पंकज प्रसून : मैंने जीवन में कभी किसी को मंदिर में प्रवेश करने से रोकते नहीं देखा..
पूरब के राज्यों जैसे बिहार, ओडिशा, बंगाल, असम और झारखंड में जातिभेद के बावजूद एक अलिखित अनकहा सामाजिक सौहार्द रहा है।
इसका कारण यहां के पर्व त्यौहार जैसे रथ यात्रा, छठ, दुर्गा पूजा आदि हो सकते हैं। छठ घाट पर किसी की जाति नहीं पूछी जाती, हर व्रती को प्रणाम करने की परंपरा है। रथ यात्रा में हर कोई शामिल होता है, वहां कोई किसी से जाति नहीं पूछता। कांवरियों को सिर्फ़ बम बोला जाता है।
मैंने कम से कम अपनी जिंदगी में या अपने आंखों के सामने किसी को मंदिर में प्रवेश करने से रोकते नहीं देखा। कुछ “पोंगा पंडितों” और जातिवादियों को छोड़ दें तो छुआछूत जैसी बात कहीं नहीं दिखी।
हो सकता है कि मेरा व्यक्तिगत अनुभव सीमित हो, लेकिन मुझे लगता है कि सारा भेदभाव आर्थिक असमानता की वजह से है, जाति की वजह से नहीं। मैंने कई ब्राह्मणों को SC-ST अफसरों को पैर छूकर प्रणाम करते देखा है। करोड़पति चाहे किसी जाति का हो, उसका सम्मान सभी करते हैं। ग़रीब चाहे ब्राह्मण हो, क्षत्रिय हो, वैश्य हो या शूद्र, उसे भेदभाव झेलना ही पड़ता है।
-वरिष्ठ पत्रकार श्री पंकज प्रसून के पोस्ट से साभार।
-चित्र इंटरनेट से साभार।
