डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह : श्रीमद्भगवद्गीता पर विश्व में सर्वाधिक भाष्य, टिप्पणी और व्याख्याऐं
कोई रामगोपाल नाम का फिल्म निर्देशक है। उसका कहना है कि परमाणु बम के जनक ओपेनहाइमर ने गीता पढ़ा होगा यह बात सत्य नहीं लगती, क्योंकि भारत में ही गीता को पढ़नेवाले 0. 000000001 प्रतिशत लोग होंगे। शायद उसकी दृष्टि में ओपेनहाइमर को साक्षात्कार में झूठ बोलने के लिए किसी सनातन हिन्दू धर्मावलम्बी ने रिश्वत दिया था।

यह रामगोपाल की गलती नहीं है, यह भारत के उस परिवेश की गलती है, जिसमें स्वराज के बाद ऐसे लोग ही आगे आए, जो उन पशुओं की तरह थे जिनको यह भी पता नहीं होता कि उनके बाप कौन हैं। कम्युन में पैदा होने की अभिलाषा करनेवालों को भला अपने बाप को जानने की क्या आवश्यकता है?
श्रीमद्भगवद्गीता दुनिया की एकमात्र ऐसी पुस्तक है जिस पर सर्वाधिक टीका, टिप्पणी, भाष्य और व्याख्यायें लिखी गई हैं। अट्ठारहवीं शताब्दी से ही श्रीमद्भगवद्गीता यूरोपीय विद्वानों के मानस को प्रभावित करने लगी थी। थोरो,श्लेगल, इलियट, इमर्सन, हक्सले, एडविन अर्नाल्ड और आइंस्टीन जैसे अनेक यूरो-अमेरिकन विद्वान गीता से प्रभावित ही नहीं थे बल्कि गीता के विचारों से पूरी तरह संचालित थे। उनमें से कुछ के विचार अधोलिखित हैं-
1. अल्बर्ट आइन्स्टाइन-‘जब मैंने गीता पढ़ी तब मैनें विचार किया कि कैसे ईश्वर ने इस ब्रह्माण्ड कि रचना की है, तो मुझे बाकी सब कुछ व्यर्थ प्रतीत हुआ।’
2. अल्बर्ट श्वाइत्जर-‘श्रीमद्भगवद्गीता में मानव की आत्मा का गहन प्रभाव है।
3. अल्ड्स हक्सले-‘श्रीमद्भगवद्गीता ने समृद्ध आध्यात्मिक विकास का सबसे सुव्यवस्थित बयान दिया है। यह आज तक के शाश्वत दर्शन का सबसे स्पष्ट और बोधगम्य सार है, इसलिए इसका मूल्य केवल भारत के लिए नही, वरन संपूर्ण मानवता के लिए है।’
4. हेनरी डी थोरो-‘हर सुबह मैं अपने ह्रदय और मस्तिष्क को श्रीमद्भगवद्गीता के उस अद्भुत और देवी दर्शन से स्नान कराता हूं जिसकी तुलना में हमारा आधुनिक विश्व और इसका साहित्य बहुत छोटा और तुच्छ जान पड़ता है।’
5. थॉमस मर्टन-‘श्रीमद्भगवद्गीता को विश्व की सबसे प्राचीन जीवित संस्कृति, भारत की महान धार्मिक सभ्यता के प्रमुख साहित्यिक प्रमाण के रूप में देखा जा सकता है।’
6. डॉ. गेद्दीज मैकग्रेगर-‘पाश्चात्य जगत में भारतीय साहित्य का कोई भी ग्रन्थ इतना अधिक उदहृत नहीं होता जितना कि श्रीमद्भगवद्गीता, क्योंकि यही सर्वाधिक प्रिय ग्रंथ है।’
7. हर्मन हेस-भगवत गीता का अनूठापन जीवन के विवेक की उस सचमुच सुंदर अभिव्यक्ति में है, जिससे दर्शन प्रस्फुटित होकर धर्म में बदल जाता है।’
8. रौल्फ वाल्डो इमर्सन-‘मैं श्रीमद्भगवद्गीता का आभारी हूं। मेरे लिए यह सभी पुस्तकों में प्रथम थी, जिसमे कुछ भी छोटा या अनुपयुक्त नहीं किंतु विशाल, शांत, सुसंगत, एक प्राचीन मेधा की आवाज जिसने एक-दूसरे युग और वातावरण में विचार किया था और इस प्रकार उन्हीं प्रश्नों को तय किया था, जो हमें उलझाते हैं।
यह तो बात रही विदेशियों की जिनके पढ़ने के विषय में तुम्हें संदेह है और यदि भारतीयों की बात करो तो भारत की चेतना में ही श्रीमद्भगवद्गीता समाहित है।
तुम लोगों जैसे भोगी कुकर्मियों को छोड़कर भारत का बच्चा-बच्चा गीता के संदेश से ओत-प्रोत है। एक रिक्सावाले से भी तुम गीता की उस दिव्य संदेश को सुन सकते हो जिसमें केवल कर्तव्य में विश्वास की बात कही गई है। जो जैसा करेगा वैसा फल पाएगा, यह भारत के जन-जन का भाव है।
तुम्हारे जैसे तुच्छ जीवों के अनथक प्रयत्न से कुछ तुच्छ लोग भले ही भटक गए हों, लेकिन भारत की समष्टि जनचेतना आज भी गीता के भाव से भासमान है।
साभार- डाॅ. चन्द्र प्रकाश सिंह
