कौशल सिखौला : विपक्ष में उनके जैसा एक भी मेधावान नेता नहीं…

सच कहें तो 65 सालों तक भीतर ही भीतर खोखला किए गए देश को फिर से सशक्त बनाने के लिए अभी मोदी चाहिए!
बीजेपी में 75 वर्ष की उम्र सक्रिय पदों के लिए निर्धारित की गई है , इस हिसाब से मोदी के पास अभी 2024 का टर्म बाकी है !
यद्यपि शीर्ष पद की कतार में गडकरी और राजनाथ सिंह हैं , पर उन्हें भी उम्र और स्वास्थ दगा दे रहे हैं !

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देश के युवाओं में मोदी के बाद योगी का आकर्षण सबसे ज्यादा है , हालांकि अमित शाह और हेमंत विश्वासर्मा भी उसी कैडर के नेता बीजेपी के पास हैं , आरएसएस का थिंक टैंक भी नेताओं से भरा हुआ है !
लेकिन नरेंद्र मोदी जैसा बहुप्रतिभाओं का धनी दूसरा नहीं !
अंतरराष्ट्रीय पटल पर भी केवल मोदी का आभामंडल विद्यमान है !
विपक्ष में उनके जैसा एक भी मेधावान नेता नहीं , यही सोच महागठबंधन बनाने के पीछे भागी फिर रही है !

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इसके बावजूद प्रजातंत्र में यदि कोई समझता है कि मोदी अजेय हैं , तो वह गलत है । यह राजनीति है , यहां जनता की चलती है , लोकप्रियता बढ़ती भी है और घटती भी है । यह ठीक है कि भारत जैसे विशाल देश के लिए अभी कईं वर्षों तक मोदी की जरूरत है , भाजपा की जरूरत है । छद्म धर्मनिरपेक्षता ने देश का जितना सत्यानाश किया , मोदी की अगुवाई में बीजेपी का थिंक टैंक उसे सुधारने में लगा हुआ है । याद रखिए , यदि विपक्ष समझता है कि महागठबंधन हुआ तो वह अजेय हो जाएगा , यह भी गलत है । किसी एक का नेतृत्व स्वीकार करने और चुनाव पूर्व सीट तालमेल करने की कूवत विपक्ष में आज भी नहीं है ।

इसके बावजूद देश में लोकतंत्र है । यह अकेला ऐसा देश है जिसकी राजशाही में भी लोकतंत्र था । याद कीजिए रामराज्य , जब एक राजा अपनी रानी के बारे में धोबी की बात को भी अधिमान देता था । जब सिद्धांतों लिए एक राजा हरिश्चन्द्र श्मशान पर डोम का जीवन बिताता था । जब प्रजा और समाज के कल्याण के लिए एक राजा सब कुछ त्यागकर बुद्ध बन जाता था।

देश की दशा सुधारने के लिए अभी मोदी चाहिए । देश चलाना कोई मजाक नहीं है । लाखों बातें बनाइए , न तो राहुल का कोई अध्ययन है और न ही उनके पास धैर्य है । चूंकि इस देश पर कांग्रेस ने राज किया है , अतः उनके पीछे भी एक विचारधारा है । परंतु यह ऐसी विचारधारा है जिसने इंदिरा गांधी के बाद दम तोड दिया है । बापू इसी लिए चाहते थे कि आजादी मिलने के बाद कांग्रेस भंग हो जाए । यह विचारधारा अब परिवारवाद की बलि चढ़ गई । आज भी देखिए मल्लिकार्जुन खड़गे कहां खड़े हैं ? वजूद है तो सिर्फ राहुल प्रियंका और सोनिया का ?

जहां तक अन्य विपक्षी दलों की बात है , उन सभी का जन्म कांग्रेस के खिलाफ हुआ है । बहुमत न मिलने और क्षेत्रीय दल होने के कारण कांग्रेस का पिछलग्गू बनना उनकी मजबूरी है , उनकी नियति है । लेकिन कांग्रेस की हकीकत ममता भी जानती है , केसीआर भी , अखिलेश भी , मायावती भी , पटनायक भी और केजरीवाल भी । जानते नीतीश और शरद भी हैं पर वे मौके की तलाश में हैं । यही वजह है कि ये दल राहुल को नायक मानने को तैयार नहीं । वे जानते हैं राहुल के बौद्धिक ज्ञान को , किस तरह यूपीए के दौरान उन्होंने मनमोहन सिंह का अध्यादेश उन्हें लज्जित कर फाड़ा था ? तभी विपक्ष के अनेक दल आज मोदी को नापसंद जरूर करते हैं , लेकिन राहुल को गठबंधन का नेता मानने को कतई तैयार नहीं हैं ।

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