‘ डॉ.लोहिया ने कहा कि मैं चाहता हूं कि इस देश में काॅमन सिविल कोड लागू हो ‘ -सुरेंद्र किशोर-

लोहिया ने तब यह भी कहा था कि हम चुनाव जीतने के लिए नहीं बल्कि देश को बनाने के लिए राजनीति करते हैं।

वे खुद लोक सभा का चुनाव लड़ रहे थे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

17 नवंबर, 2013 के दैनिक ‘प्रभात खबर’ में जवाहरलाल नेहरू और डा.राम मनोहर लोहिया की उक्तियां छपी हैं।

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नेहरू की उक्ति से मैं अवगत नहीं था।

हां,लोहिया की उक्ति के संदर्भ का अनुमान लगा सकता हूं।

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इन दोनों उक्तियों में दो संदेश हैं।

आज के संदर्भ में ये संदेश और भी मौजूं हैं।

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आज के कुछ नेता,यहां तक कि कुछ बड़े नेता भी, अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ कैसी -कैसी ‘‘गालियां’’निकालते रहते हैं !

राजनीति में इतनी कटुता आ गई है कि आम लोगों को शर्म आने लगी है,भले उन गाली वक्ताओं को आए या नहीं !

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कल्पना कीजिए कि किसी नेता या नेता परिवार ने सत्ता में रहते समय अपने लिए अरबों रुपए इकट्ठे किए।

दूसरी सरकार आई और उनके अरबों रुपए मुकदमे में फंस गए।

वैसी स्थिति में उस नेता की जुबान पर शालीनता बरकरार कैसे रहेगी ?

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खैर, असली बात पर आते हैं।

जवाहरलाल नेहरू ने कभी कहा था कि

‘‘राजनीतिक मतभेद अपनी जगह है,लेकिन अगर मुझसे कोई यह पूछे मैं अपना वोट किसे दूंगा,तो मैं निश्चित रूप से यही कहूंगा कि मैं अपना कीमती वोट राममनोहर लोहिया को दूंगा।’’

संभवतः यह बात सन 1962 के आम चुनाव के समय की है जब नेहरू और लोहिया एक दूसरे के खिलाफ फुलपुर में लोक सभा चुनाव लड़ रहे थे।

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अब सन 1957 की राजनीतिक घटना पर

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बिहार में कांग्रेस विधायक दल के नेता पद का चुनाव हो रहा था।

डा.श्रीकृष्ण सिंह और डा.अनुग्रह नारायण सिंह एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे।

कांटे का मुकाबला था।

फिर भी श्रीबाबू ने अपना वोट नहीं दिया।

किसी ने उनसे कारण पूछा।

उन्होंने कहा कि वोट देता तो अनुग्रह बाबू को ही देता।

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डॉ.राममनोहर लोहिया की एक उक्ति प्रस्तुत है।

‘‘मैं वोट के लिए विचार धारा नहीं बदल सकता।

भले ही मैं हार जाऊं।

भले ही पार्टी के सभी उम्मीदवार हार जाएं।

मैं समझता हूं मेरी विचारधारा देशहित में है।

क्योंकि देश किसी दल और चुनावों से बड़ा है।’’

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संभवतः डॉ.लोहिया ने यह बात सन 1967 के चुनाव के समय कही थी।

तब वे लोक सभा का चुनाव लड़ रहे थे।

1967 तक विधान सभाओं के चुनाव भी साथ- साथ ही होते थे।

किसी पत्रकार ने उनसे पूछा कि सामान्य नागरिक संहिता के बारे में आपकी क्या राय है ?

डॉ.लोहिया ने कहा कि मैं चाहता हूं कि इस देश में काॅमन सिविल कोड लागू हो।

इस पर डा.लोहिया के दल के कुछ नेताओं ने उनसे कहा कि अब तो आप चुनाव हार जाइएगा।

क्योंकि आपके चुनाव क्षेत्र में मुसलमान आबादी बहुत है।

उसी की प्रतिक्रिया में लोहिया ने उपर्युक्त बात कही थी।

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लोहिया ने तब यह भी कहा था कि हम चुनाव जीतने के लिए नहीं बल्कि देश को बनाने के लिए राजनीति करते हैं।

वे खुद लोक सभा का चुनाव लड़ रहे थे।

याद रहे कि ऐसे बयान के बाद उनके सह कर्मी ने उनसे कहा था कि आप ऐसे क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं जहां मुसलमानों की बड़ी आबादी है।

अब तो आप चुनाव हार जाएंगे।

लोहिया जीत तो गए,किंतु  सिर्फ करीब 400 मतों से।

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पर,सामान्य नागरिक संहिता के विरोधी समाजवादी नेता आज लोहिया से यह भी कहते कि हम आपसे अलग सोच रखते हैं।

जनता को सुनाने के लिए हम खुद को भले लोहियावादी कहते हैं,किंतु आपके जैसा फकीर का जीवन हमें कत्तई मंजूर नहीं है।

जब हमें एम.वाई.का सौलिड सपोर्ट हासिल है तो हमको आप जैसी सोच रखने की जरूरत ही क्या है ?

अब देखिए,आज क्या हो रहा है ?

शब्द-प्रहार को लेकर और देशहित की नीतियों को लेकर।

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डॉ.लोहिया आज जिंदा होते और सामान्य नागरिक संहिता के बारे में वही बात कहते तो सेक्युलर दलों की क्या प्रतिक्रिया होती ?

सिर्फ एक ही प्रतिक्रिया होती–

‘‘लोहिया संघी हो गया है।’’

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5 नवंबर 21

 

 

 

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