पवन विजय : माता शबरी के द्वारा किए गए तप के पुण्यफल को आज उनकी संतति द्रौपदी मुर्मू जी को भारत के राष्ट्रध्यक्ष के रूप में
एक बार नारद ने शेष पर शयन कर रहे भगवान नारायण हरि से पूछा,
दो मुट्ठी तंदुल के बदले सुदामा को राज पाट दे दिए थे, शरण में आए विभीषण को सकुचाते हुए लंका दे दी, गीधराज को पिता का स्थान दे दिया, परंतु आपकी घोर प्रतीक्षा करने वाली शबरी को आपने क्या दिया यह मुझे भी नही पता है भगवन! उसके जूठे बेर का मूल्य किस तरह से चुकाया आपने?
हरि मुस्कुराए और बोले,
मैं पक्का बनिया हूं देवर्षि, हिसाब किताब में कभी गलती नही करता। माता शबरी ने अपनी कुटिया में मुझे बुलाया था, मैं उन्हें अपने महल बुलाऊंगा। बेर की श्रद्धा का अनमोल है, वह नवधा भक्ति से तुलता है। माता की प्रतीक्षा का फल उन्हे भारत वर्ष के राज्य की अधिष्ठात्री बनाएगा।
बरस बीते, कलयुग आया माता शबरी प्रभु राम के भव्य महल में भारत की महामहिम होने की हैसियत से उनके दर्शन हेतु गईं।
माननीय द्रौपदी मुर्मू को रामलला के दर्शन करते देख यही विचार और कथानक मन में आया। कर्म फल का सिद्धांत भी थोड़ा समझ में आया। पुरखों के पुण्य किस तरह उनकी संतानों को मिलते हैं, माता शबरी के द्वारा किए गए तप के पुण्यफल को आज उनकी संतति द्रौपदी मुर्मू जी को भारत के राष्ट्रध्यक्ष के रूप में मिलते देख रहे हैं।
बस शबरी सी प्रतीक्षा और भक्ति हो तो,
जो इच्छा करिहहुं मन माहीं,
राम कृपा कछु दुर्लभ नाहीं।