डॉ. पवन विजय : होली में छत्तीसगढ़ का किसबिन-रतिनृत्य
छत्तीसगढ़ में होली के त्योहार को मदनोत्सव के रूप में मनाया जाता रहा है। फागुन आते ही पूरा दंडक अरण्य पलाश के लाल फूलों से दहकने लगता है और जंगली फूलों से गमकने लगता है। यह वही समय था जब कामदेव लास्य नृत्य करते हैं, भगवान शिव की समाधि भंग करने के लिए ऋतु को मद से भर दिया।
मदन के प्रभाव को और अधिक मादक करने के लिए रति ने चालीस रातों तक लगातार नृत्य किया, इस नृत्य से उत्तेजित होकर प्रकृति ने अपने गंध कोश खोल दिए, मधुमास कण कण में छितरा गया।
फागुन पूर्णमासी को रति नृत्य अपने विलास के चरम पर पहुंच जाता है, हर हृदय रतिपति का दास बन बैठता है। अनुराग का प्रभाव जड़ चेतना जांगम प्रत्येक जगह व्याप्त है। मछली वाली ध्वजा लहर रही है, पांचों काम बाण प्रत्यंचा पर पूरी तरह खींच कर चलाए गए हैं।
क्षण क्षण हृदय की दाह और अधिक तीव्र होने लगती है। रति नृत्य की खनक पोर पोर में समा जाने को है, काम की ऊष्मा सकल विश्व को गला देगी कि महादेव का तीसरा नेत्र खुल जाता है।
तब सिव तीसर नयन उघारा। चितवन कामु भयउ जरि छारा॥
रति शिव से अपना सुभाग मांगती है, महादेव अवढरदानी हैं, उन्होंने काम को अनंग हो जाने का वरदान दिया।
रति नृत्य पुनः होने लगता है।
छत्तीसगढ़ भारत की आदि परंपरा स्थली है, किसबिन नृत्य रति के विरह और शृंगार के प्रतीक के रूप में होली के अवसर पर होता है। पूरी रात नाचा जाने वाला यह नृत्य आज भले ही विस्मृत कर दिया गया हो लेकिन जब जब उल्लास और लास्य का मधुमास छाएगा हृदय किसबिन नृत्य सारी रात करेगा।
