किताब बम से उपजा सवाल ” सेना को अनुमति क्यों नहीं दी गई ? “

2008 में 26 नवंबर को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले के बाद जिस प्रकार की मजबूत जवाबी कार्रवाई करनी चाहिए थी, वैसी नहीं की और उसने राष्ट्रीय सुरक्षा को ताक पर रखा।

 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने अपनी नई पुस्तक में साल 2008 के मुंबई आतंकी हमले पर जवाबी प्रतिक्रिया को लेकर तत्कालीन UPA  सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि कई बार संयम कमजोरी की निशानी होती है और भारत को उस समय कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए थी। लोकसभा सदस्य श्री तिवारी ने अपनी पुस्तक ‘10 फ्लैस प्वाइंट्स: 20 ईयर्स’ में पिछले दो दशक के देश के सुरक्षा हालात पर प्रकाश डालते हुए गंभीरता पूर्ण विश्लेषण किया है।  2 दिसंबर से यह पुस्तक पाठकों के लिए उपलब्ध होगी।

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तिवारी ने मंगलवार को ट्विटर पर अपनी इस पुस्तक के कुछ अंश साझा किए। पुस्तक में उन्होंने लिखा, ‘अगर किसी देश (पाकिस्तान) को निर्दोष लोगों के कत्लेआम का कोई खेद नहीं है तो संयम ताकत की पहचान नहीं है, बल्कि कमजोरी की निशानी है। ऐसे मौके आते हैं जब शब्दों से ज्यादा कार्रवाई दिखनी चाहिए। 26/11 एक ऐसा ही मौका था।’

तिवारी ने मुंबई आतंकी हमले को क्रूर हमला करार देते हुए इसे ‘भारत का 9/11’ करार दिया। उन्होंने कहा, ‘एक ऐसा समय था जब भारत को प्रतिक्रिया में कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए थी।’ ने उनकी इस पुस्तक को लेकर आरोप लगाया कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली तत्कालीन संप्रग सरकार को 2008 में 26 नवंबर को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले के बाद जिस प्रकार की मजबूत जवाबी कार्रवाई करनी चाहिए थी, वैसी नहीं की और उसने राष्ट्रीय सुरक्षा को ताक पर रखा।

सोनिया और राहुल गांधी से चुप्पी तोड़ने की उठी मांग
भाजपा ने इस प्रकरण में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से चुप्पी तोड़ने की मांग करते हुए सवाल उठाया कि उस समय भारतीय सेना को अनुमति और खुली छूट क्यों नहीं दी गयी. उन्होंने कहा, ‘हमारी सेना पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से अनुमति मांग रही थी कि हम पाकिस्तान को सबक सिखाएंगे. लेकिन उन्हें अनुमति क्यों नहीं दी गई?’

अब, इस मुद्दे ने देश की राजनीति में तूफान पैदा कर दिया है।  प्रेस कॉन्फ्रेंस कर भाजपा प्रवक्ता गौरव भाटिया ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी से जवाब मांगा है। लेकिन बाटला के आतंकियों के लिए रोनेवाली और भगवा को ही आतंक से जोड़ने वाले नकारात्मक सोच के विपक्षी दलों से किसी जवाब की अपेक्षा करना व्यर्थ है ! बल्कि अब सबको नागरिक के तौर पर चिंतन करना चाहिए कि क्या प्रधानमंत्री पद के लिए एक कठपुतली और राष्ट्रवाद की भावना से रहित प्रधानमंत्री को चुना जाना चाहिए ?  मनमोहन सिंह बहुत बड़े वित्त मंत्री रहे और आर्थिक विषयों के महाज्ञानी भी है लेकिन देश एक सशक्त राजनेता से संचालित  होता है और विपक्षी दल  तो राष्ट्र और राष्ट्रवाद की परिकल्पना को ही खारिज करते है तो उनसे क्या आशा की जा सकती है !

उल्लेखनीय है कि 26 नवंबर, 2008 को पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकवादी समुद्री मार्ग से मुंबई के विभिन्न इलाकों में घुस गए थे और उन्होंने अलग-अलग स्थानों पर गोलीबारी शुरू कर दी थी। उस हमले में 18 सुरक्षाकर्मियों सहित 166 लोग मारे गए थे।

तिवारी की इस पुस्तक से कुछ दिनों पहले ही कांग्रेस नेता खुर्शीद की पुस्तक ‘सनराइज ओवर अयोध्या’ को लेकर विवाद खड़ा हुआ था क्योंकि इसमें उन्होंने कथित तौर पर हिंदुत्व की तुलना आईएसआईएस और बोको हरम जैसे आतंकी संगठनों के साथ की थी।

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