राजीव मिश्रा : वामपंथ के लिए फेमिनिस्ट आंदोलन की उपयोगिता

मुझे वामपंथ के लिए फेमिनिस्ट आंदोलन की उपयोगिता समझ में आती है.

स्पष्ट समझें, फेमिनिस्ट आंदोलन का अर्थ स्त्री और पुरुष की समानता नहीं है, स्त्री की प्रधानता है. समानता के लिए किसी विशेष आंदोलन की आवश्यकता नहीं थी. स्वतंत्रता अपने आप में समानता को परिभाषित करता है. आप जो हो सकते हैं, वह होने के लिए स्वतंत्र हैं.. सबको समान स्वतंत्रता मिले.. इतनी ही समानता न्यायसंगत है. समान स्वतंत्रता के परिणाम असमान हो सकते हैं, असमान ही होंगे.
अब यदि एक आंदोलन परिणामों की समानता की बात करता है, उन फील्ड्स में भी जहां परिणाम स्वाभाविक रूप से समान होने की संभावना नहीं है तो यह सिर्फ स्वतंत्रता के कॉस्ट पर हो सकता है. जो नीचे है उनकी प्रधानता स्थापित करके ही हो सकता है.

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अनेक फील्ड्स में स्त्रियां स्वभावतः श्रेष्ठ हैं. अन्य कई फील्ड्स हैं जहां पुरुष होना एडवांटेज की बात है. ज्यादातर स्थितियों में समान स्वतंत्रता मिलने पर भी पुरुष होना एडवांटेज की ही बात है. पर यह कॉस्मिक अन्याय दूर करना मनुष्य के बस में नहीं है… आप चाहे इस प्रयास में पूरी सृष्टि को नष्ट कर दें, पर इस अन्याय को उन जगहों से दूर नहीं कर सकते जहां यह नैसर्गिक रूप से है.

पर वामपंथ किसी भी स्थिति में यह समानता लाने को तत्पर है, पुरुष प्रधान समाज को पलट कर एक स्त्री प्रधान समाज बनाने को उद्धत है. क्यों?

यहां पर रोल आता है हिंसा का. यह पूरी सभ्यता, पूरी मानवता एक चीज के आगे असहाय है… हिंसा के आगे. अच्छे से अच्छा विचार कटे हुए सर में नहीं आ सकता. अच्छे से अच्छा कार्य कटे हुए हाथ नहीं कर सकते. हिंसा वह औजार है जो सभ्यता की इस मशीन को रोक देता है. स्वतंत्र मस्तिष्कों को सोचना छोड़कर आज्ञा मानने के लिए बाध्य कर देता है. हिंसा दासता लाती है, और दासता और सभ्यता एक साथ नहीं रह सकते.

कोई भी समाज जो हिंसा का सामना प्रतिहिंसा से करने के लिए तत्पर नहीं है वह दासता स्वीकार करने के लिए उद्धत है. मानव समाज मूलतः इसीलिए पुरुष प्रधान है क्योंकि प्रतिहिंसा की शारीरिक क्षमता सभ्यता के सर्वाइवल की शर्त है… किसी भी युग में. और हिंसा या प्रतिहिंसा की क्षमता सामान्यतः पुरुष में स्त्री से अधिक है यह विवादित नहीं है. पुरुष प्रधान समाज एक कॉन्सपिरेसी नहीं है, एक एक्सीडेंट नहीं है, एक डिजाइन नहीं है… एक एवॉल्वड प्रॉसेस का परिणाम है. जो समाज पुरुष प्रधान नहीं होगा उसपर आसुरी शक्तियां हिंसा से कब्जा कर लेंगी. पुरुष की प्रधानता एक प्रिविलेज नहीं, एक ऑब्लिगेशन है… हिंसा का मुकाबला प्रतिहिंसा से करने का ऑब्लिगेशन…यह बात पुरुष को भी समझनी होगी..

और वामपंथ इसीलिए एक स्त्री प्रधान समाज चाहता है.. वह मूलतः स्त्री प्रधान समाज नहीं चाहता, वह पौरुष विहीन समाज चाहता है जिसपर वह आसानी से कब्जा कर सके, जिसे दास बना सके.

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