देवेंद्र सिकरवार : राज्य बनाम राष्ट्र.. संविधान नश्वर है, राष्ट्र अमर है

साउथ की संस्कृति उत्तर से अलग बिल्कुल नही है वही आस्था वही खान पान वही पूजा पद्धति, यही भारत को एक राष्ट्र के रूप में पिरोती है..इस विषय पर ज्वलंत लेख।

 

विपक्षी दलों के शतप्रतिशत बुद्धिजीवियों को तो देश, राष्ट्र, राज्य व राष्ट्रराज्य शब्दों का अंतर तक नहीं पता।

होगा अमेरिका राज्यों का संघ जिन्हें अलग अलग यूरोपीय क्षेत्र के निवासियों ने बनाया था, होगा इटली राज्यों का संघ जो मैजिनी, काबूर और गैरीबाल्डी ने बनाया लेकिन भारत…..

भारत उस दिन से राष्ट्र है जिस दिन ऋषियों ने इस राष्ट्र के तीन आधार, ‘भूमि’, ‘जन’ और ‘संस्कृति’ की अभिव्यक्ति दी-

“माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः”

और फिर उन्होंने स्पष्ट शब्दों में घोषणा की-

“वयं राष्ट्रे जागृयांम पुरोहिता:”

भरत के वंशज भरतों ने इस भावना का विस्तार किया और पामीर अर्थात सुमेरु की ऑक्सस अर्था वंक्षु नदी से लेकर दक्षिण सागर को एक भोगौलिक संज्ञा मिली-“भारतवर्ष”

लुटियंस बुद्धिजीवियों की मानसिक क्षमता से बाहर है इस राष्ट्र की परिभाषा को तय करना।

सब लोग जान लें कि,

‘न तो कोई इस राष्ट्र का पिता है और न कोई इस राष्ट्र का जन्मदाता।’

ये एक स्वतः स्फूर्त राष्ट्र है जिसे आवश्यकता पड़ने पर भरत, पृथु, रघु, राम, युधिष्ठिर, मौर्य, गुप्त, प्रतिहार और नवीनतम रूप में सरदार पटेल ने राजनैतिक संगठन प्रदान किया।

संविधान नश्वर है, राष्ट्र अमर है।

इस छोटे से तथ्य को समझने में विपक्ष की बैलबुद्धि समझने में असमर्थ है।

भारत भूमि का एक टुकड़ा भर नहीं है वह एक भावना है जिसे हर हिंदू यज्ञ पूजा व संकल्प करते समय इसके भोगौलिक प्रतीक के रूप में याद रखता है,

“जम्बूद्वीपे आर्यावर्ते भरतखंडे……”

इसलिये,

हम एक राष्ट्र थे,

हम एक राष्ट्र हैं,

हम एक राष्ट्र रहेंगे।

 

राज्य बनाम राष्ट्र

‘राज्य’ शब्द भारत में तीन तरह से प्रयुक्त होता है

1-राजशाही का भूक्षेत्र

2-केंद्रीय सत्ता के अधीन प्रांत

3-सैद्धांतिक आधार पर एक ‘संस्था’ जिसका जन्म  समाज को मत्स्य न्याय से बचाने व उसके नियमन हेतु एक ‘समझौते’ के रूप में हुआ जिसे विश्व में सर्वोत्कृष्ट रूप में भारत के ऋषियों ने ‘सप्तांग सिद्धांत’ के रूप में वर्णित किया।

जबकि ‘राष्ट्र’ किसी एक ‘साझी भावना में संकेंद्रित जनसमूह’ को कहा जाता है।

मतभेद इसके आधारों को लेकर है क्योंकि कुछ आधुनिक विद्वानों ने ‘राष्ट्र’ की कसौटी ‘राष्ट्रराज्य’ को बना दिया है जबकि भारतीय मनीषी इसके लिए ‘एक संस्कृति की भावना’ को आधार मानते आये हैं।

 

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