ॐ अभय कीजिये.. वेंदो में सूर्यदेव से शत्रु विनाश आह्वान के सूक्त
लोग सोचते हैं कि हम मंत्रो का जप करेंगे और शत्रुओं का नाश हो जाएगा। ऐसा नहीं होता। शत्रु वास्तविक होने चाहिए, ये नहीं होता कि किसी की संपत्ति लूटने या नुकसान के उद्देश्य से आप जप करें और सफलता मिल जाये। मंत्र-सूक्त जप का उद्देश्य गलत होने पर जपकर्ता को ही नुकसान पहुंचाते हैं। वेंदो में सारे सूक्त उद्देश्यपूर्ण जीवन के लिए प्रकृति से आह्वान, स्तुति करते हैं।
जो भी मांगना है जगत के प्रत्यक्षदेव सूर्यदेवता से मांगिये।
ॐ अभय कीजिये..
यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु।
शं नः कुरु प्रजाभ्यो अभयं नः पशुभ्यः।।
– यजुर्वेद ३६.२२।
हे परमपिता अपने ओज, शौर्य,दर्शन-श्रवण-परिपालन,रिपु विनाशक तेज की कृपा मुझपर कर निर्भय कीजिये.
हे परमेश्वर! आप जिस-जिस देश से जगत् के रचना और पालन के अर्थ चेष्टा करते हैं, उस-उस देश से हमको भय से रहित करिए, अर्थात् किसी देश (स्थान) से हमको किञ्चित् भी भय न हो, वैसे ही सब दिशाओं में जो आपकी प्रजा और पशु हैं, उनसे भी हमको भयरहित करें तथा हमसे उनको सुख हो, और उनको भी हम से भय न हो तथा आपकी प्रजा में जो मनुष्य और पशुआदि हैं, उन सबसे जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पदार्थ हैं, उनको आपके अनुग्रह से हमलोग शीघ्र प्राप्त हों, जिससे मनुष्य जन्म के धर्मादि जो फल हैं, वे सुख से सिद्ध हों।।
– ऋग्वेदादि भाष्यभूमिका।
ध्यान के लिए 65 डिग्री कोण पर बने पिरामिड और सूर्य की असीम ऊर्जा से बेहतर कुछ नहीं..छत पर बने पिरामिड में रोज आधे घंटे तक का ध्यान काफी राहत देता है.. किसी मोबाइल गेम,candy crush saga से लाख गुना बेहतर है।
इस ध्यान से आपकी छठी इंद्री जागृत होती है और सामने वाला क्या बोल रहा है,क्या बोलेगा, क्यों बोल रहा है.. की समझ जागृत होती है। सबसे बड़ी बात सपनों के माध्यम से आपको संकेत भी मिलते हैं।
प्रत्यक्ष देव सूर्यदेव को वेदों में जगत की आत्मा कहा गया है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है, यह आज एक सर्वमान्य सत्य है। वैदिक काल में आर्य सूर्य को ही सारे जगत का कर्ता धर्ता मानते थे।
सूर्य का शब्दार्थ है सर्व प्रेरक.यह सर्व प्रकाशक, सर्व प्रवर्तक होने से सर्व कल्याणकारी है। ऋग्वेद के देवताओं कें सूर्य का महत्वपूर्ण स्थान है। यजुर्वेद ने “चक्षो सूर्यो जायत” कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है।
छान्दोग्यपनिषद में सूर्य को प्रणव निरूपित कर उनकी ध्यान साधना से यश,बल,उत्साह, शुभ कार्यो में सफलता प्राप्ति का लाभ बताया गया है।
ब्रह्मवैर्वत पुराण तो सूर्य को परमात्मा स्वरूप मानता है।
प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक ही है।
” राशियां और नक्षत्र हमारे इस आकाश मंडल के पैमाने हैं। उन्हीं के आधार पर सूर्य की संक्रांति या मनाई जाती है। किंतु वास्तव में ऋतुएं धीरे धीरे पीछे की ओर सरक रही है अर्थात हमारा पैमाना आगे खिसक रहा है। इस कारण मकर संक्रांति भी आगे से आगे सरकती जा रही है। कभी यह 21 दिसंबर को हुआ करती थी। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी मकर सक्रांति को हुआ था। यह देश का दुर्भाग्य है कि ज्योतिष विद्या को जानने वाले इसे सही दृष्टिकोण से प्रस्तुत नहीं करते। सुधार को समझना चाहिए। ”
– हरीश चंद्र शर्मा, ज्योतिषी, राजस्थान।
ॐ हिरण्यहस्तो असुरः सुनीथः सुमृळीकः स्ववाँ यात्वर्वाङ् । अपसेधन्रक्षसो यातुधानानस्थाद्देवः प्रतिदोषं गृणानः ॥१०॥
हिरण्य हस्त (स्वर्णिम तेजस्वी किरणो से युक्त) प्राणदाता कल्याणकारक, उत्तम सुखदायक, दिव्यगुण सम्पन्न सूर्यदेव सम्पूर्ण मनुष्यो के समस्त दोषो को, असुरो और दुष्कर्मियो को नष्ट करते(दूर भगाते) हुए उदित होते है। ऐसे सूर्यदेव हमारे लिए अनुकूल हो॥१०॥
४२१.ये ते पन्थाः सवितः पूर्व्यासोऽरेणवः सुकृता अन्तरिक्षे । तेभिर्नो अद्य पथिभिः सुगेभी रक्षा च नो अधि च ब्रूहि देव ॥११॥
हे सवितादेव! आकाश मे आपके ये धूलरहित मार्ग पूर्व निश्चित है। उन सुगम मार्गो से आकर आज आप हमारी रक्षा करें तथा हम (यज्ञानुष्ठान करने वालों) को देवत्व से युक्त करें॥११॥
1-115-1 में -“हे प्रकाशमान सूर्य रश्मियों। सूर्योदय के समय प्रकट हो तुम हमें पापों से निकाल कर बचालो, जो निन्दित है, उससे हमारी रक्षा करो।”
(अद्या देवा उदिता सूर्यस्य निरहंसः पिपृता
निरपद्यात्)
इसीलिए पापों से मुक्ति व सद्बुद्धि की याचना वाला गायत्री मंत्र सविता के ध्यान वाला गायत्री मंत्र सविता के ध्यान के साथ जपा जाता है तथा उद्यते नमः उदायते नमः उदिताय नमः (अथर्व 17-1-22) एवं “अस्तं यते नमोऽस्तमेष्यते नमोऽस्तमिताय नमः।” सूक्तों में सूर्य उदय-प्रकट व अस्त तीनों दशाओं में
नमन के साथ प्रार्थना वेदों के ऋषि करते है। सूर्य देव मानसिक शांति प्रदान करके वे सब प्रकार का सुख प्राप्त कराते है। जो मानव को अभीष्ट हैं और व्रतों (कर्म) को पूर्ण करने का सामर्थ्य देते हैं-
व्रतानि देवः सविता भिरक्षते (ऋ.4-53-4)
यजुर्वेद कहता है कि “सूर्य स्वयंभू है, इस सौर जगत में श्रेष्ठ है, सारे जगत को प्रकाशित कर रहे है। सबको वर्चस और ज्योति देते है। जो भी सूर्य के नियमों का अनुसरण करेगा, वह उनके ही समान वर्चस्वी बनेगा।’
स्वयंभू श्रेष्ठो रश्मिर्वद्योदा असि बचों में देहि।सूर्यस्यावृतमन्ववर्ते(पजु.2-26)
सूर्य देव कर्मयोगी को वाँछित अनुदान देते है।
“सूर्य की प्रेरणा लेकर मनुष्य जिस मात्रा में कर्म करता है, उसी मात्रा में पदार्थ अथवा अर्थ लाभ लेता है”-यह भाव ऋग्वेद की इस उक्ति में आया है।
अयन्न्थानि नूनं जनाः सूर्येण प्रसूता कृणवन्नपाँसि। (7-63-4)
वेदों के उपरोक्त उद्धरण एक ही तथ्य का उद्घाटन करते हैं कि मानव का आदर्श-लक्ष्य सूर्य सविता हो तो वह ब्रह्म का दर्शन ही नहीं उन्हें प्राप्त भी कर सकता है।