कौशल सिखौला : अडानी पर क्या राहुल अकेले पड़ गए हैं..!
राहुल गांधी का दिन रात अडानी अडानी इंडी गठबंधन को भारी पड़ गया है । गठबंधन के अनेक दलों ने राहुल के अडानी विरोध से खुद को अलग कर लिया । केरल की वामपंथी सरकार ने अडानी समूह के साथ और पांच साल के लिए करार कर लिया है । बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने अडानी के मुद्दे पर संसद में कांग्रेस का साथ न देने का फैसला किया है । हेमंत सोरेन इस व्यक्तिवादी राजनीति का विरोध कर रहे हैं ।
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केजरीवाल पहले ही कह चुके हैं कि वे अडानी विरोध पर कांग्रेस का साथ नहीं देंगे । आम आदमी पार्टी ने तो पंजाब की भांति दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के साथ पैक्ट करने से इन्कार कर दिया था , पार्टी अब अकेले लड़ रही है । इतना ही नहीं कांग्रेस में भी अशोक गहलौत , कमलनाथ , अधीर रंजन , मनीष तिवारी आदि जैसे अनेक नेता कांग्रेस पार्टी के अडानी रुख से सहमत नहीं हैं । नेताओं का मानना है पार्टी नेता राहुल गांधी द्वारा अडानी अंबानी के पीछे पड़े रहना महाराष्ट्र की जनता ने नापसंद किया । परिणाम सामने हैं ।
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दरअसल कांग्रेस पार्टी में पार्टी अध्यक्ष खड़गे की कोई कीमत नहीं । प्रत्येक निर्णय राहुल गांधी करते हैं या तीनों दरबारी सुप्रीमों । राहुल गांधी खुद को इंडी गठबंधन का सर्वेसर्वा समझते हैं । उनका अडानी विरोध एक एजेंडा है जो उनके कारण पार्टी को चलाना पड़ता है । दरअसल अडानी के बहाने राहुल मोदी पर निशाना लगाते हैं । भ्रष्टाचार के मामले में खुद जमानत पर चल रहे राहुल गांधी ने दस सालों में मोदी को भ्रष्टाचारी सिद्ध करने के लिए बहुत पापड़ बेले ।
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लेकिन बार बार मुंह की खानी पड़ी , माफ़ी तक मांगनी पड़ी । मोदी पर बस न चला तो अडानी अंबानी को बेवजह लपेटने लगे । मोदी के प्रति घोर घृणा अडानी को माध्यम बनाकर आज भी जारी है । लेकिन अब इंडी अलायंस ही साथ छोड़ने लगा है । राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी को साथ लेकर अब संसद नहीं चलने दे रहे । विपक्ष कब तक साथ देगा , कईं पार्टियों ने स्पष्ट कर दिया है । बहरहाल लोकसभा चुनावों में सत्ता न बना पाने , राज्य चुनावों तथा उपचुनावों में पराजय से उपजी खीज कांग्रेस को तरह तरह के हथकंडे अपनाने को बाध्य कर रही है ।
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अब देखिए न जब कुछ न बिगाड़ पाए तो किसानों को बुला लाए । मतलब अडानी पर चर्चा नहीं तो ये लो चारों तरफ किसान ही किसान ? अशांति और अराजकता फैलाना राजनीति का मकसद नहीं होना चाहिए । विपक्ष संसद चलने नहीं देता और न चलने देने का दोष सरकार पर मढ़ता है ? वैसे एक बात आज तक समझ नहीं आई । संसद में मार्शल का प्रयोग अब क्यों नहीं होता ? क्या मार्शल व्यवस्था अब समाप्त हो गई है ? यदि नहीं तो अध्यक्ष और सभापति सदन की कार्रवाई रोजाना स्थगित क्यों कर रहे हैं ?
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