राजीव मिश्रा : Every dog has his day !
Every dog has his day!
आज से सौ साल पहले की दुनिया यूरोसेंट्रिक थी. यूरोप को जुकाम होता था तो सारी दुनिया छींकने लगती थी. ऑस्ट्रिया के आर्कड्यूक को बोस्निया में किसी ने गोली मार दी तो दुनिया भर में युद्ध छिड़ गया. जर्मनी में एक पागल को पोलैंड पसंद आ गया तो भारत में लाखों लोग भूखे मर गए, चीन में कम्युनिस्ट सत्ता में आ गए.
आज दुनिया को घंटा फर्क नहीं पड़ता कि पुतिन यूक्रेन का क्या करेगा. वे लड़ते हैं, किसी की नींद खराब नहीं होती. उल्टे भारत को दुनिया से सस्ता पेट्रोल मिलने लगा. चीन का मार्केट जगमगा गया.
इंग्लैंड खूब फुदक रहा है कि वह अपने सैनिक यूक्रेन भेजेगा. वे यह भूल रहे हैं कि इंग्लैंड की दुनिया में कोई साख थी तो बस इसलिए कि वह अमेरिका का एक कंसिस्टेंट पार्टनर था. बिना अमेरिका की शह के इंग्लैंड पर कुत्ता नहीं मूतेगा. ट्रम्प ने समझ लिया है कि ये यूरोपीय देश अब फुस्स हुए पटाखे हैं. उनकी दोस्ती अमेरिका के लिए अब एसेट नहीं, लायबिलिटी है. वे अपनी वामपंथी फूटानी में दुनिया भर में झगड़े खड़े करते हैं और पंच बनते हैं और उसका बिल अमेरिका भरता है.
अब वर्ल्ड ऑर्डर तय होता है अमेरिका, चीन, रूस और भारत से. और जैसे जैसे दुनिया भर के देश अपने देशों की वामपंथी ताकतों से निजात पाएंगे वे साथ आते जाएंगे. जो नहीं सफल होंगे वे सूख कर मर जाएंगे. क्योंकि वामपंथ एक नॉन प्रोडक्टिव सिस्टम है. यह वह अमरबेल है जो एक हरे भरे पेड़ पर परजीवी बनकर रहती है. जिन देशों ने उन्हें उतार फेंका है वे फिर से हरे भरे हो जाएंगे. जहां वे फैलते रहेंगे वे सूख जाएंगे. क्योंकि वामपंथ वह विषबेल है जो सिर्फ फैलना जानती है, फलना नहीं.
As for Europe : This dog had his day
– श्री राजीव मिश्रा जी के पोस्ट से साभार।
