राजीव मिश्रा : मुद्रा (करेंसी) और धन (वेल्थ) में अंतर है…
मुद्रा (करेंसी) और धन (वेल्थ) में अंतर है. बहुत से लोग रुपए को, डॉलर को धन समझते हैं. पर वह सिर्फ धन को मापने की इकाई है, लेन देन का माध्यम है. मुद्रा का अपने आप में कोई मूल्य नहीं है, उसके पीछे जो धन है, असली मूल्य उसका है. अमेरिका के पास सम्पदा है, टेक्नॉलॉजी है…तो उसके डॉलर का मूल्य है. रवांडा और बुरुंडी की मुद्रा को कोई नहीं पूछता.
वामपंथी अक्सर समझते हैं कि सरकार हर किसी को अमीर बना सकती है.. बस उसे छाप कर नोट बांट देने हैं. लेकिन जब तक देश में उत्पादकता नहीं होगी, उस रुपए से खरीदने के लिए वस्तुएँ नहीं होंगी, तब तक उस रुपए का कोई मूल्य नहीं होता.
जब ह्यूगो चावेज़ राष्ट्रपति बने तब वेनेजुएला की सरकार हर किसी को घर बैठे पैसे देती थी. पूरी दुनिया के समाजवादियों में चावेज़ की वाहवाही थी. बच्चों को स्कूल की किताबें और यूनिफॉर्म ही मुफ्त नहीं मिलती थी, पॉकेट मनी भी मिला करती थी. उस समय वेनेज़ुएला में तेल के भंडार थे, तेल बेचकर जो पैसे आते थे वह पब्लिक में बांट दिए जाते थे. लोग बिना काम किए अमीर थे. बाकी सारे व्यवसाय, रोजगार उद्योग धंधे बन्द हो गए. सिर्फ तेल व्यापार की सम्पदा थी.
2010 में पूरी दुनिया में तेल की कीमतें कम हो गईं. सरकार की आमदनी कम हो गई, लेकिन सरकार ने नोट छापना और लोगों में बांटना जारी रखा. नतीजा हुआ कि वेनेजुएला की मुद्रा की कीमत शून्य हो गई. नोटों की गड्डियों की कीमत टॉयलेट पेपर से कम हो गई. उनसे खिलौने बनाए जाने लगे. लोग भूखे मरने लगे और देश से भागने लगे.
मुद्रा एक प्रतीक है. उसका मूल्य तभी तक है जबतक उसके पीछे सचमुच का उत्पादन है, सम्पदा है. अपने आप में प्रतीकों का कोई मूल्य नहीं होता. यह बात हर तरह के प्रतीकों पर लागू होती है. यही बात सांस्कृतिक प्रतीकों पर भी लागू होती है. उसके पीछे सांस्कृतिक सम्पदा होनी चाहिए, उसका सतत उत्पादन होना चाहिए, नए ज्ञान की खोज होनी चाहिए. सिर्फ प्रतीकों का मूल्य खोजने से नहीं मिलने वाला..उनकी कीमत वेनेजुएला की करेंसी के बराबर रह जाएगी.
-श्री राजीव मिश्रा के पोस्ट से साभार।
