कमल ज्योति जे : न किसी से बैर, न किसी से दुश्मनी..यह है बचपन की खुशी…

जामुन के फलों का विदाई का दौर हैं। वनांचलों में कोसम के फल भी झुण्डों में लद गए हैं। कुछ मीठे, कुछ खट्टे कोसम के फलों को सिर्फ खाने में ही आनन्द नहीं आता, इसके पेड़ और डालियों तक पहुँच कर तोड़ने का भी एक अलग हुनर और आनन्द है।

कोई पत्थर मारकर, कोई पेड़ पर जोखिम के साथ चढ़कर इसे तोड़ता है। वनांचलों में किशोर युवाओं की टोलियां छुटियों के दिनों ऐसे फलों को तोड़ लाते हैं फिर घर जाने से पहले ईमानदारी से बटवारा भी करते हैं। बचपन में बचपना जीने वाले ऐसे बच्चों की घनिष्ठता इनकी दिनचर्या का अहम हिस्सा भी है। सड़क पर ईमानदारी के साथ अपने अपने हिस्से को लेते हुए इन्हें देखते ही आप भी शायद ऐसे ही मिल बांटकर खाने, खेलने के दिनों को याद करेंगे। चाहे वह किसी के बाड़ी से अमरूद चुरा कर खाने का मामला हो, नदी-नालों में मछली पकड़ने का या फिर…किसी के खेत से मटर, गन्ने या कुछ और भी…

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