स्वामी सूर्यदेव : स्नान मंत्र…
ऐसी सार्वभौमिक परमपरायें जिनके बारे में विश्व सोच भी नहीं सकता और आपके यशस्वी पुरखों ने उन्हें लागू किया उन पर तो कम से कम गर्व गौरव होना ही चाहिए, जैसे स्नान किस भाव से करना है और क्या बोलकर,, उसके लिए वेद में पर्याप्त मार्गदर्शन है।
वेद के ऋषि कह रहे हैं कि आपो हि ष्ठा मयोभुवस्तान ऊर्जे दधातन महे रणाय चक्षसे-अथर्ववेद कांड–१–सूक्त–५,,ये जल निश्चित ही मयोभुव–सुख देने वाले हैं,ऊर्जे–हमें ऊर्जा देने हारे, महे रणाय–उत्तम कंठ यानी स्वर देने वाले,चक्षसे–उत्तम नेत्रज्योति देने वाले हैं,इसलिए हम सुबह उठते ही इन्हें प्राप्त होवें।
एक अन्य मंत्र में कह रहे हैं–यो व: शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह न: उशीतिरिव मातरः–अथर्ववेद।
ऋषि कहते हैं कि जो उन जलों का–शिवतमो रस:–सबसे पवित्र कल्याणकारी रस है, उशती मातरः इव–पुत्रों को दूध पिलाने वाली माताओं के समान,तस्य–अपने रस का, इह न:–यहां पर हमें भी, भाजयत:–हम भी उसके भागी बने, यानी ये पवित्रतम जल जो रसों से युक्त हैं और माताओं के दूध के समान शक्तिशाली और पवित्र हैं,हम सुबह उठते ही उसके भागी बनें।
एक और बात ऋषि कह रहे–आप: पृणीत भेषजं वरुथं तन्वे मम ज्योक च सूर्यम दृशे–अथर्ववेद, ये जल, मम तन्वे–मेरे शरीर के लिए वरुथं भेषजं–रोगनिवारक औषध को, पृणीत–प्रदान करें, ज्योक च–बहुत लंबे काल तक, सूर्यम दृशे–सूर्य को देखने की शक्ति प्रदान करें।
कुल मिलाकर पांच मंत्र होते हैं स्नान से पूर्व बोलने के,जिनमें से तीन हमने लिख दिए हैं यहां जो स्नान से पहले सस्वर बोलने चाहिएं। तब देखो यह पृथ्वी पर बहने वाला रस यह अमृत हम सबके लिए कैसा वरदान सिद्ध होता है।
हम भी सुबह सुबह मंत्रपाठ करके ब्रह्मचारी के साथ मां नर्मदा की राह लेते हैं,क्या ही कर पाएगी ठंड,भगवती सदा सहाय हों,अवधूत कृपापात्र बने रहें।
अवधूता कुदरत की गत न्यारी।