दिलीप सी मंडल : बाबा साहब.. संविधान की प्रस्तावना ही नहीं, पूरे संविधान में एक बार भी “सोशलिस्ट” शब्द क्यों नहीं रखा…

चलिए, एक विवाद का मैं अंत कर देता हूँ…

संविधान सभा में 299 मेंबर थे। पर संविधान सभा ने आम राय से डॉ. बी.आर. आंबेडकर को “संविधान निर्माता” क्यों माना?

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इसकी वजह ये नहीं है कि वे संविधान सभा के सबसे शिक्षित व्यक्ति थे या कि वे अकेले सदस्य थे जिन्हें एक साथ क़ानून, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान और इतिहास का ज्ञान था।

उन्हें ये सम्मान उनकी विश्व दृष्टि, भविष्य को पहचाने पाने और राष्ट्रीय हित के अनुरूप नीति वक्तव्य तैयार करने की क्षमता के कारण मिला। वे भविष्यदृष्टा थे।

ये जानना बहुत आवश्यक है कि उन्होंने संविधान की प्रस्तावना ही नहीं, पूरे संविधान में एक बार भी “सोशलिस्ट” शब्द क्यों नहीं रखा।

इसका उन्होंने कारण ये बताया कि – जनता कैसी सरकार चुनेगी ये हम आज नहीं तय कर सकते। जनता कैसी सरकार और कैसी आर्थिक नीति चाहेगी ये भी आज तय नहीं हो सकता। आने वाली सरकारें राष्ट्र की ज़रूरत और समय के हिसाब से आर्थिक नीतियाँ बनाएँगी जो कि ज़रूरी नहीं है कि समाजवाद पर आधारित हो। संविधान की प्रस्तावना में सोशलिस्ट लिख देना अलोकतांत्रिक होगा।

यही हुआ। संविधान लागू होने के चालीस साल के बाद नरसिंह राव के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने समाजवाद का त्याग कर दिया। बाज़ार अर्थव्यवस्था को अपना लिया।

बाबा साहब ये समझ पाए थे कि ऐसा समय आ सकता है।

आप समझ रहे हैं?

ऐसी सूझबूझ और भविष्य पर नज़र रखने के कारण बाबा साहब महान बने। सिर्फ ज्यादा डिग्री होने के कारण नहीं।

इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी के दौरान संविधान बदलकर गलत किया। कांग्रेस पार्टी के नरसिंह राव, मनमोहन सिंह, प्रणव मुखर्जी और पी चिदंबरम ने नई आर्थिक नीति लागू कर और समाजवाद को दफ़नाकर इंदिरा गांधी को गलत साबित किया।

-श्री दिलीप सी मंडल के पोस्ट से साभार।

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