सतीश चंद्र मिश्रा : राहुल गांधी का दलित प्रेम..! 44 बरस में मिला न्याय

यूपी में दलित हितों के स्वघोषित ठेकेदारों का सच बेनकाब कर रही है ये घटना… इसीलिए एक सप्ताह प्रतीक्षा के पश्चात् लिख रहा हूं…
18 नवंबर 1981 की शाम 6 बजे दिहुली गांव में दलितों का नरसंहार हुआ था. संतोष और राधे के गिरोह ने एक मुकदमे में गवाही देने के विरोध में पूरे गांव पर गोलियां बरसाईं, जिसमें 24 निर्दोष दलितों की मौत हो गई थी. जिस समय यह नरसंहार हुआ उस समय देश में दो तिहाई से अधिक बहुमत के साथ राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी राज कर रहीं थीं। उत्तरप्रदेश में उन्हीं की पार्टी (कांग्रेस आई) की सरकार दो तिहाई से अधिक बहुमत के साथ सत्तारूढ़ थी। मुख्यमंत्री थे राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह। विपक्ष के प्रमुख नेता थे अखिलेश यादव के पिताश्री मुलायम सिंह यादव। जिस मैनपुरी जिले में दिनदहाड़े यह नरसंहार हुआ था, उस मैनपुरी लोकसभा से विपक्ष के ही रघुनाथ सिंह वर्मा सांसद थे। लेकिन उस दिहुली नरसंहार में दिनदहाड़े मौत के घाट उतारे गए 24 निर्दोष दलितों के परिजनों को इंसाफ पाने में 44 साल लगे, वह भी तब जब इस नरसंहार के 36 साल बाद 2017 में योगी आदित्यनाथ उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने और मुकदमे की सुनवाई में तेजी आई। लेकिन इसके बावजूद उन 24 दलितों के परिजनों को केवल 17 प्रतिशत इंसाफ ही मिल सका। क्योंकि अब जब इस नरसंहार में न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया, उस समय तक इस नरसंहार में नामजद 17 हत्यारों में से 13 हत्यारे अपना पूरा जीवन जीने के पश्चात् मौत के मुंह में जा चुके थे, 14वां नामजद हत्यारा आज भी फरार है। अतः बीती 18 मार्च को जब मैनपुरी कोर्ट की न्यायाधीश इंदिरा सिंह ने शेष तीनों हत्यारों को फांसी की सजा के साथ ही 50-50 हजार रुपए जुर्माने की सज़ा सुनाई तो दिहुली नरसंहार में मारे गए 24 निर्दोष दलितों को मात्र 17 प्रतिशत इंसाफ ही मिल सका।
दिहुली नरसंहार की घटना आज 44 साल बाद भी उन सभी राजनेताओं और दलितों के हितों के स्वघोषित ठेकेदारों को संगीन सवालों के कठघरे में खड़ा कर रही है। आज़ादी के 33 साल बाद हुई इस घटना के पीड़ितों को इंसाफ मिलने में 44 साल क्यों लगे.? जबकि यह घटना मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक गढ़ मैनपुरी में हुई थी। इस घटना के बाद मुलायम सिंह यादव की पार्टी की सरकार साढ़े 12 वर्ष तक उत्तर प्रदेश में रही। स्वयं अखिलेश यादव लगातार 5 वर्ष तक उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे लेकिन उनको उनके सबसे मजबूत राजनीतिक गढ़ मैनपुरी में मौत के घाट उतारे गए 24 दलितों के परिजनों को इंसाफ दिलाने की याद क्यों नहीं आई.? अतः आज जब दलितों के हितों का ढोल अखिलेश यादव उत्तरप्रदेश में पीटते हैं तो उपरोक्त सवाल उनके दलित प्रेम की धज्जियां उड़ाता दिखाई देता है। इसी प्रकार पिछले काफी लंबे समय से रात-दिन दलित प्रेम की राजनीतिक माला जपने का पाखंड जोरशोर से कर रहे राहुल गांधी को यह जवाब तो देना ही पड़ेगा कि, दिहुली में 24 दलितों के नरसंहार के बाद लगातार 9 साल तक देश और उत्तरप्रदेश में उनकी कांग्रेस पार्टी की सरकार रही। उन 9 सालों के दौरान उनकी दादी इंदिरा गांधी, तथा पिता राजीव गांधी इस देश के प्रधानमंत्री रहे। दोनों ही उत्तरप्रदेश से ही सांसद भी थे। लेकिन उन 9 सालों के दौरान दिहुली में मारे गए 24 दलितों के परिजनों को न्याय क्यों नहीं मिल सका जबकि उक्त नरसंहार के दर्जनों चश्मदीद गवाह भी मौजूद थे। मुकदमा भी राज्य सरकार ही लड़ रही थी। अतः आज जब राहुल गांधी अपने दलित प्रेम का ढोल पीटते दिखाई देते हैं तो उसकी अहमियत और गंभीरता मात्र एक राजनीतिक ढपोरशंख से अधिक नहीं नज़र आती।
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