बसंत शाहजीत : एक तुकड़ा तेंदू का.. ना, ना एक किस्सा तेंदू का…
एक तुकड़ा तेंदू का…
ना, ना एक किस्सा तेंदू का…
अभी मार्च का अंतिम सप्ताह है और छत्तीसगढ़ समेत आसपास के राज्यों में तेंदू की बहार है।
आप जंगली राह से गुजरते हैं तो सड़क के किनारे गांव का किसान तेंदू बिन-बिन कर बाजार में बेचने के लिए लेकर आ रहा है।

गांव देहात में इसका मूल्य ₹20 किलोग्राम और शहरों के पहुंचते पहुंचते ₹ 60 से 100 तक पहुंच जाता है।
बड़े शहरों में यही कीमत ₹200 तक पहुंचती है।
मेरा कहना है कि गांव के आदमी से ₹10 किलो में खरीदे गए तेंदू का दाम शहरों में जाकर ₹200 तक पहुंच जाता है।
सोचिये, आम आदमी को आज भी सही चीज का सही मूल्य बाजार से नहीं मिल पा रहा है।
आप रास्ते से गुजर रहे हों और कोई ग्रामीण तेंदू बेच रहा हो तो उसे दाम पूछिए…
यदि वह ₹20 किलो बेच रहा है तो उसे आप ₹60 किलो के हिसाब से दाम देना चाहिए। आज मैंने उन्हें 50 के हिसाब से दाम दिए।
क्योंकि बाजार में अभी अच्छी चीजें बिना मिलावट के मिलना मुश्किल हो गया है।
इसलिए हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है कि अच्छी चीजों को प्रमोट करें।
तेंदू का फल छोटा है लेकिन बहुत मीठा होता है।
प्राकृतिक मिठास लिए इन फलों से जैसे आत्मा तृप्त हो जाती है। इसके अनोखे रंग व स्वाद से बहुत से लोग वाकिफ हैं।
छत्तीसगढ़ में तेंदू के पत्तों से बीड़ी बनाई जाती है।
हर साल जंगलों से बड़ी मात्रा में तेंदू के पत्तों का संग्रहण किया जाता है।
इसे आमतौर पर जंगल के आदिवासी भाई -बहन हरा सोना कह कर पुकारते हैं।
हरा सोना इसलिए कहा जाता है कि यह जीवन की गाड़ी को चलाने के लिए जंगल के आदमी को भरपूर मात्रा में आमदनी देता है।
ओडिशा, झारखंड और असम में इसे केंदू के नाम से जाना जाता है।
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इसे तुनिकी के नाम से जाना जाता है।
भारत में पत्तियों को तम्बाकू के चारों ओर लपेटकर बीड़ी बनाई जाती है।
बीड़ी पुराने समय में लोक व्यवहार का हिस्सा रहा है।
यदि कोई व्यक्ति किसी रास्ते से गुजर रहा हो और उसे किसी जगह पर कोई हाल-चाल पूछने वाला मिल जाता था तो उससे वह बीड़ी के लिए पूछ लेता है।
बीड़ी पीने के दौरान एक- दूसरे का हाल-चाल, खेती किसानी, मौसम और पारिवारिक चर्चा और सुख-दुख का परस्पर आदान-प्रदान हो जाता था।
यह एक तरह का आज के समय का कैफेटेरिया का विकल्प था।
बड़े शहरों में चाय की दुकान या कॉफी शॉप के सामने बीड़ी की जगह सिगरेट ने रूप ले लिया है।
डिक्लेमर- यहां पर सिगरेट या बीड़ी की चर्चा का उद्देश्य परंपरा को बताना है, ना कि किसी व्यसन को प्रमोट करना।
