NRI अमित सिंघल : राहुल के झूठ का सच..ये है 2014 में UPA सरकार की 56 लाख करोड़ बनाम 2022 में मोदी सरकार की 139 लाख करोड़ रुपयों की उधारी का असल सच
राहुल का ट्वीट किया हुआ पोस्टर – कि वर्ष 2014 में केंद्र सरकार की उधारी 56 लाख करोड़ थी; जो अब 139 लाख करोड़ हो गयी है – बहुत घूम रहा है। कुछ अन्य आंकड़ों को भी ट्वीट किया गया है।
आंकड़ों के साथ एक समस्या है। हम आंकड़ों को बिना संदर्भ जाने हुए प्रयोग करते हैं। हमें यह नहीं पता कि उन आंकड़ों से क्या मापा जा रहा है? किस से तुलना की जा रही है? कितनी समय सीमा के आंकड़ों को मापा जा रहा है? अतः आंकड़े बहुत उद्वेलित कर सकते हैं।
यह प्रश्न स्वाभाविक है कि आंकड़ों से नापा क्या जा रहा है?
राहुल ने डॉलर में आकड़े दिए थे; मैं रुपये में दे रहा हूँ जिससे आधिकारिक आंकड़ों द्वारा स्थिति को समझा जा सके।
उदाहरण के लिए, मोदी सरकार ने public account liabilities – अर्थात, सार्वजनिक खाते की देनदारियां – जिसमे आपकी पेंशन, प्रोविडेंट फंड, न्यायायिक डिपाजिट इत्यादि को भी सरकार पर उधार के रूप में जोड़ना शुरू कर दिया है। कारण यह है कि इन सभी धन को सीधे सरकार के पास जमा किया जाता है जो एक तरह से सरकार पर उधार है और मच्योरिटी के समय चुकाना होगा। अगर इस धन को उधार के रूप में नहीं देखेंगे और इनके सरकारी बही-खाते में “चुकाने” की व्यवस्था नहीं करेंगे, तो ग्रीस की तरह दिवालिया हो जाएंगे, जब किसी समय इन सभी “उधारी” को चुकाने का समय आएगा।
वित्त मंत्रालय के अनुसार, मार्च 2022 अंत में केंद्र के ऊपर 10.28 लाख करोड़ की उधारी सार्वजनिक खाते की देनदारियो के रूप में थी। जून 2014 के आंकड़ों में इस देनदारी को नहीं दिखाया गया था। अनुमान है कि सरकार ईरान से उधारी पर खरीदे गए तेल को भी उधार खाते में दिखा रही है जो सोनिया सरकार छुपा गयी थी।
सोनिया सरकार ने केंद्र की उधारी के लिए केवल घरेलु एवं विदेशी ऋण को जोड़ा था जून 2014 में 48 लाख करोड़ रुपये से कुछ ऊपर है।
मार्च 2022 अंत में 133 लाख करोड़ की उधारी थी जिसमे घरेलू, विदेशी एवं सार्वजनिक खाते की देनदारियो को जोड़ा गया है।
राहुल के झूठ का सच।
लीजिये, सोनिया सरकार के द्वारा वर्ष 2004-2014 (वर्ष 2014 का आंकड़ा दिसंबर 2013 तक का है) तक लिए गए विदेशी ऋण के सरकारी आंकड़े भी मिल गए।
1 अप्रैल 2004 को भारत सरकार के ऊपर 5 लाख करोड़ रुपये (Rs 4,95,459) के विदेशी ऋण का बोझ था। 1 अप्रैल 2014 में यह बोझ पांच गुने से अधिक बढ़कर 27 लाख करोड़ रुपये (Rs 26,82,214) हो गया।
अगर आठ वर्ष के कार्यकाल की तुलना करे तो 1 अप्रैल 2006 में 6 लाख करोड़ रुपये (Rs 6,20,522) का बोझ था जो 1 अप्रैल 2014 में साढ़े चार गुना से अधिक बढ़कर 27 लाख करोड़ रुपये (Rs 26,82,214) हो गया।
अब मोदी सरकार से तुलना कर सकते है।
1 अप्रैल 2014 को 27 लाख करोड़ रुपये (Rs 26,82,214) का विदेशी लोन था जो दिसंबर 2021 में बढ़कर 42 लाख करोड़ रुपये (Rs 41,62,575) हो गया। अर्थात दो गुना भी नहीं बढ़ा।
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अगला प्रश्न स्वाभाविक है कि भारत की जीडीपी क्या थी और है? वर्ष 2013-14 में कुल जीडीपी 113 लाख करोड़ रुपये थी। वर्ष 2021-22 में 236 लाख करोड़ थी।
अर्थात जीडीपी दो गुनी से अधिक हो गयी।
इस वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2013-14 में प्रति व्यक्ति आय 79118 रुपये थी; वर्ष 20121-22 में 150326 रुपये थी।
अर्थात, प्रति व्यक्ति आय दो गुनी हो गयी।
आय दोगुनी हो गयी; जीडीपी दोगुनी हो गयी; लेकिन लोन के सन्दर्भ में यह छुपा दिया जाएगा।
लेकिन इस विषय को एक अन्य लेंस से देखने का प्रयास करते है।
अगर तुलना करनी ही है; तो महान अर्थशास्त्री सोनिया सरकार के चार वर्षो से तुलना की जाए।
दूसरे शब्दों में, सोनिया सरकार के चार वर्षो (जून 2010 से जून 2014 तक) में उधारी की क्या स्थिति थी? इसके पहले के आंकड़े वित्त मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है। अतः, आठ वर्ष के कार्यकाल की तुलना नहीं कर पा रहा हूँ।
आंकड़ों के अनुसार, जून 2010 में सरकार की उधारी 27 लाख करोड़ रूपये थी जो जून 2014 में बढ़कर 48 लाख क्रोई रुपये हो गयी। अर्थात लगभग दोगुना।
वर्ष 2009-10 में प्रति व्यक्ति आय 48189 रुपये थी; जो वर्ष 2013-14 में 79118 रुपये हो गयी थी। अर्थात जहाँ सरकार की उधारी लगभग 90% बढ़ गयी थी; वही आय केवल 60% बढ़ी। ना ही कोरोना झेला; ना ही रूस-उक्रैन संकट।
अगर सोनिया सरकार के आठ वर्षो से तुलना करते, अनुमान है कि स्थिति और भी खराब निकलेगी।
