड़ेगा । खैर ! राहुल के पीएम बनने के लिए गठबंधन को 270 पार जाना होगा । चले गए तो फिर पता चलेगा कि कौन बनता है पीएम । वैसे कांग्रेस और गठबंधन आश्वस्त हैं कि अबकी बार नैया लग गई पार । पर क्या कहें , मोदी कह रहे हैं कि अबकी बार 400 पार । बड़ा अजीब चुनाव है । किसी को हार का डर ही नहीं । ऐसे में बेचारे अधीर रंजन की कौन सुने । वे अकेले ही ममता की कारगुजारियों को झेलने पर मजबूर हैं।

एक बात समझ लीजिए । गठबंधन के कईं दल मानकर चल रहे हैं कि उनकी जीत पक्की । यूं तो जो चुनाव लड़ता है , आंकड़े पक्ष में हों न हों , तब भी उसे जीत के प्रति आश्वस्त होना ही चाहिए । दुर्भाग्य से इंडी गठबंधन में नेतृत्व का अभाव शुरू से रहा है । अन्यथा एक कार्यक्रम भी बनता और एक फेस का भी चयन होता । सभी दलों के अपने बैनर तले लड़ने से वह बात नहीं आती जो एक ढांचा एक नेता के होते आती है । दूसरे बीजेपी का संगठनात्मक ढांचा इतना मजबूत है कि गठबंधन बिखरा हुआ नजर आ रहा है । इस सबके बावजूद चुनाव तो चुनाव होता है । यहां लोगों का आना जाना लगा रहता है । वक्त आ गया है । ” कौन अबकी बार ” से पर्दा बस हटा ही समझो।

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