सर्वेश तिवारी श्रीमुख : आदिपुरुष.. पच्चीस ग्राम की नाक पर डेढ़ सेर की नथनी…

डायरेक्शन किसका? ओम रावत का! स्टोरी किसकी? ओम रावत की! स्क्रीनप्ले किसका? ओम रावत की! तो जली किसकी? ओम रावत की? नहीं। जल गयी शुकुल जी की। क्यों? क्योंकि शुकुल जी अपनी सामर्थ्य से अधिक उछल कूद कर रहे थे। बुजुर्गों ने फरमाया है कि पच्चीस ग्राम की नाक पर डेढ़ सेर की नथनी नहीं पहननी चाहिये।

अपने ग्रुप्स में साझा कीजिए।

अब तनिक हिसाब देख लीजिये। फ़िल्म के लिए प्रभाष को मिले 150 करोड़! वे कहीं नहीं दिख रहे। सैफ को मिले 12 करोड़, वे कहीं नहीं दिख रहे। कीर्ति सेनन को मिले 3 करोड़, वे कहीं नहीं दिख रहीं। खुद ओम रावत जो निर्देशक के साथ निर्माता भी हैं, वे भी कहीं नहीं दिख रहे। जबकि फ़िल्म फ्लॉप होने पर भी उनके हाथ में सौ दो सौ करोड़ आने हैं। तो दिख कौन रहा है? दिख रहे हैं मुन्तशिर!
अब तनिक सोचिये, मियां मुन्तशिर को कितने मिले होंगे? हमें जितनी जानकारी है उस हिसाब से किसी गीतकार को एक करोड़ से अधिक तो नहीं ही मिलते हैं। मनोज तनिक चर्चित हैं तो उनका दो करोड़ मान लेते हैं। मतलब कुल बजट का आधा प्रतिशत से भी कम… तो साढ़े निन्यानवे मजे कर रहे हैं और आधा प्रतिशत वाला उछल उछल कर उड़ते तीर लपक रहा है। हैं मजेदार बात?
घटिया ड्रेस बनाया किया ड्रेस डिजायनर ने, जिसका कोई नाम भी नहीं जानता और गाली मिल रही मनोज को! बकवास मेकप किया किसी और ने और गाली खा रहे मनोज! पात्रों के लिए बकवास चयन रहा भूषण कुमार के टी सीरीज का, पर गाली खा रहे मनोज… मजेदार है न?
सिनेमा में डायलॉग राइटर की औकात जाननी है तो स्वयं से पूछिये, पिछली पाँच बड़ी फिल्मों में किसके डायलॉग राइटर का नाम जानते हैं आप? लाल सिंह चड्डा, पठान, केजीएफ, आर आर आर, पुष्पा … किसी का याद है? नहीं होगा… दरअसल मनोज मुन्तशिर ठीक ठाक बोल लेते हैं, शो वगैरह करने लगे हैं, तो थोड़ी सी ख्याति मिल गयी। ख्याति जितनी बढ़ती है उतना ही लोभ बढ़ता है। इसी लोभ के चक्कर में,और ख्याति प्राप्त करने के लोभ में मनोज बाबू कैमरे के आगे उछलने लगे। जो काम पीआर टीम को करना था, वह भी मनोज कर रहे हैं। जो निर्देशक निर्माता को करना था, वह भी मनोज कर रहे हैं। लीप रहे हैं और बदले में खा रहे गाली…
तो इससे हम यह सीखते हैं कि सबसे बेहतर होता है चुपचाप अपना काम करना। यदि क्रेडिट लेने के चक्कर में पड़ेंगे तो गाली खाने के अवसर पर सबके हिस्से की गालियां भी अकेले ही खानी होंगी। और इसमें किसी अन्य को दोषी नहीं बताया जा सकता, यह दोष केवल हमारे लोभ का है।
मनुष्य से गलतियां होती हैं। कोई भी व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता कि उससे जीवन में कभी भूल नहीं हुई। सबसे होती है, सबसे होगी… तो इससे निपटने का सबसे बेहतर तरीका है कि तुरंत गलती स्वीकार कर लें और क्षमा मांग लें। लेकिन यदि व्यक्ति के अंदर अहंकार हो तो वह अपनी भूल स्वीकार नहीं करता, वह उसी पर अड़ा रहता है और एक गलती को ढकने के लिए अनेक गलतियां करता है। फिर? फिर समय की भी अपनी सत्ता है दोस्त! समय आगे बढ़ता है और गाड़ देता है अहंकार की छाती में सत्य का भगवा ध्वज!

Veerchhattisgarh

तो मुन्तशिर भाई! एक बात सीख लीजिये। राष्ट्रवादियों के यहाँ एक परम्परा है। आप हजार बार सही करेंगे तो ताली बजेगी, पट यदि एक बार भी गलती किये जनता सत्यानाश कर देगी।
तो अब एक सेर सुनिये!
राष्ट्रवाद के रस्ते पर हर कदम सोच कर रखना है,
यह वामपंथ का खेल नहीं कि गाली दी और जीत गए।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *