डॉ. रविकांत सिंह राठौर : …बेवजह का बवाल ना करें

ईरान में फ़ारसी, रूस में रसियन और फ्रांस में फ्रेंच में मेडिकल की पढ़ाई होती है, तो हिंदुस्तान में हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई होने पर इतनी हाय-तौबा क्यों?
और रेफेरेंस बुक्स वहाँ भी इंग्लिश में ही होती है, यहां भी इंग्लिश होगी तो क्या पहाड़ टूट पड़ेगा?
पढ़ाई का मीडियम हिंदी किया जा रहा है, सिलेबस हिंदी का भाषा का नहीं डाला जा रहा।
और जिनको लगता है कि गैर हिंदी भाषी मरीजों से कैसे बात करेंगे वो ये जान लें कि अभी जैसे इंग्लिश में पढ़कर हिंदी वालों से बात करते हैं, वैसे ही।
बेवजह का बवाल ना करें। और भी महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, उन पर बहस करें।

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