देवेंद्र सिकरवार : प्रधान जी की बीयर पार्टी

पंचायत का चौथा सीजन लोगों को इसलिए पसंद नहीं आ रहा क्योंकि लोगों की चेतना में बस चुकी प्रधान जी की मंडली अपेक्षा के विपरीत चुनाव में हार गई है और उससे गहरे भावनात्मक रूप से जुड़ चुके लोगों को वैसा ही महसूस हो रहा है जैसा कि जून 2024 में हम सभी को हुआ था। अस्तु!

मेरी दृष्टि में सीरिज में सबसे अच्छा अभिनय है चन्दन राय यानि विकास का।

Veerchhattisgarh

सीरिज का सबसे मार्मिक सीन व डायलॉग है प्रह्लाद चा का –

“सोना दे के कोई ईंट पत्थर खरीदता है का अम्मा?”

लेकिन पूरी सीरिज में सबसे सुखद दृश्य लगता है प्रधान जी की मण्डली की बीयर पार्टी।

यों तो गाँवों में शराब या बीयर अब तक टैबू की तरह रही है और जो पीते थे वह प्रायः ‘माँस-मच्छी’ भी खाते हुये माने जाते थे और उन्हें परिवार व समाज में अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था लेकिन अब सरकार की मेहरबानियों से गाँव गाँव में ‘ठेके खुल गये हैं।

आखिरकार ‘आधुनिकता की दौड़’ में गांव शहरों से पीछे क्यों कर रहे भले ही शराब पीकर नालियों में लोटने या धुत होकर एक्सीडेंट करने जैसे कांड ही क्यों न हों।

लेकिन प्रधान जी की मंडली की बीयर पार्टी के दृश्यों में एक अजीब सा आकर्षण है। चिकन मटन के स्थान पर पापड़ और साधारण नमकीन के चखने के साथ यह बीयर पार्टी भी कुछ ऐसी सभ्य व भली लगती है कि मेरे जैसा कठोर नॉन एल्कोहलिक भी अवचेतन में उस पार्टी में सम्मिलित हो जाता है।

बीयर पार्टी तो लोग शहरों में भी करते हैं लेकिन वहाँ या तो बीयरबार का शोर शराबा है या फिर किसी दोस्त के घर की मर्यादा। एक ओर घर पहुँचने की जल्दी भी है तो अगले दिन सुबह उठकर ऑफिस जाने की फिक्र या छुट्टी होने पर भी सप्ताह भर के घरेलू जिम्मेदारियां निबटाने की चिंता।

लेकिन पंचायत सीरिज की बीयर पार्टी गाँव के खुले खेत में, शीतल मंद हवा के बीच, नीरव रात्रि में गाँव के फुरसत भरे जीवन का उत्सव प्रतीत होती है क्योंकि ढेरों परिवर्तनों के बाद भी गाँवों में समय मुट्ठी में बंद रेत की तरह नहीं फिसलता।

उनके हर रोज के आठ पहरों के इस शांत जीवन में व्यस्तता व व्यग्रता के पल केवल भोर में होते थे जब हाथ में लोटा लेकर गाँव से बाहर खेतों और बीहड़ के टीलों की ओर लपकते लोग प्रतिदिन एक सहज हास्य दृश्य उपस्थित करते थे।

अब हर घर में शौचालय बनने के कारण उनके जीवन की यह एकमात्र व्यस्तता भी मोदी जी ने छीन ली है।

लेकिन गाँवों में टीवी व मोबाईल के कारण अघियाने की परम्परा के समाप्त हो जाने से सहमिलन की परम्परा संकीर्णित होने लगी है।

ऐसे में सीमित समूहों में ही सही इस बीयर पार्टी के दृश्य में उसी सामाजिकता का खंड दर्शन कर उस स्मृतिजन्य नॉस्टेल्जिया का स्फुरण होता है जो कभी हमारे जीवन के उल्लास के क्षण होते थे।

इस दृश्यजनित नॉस्टेल्जिया का एक कारण मेरे संदर्भ में सम्भवतः मेरी घोर एकांतिकता भी है क्योंकि मेरा सुखद बाल्यकाल मातुलग्राम के साथ बहुत पीछे छूट गया, कुछ बालमित्र बिछड़ गये और कुछ को कोविड लील गया।

अपने जीवन के सबसे शांत व सुखद पलों की स्मृति और उसे फिर से जीने की चाह ही इस दृश्य को इतना सम्मोहक बनाती है।

लेकिन बीता समय कभी लौट कर नहीं आता।

-प्रधान जी चुनाव हारने पर दुःख व क्षोभ से भरे हुये हैं।
-बनराकस, बिनोद और माधव अपनी क्षुद्र प्रवृत्ति के अनुरूप विजयदम्भ से भरे हैं।
-विकास और सचिव आने वाले दुष्कर समय की सोचकर डरे हुये हैं।
-केवल प्रहलाद चा निर्भय हैं क्योंकि उनके पास खोने को कुछ है ही नहीं।

भूषण उर्फ वनराकस की धूर्तताओं एवं कॉलेज पाने में असफल सचिव जी की हालत देखकर अब सम्भवतः प्रहलाद चा विधायकी का चुनाव दम से लड़ेंगे।

इसी बीच बनराकस ‘सचिव जी व रिंकी’ की प्रेमकहानी का भण्डाफोड़ कर देगा और प्रधान जी की मंडली में कड़वाहट व्याप्त हो जायेगी। विकास व प्रहलाद चा दुविधा में पड़ जाएंगे कि क्या करें लेकिन ‘दामाद जी’ की सहयता से मामला सुलट जायेगा।

अंत में प्रहलाद चा विधायक बन जाएंगे, सचिव जी का रिंकी से ब्याह हो जायेगा और संभव है कि वह गाँव में ही बस जाएं।

बिनोद टूटकर प्रधान जी की मंडली में आ जायेगा और बनराकस अपनी हद में लौट जायेगा।

विधायक बनकर प्रह्लाद चा गाँव की सड़क सहित अन्य विकास कार्यों में व्यस्त हो जाएंगे और विकास उनका पी ए बनकर व्यस्त हो जायेगा।

इस तरह सब कुछ पहले जैसा हो जायेगा लेकिन…….लेकिन अब वह रोज की खुले खेत में चटाई बिछाकार होने वाली बीयर पार्टियां न होंगी क्योंकि….

‘बीता हुआ समय कभी वापस नहीं आता।’

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