गोविंद पुरोहित : राष्ट्र , परतंत्रता ,स्वतंत्रता एवं संप्रभुता
पांच वर्ष पुराना लेख ,पढ़िए और समझिए की क्या क्या वैसा ही हुआ जैसा अनुमान लगाया गया था !!
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तीसरा भारत जैसा राष्ट्र अब तक कभी ओलंपिक आयोजित नही करवा पाया , नोबल पुरुस्कारों में भारत का कोई विशेष प्रभाव नही , अध्यात्म की राजधानी होते हुए भी विश्व दर्शन में कोई प्रभावी हिस्सा नही ,ये थी हमारी सांस्कृतिक सम्प्रभुता की असफलता !
गर्मियों में जब दिन के समय भूमि जल्दी तप जाती है तो हवा गर्म होकर ऊपर उठ जाती है और इससे उस क्षेत्र में हवा विरल हो जाती है फलतः हवा का दबाव कम हो जाता है ,वहीं समुद्र का जल गर्म होने में समय लेता है ,वह पिछली रात के प्रभाव से ठंडा हुआ अगले दिन में गर्म होने से पहले पहले ठंडी हवा भूमि की तरफ फेंकने लगता है , रात को भूमि से ठंडी हवा समुद्र की तरफ चलती है।
जिन्हें क्रमश सी ब्रिज और लैंड ब्रिज कहते है।
परतंत्रता एवं स्वतंत्रता की घटनाएं भूमि के समान होती है तत्काल प्रभावी , जैसे युद्ध हुआ और विजेता का अधिकार , पराजित राज्य पर परतंत्रता का अध्याय तत्काल शुरू ठीक वैसे ही ज्यों पराजित परतंत्र राज्य ने अपने शासक से युद्ध जीता और स्वतंत्रता शुरू ! जैसा कि भारत के साथ अठारवीं शताब्दी के प्रारंभ और उन्नीसवीं सदी के मध्यान में हुआ ,पूर्ण परतंत्रता और फिर स्वतंत्रता !
किन्तु संप्रभुता जल की तरह होती है , देर से गर्म देर से ठंडी !
सोलहवीं सदी के प्रारम्भ से व्यापार के बहाने भारत मे घुसे अंग्रेज पूरी सोलहवीं सदी और आधी सत्रहवीं सदी तक प्रयास करने के बाद सम्पूर्ण भारत पर आधिपत्य जमा पाए जिसके औपचारिक विधिक शासन की शुरुआत करते करते अठ्ठारहवीं सदी शुरू हो गई । 1858 में तो प्रथम क्रांति ही हो गई और उसके लगभग 90 वर्ष बाद भारत फिर स्वतंत्र हो गया।
लेकिन क्या भारत संप्रभु भी हो गया ??
नही !!
जैसे परतंत्र भारत ने अपनी संप्रभुता तत्काल नही खोई थी एक लंबा समय लगा था ठीक वैसे ही भारत स्वतंत्र होते ही संप्रभु नही हो सकता था कुछ समय लगना ही था जिसे कोंग्रेस जैसी दुर्बल एवं समझौतावादी विचारधारा ने बढ़ाकर इतना लंबा कर दिया कि हम अब तक पूर्ण रूप से सम्प्रभु नही है !
मित्रो ! एक राष्ट्र की स्वतंत्रता को सम्पूर्ण करती है संप्रभुता ! यह वह सुरक्षा कवच है जो भविष्य में आपको परतंत्र होने से बचाता है ,आपकी मूल संस्कृति ,सभ्यता को पोषण देता हुआ नई ऊंचाइयों पर ले जाता है । अतः सम्प्रभुता ही सच्चे अर्थो में पूर्ण एवं स्थाई स्वतंत्रता है,यही अंततः पूर्ण अभीष्ट है !
तो आज का मूल प्रश्न है कि हम अब तक संप्रभु क्यों नही है ??
आइये उससे पहले सम्प्रभुता को थोड़ा ठीक से समझ लें !
सहजतापूर्वक कहे तो सम्प्रभुता मुख्यतः दो प्रकार की होती है एक बाह्य एवं आंतरिक !
फिर इनके कई उपभेद है किन्तु हम कुछ विशिष्ट विषयो पर ही लेख को केंद्रित रखेंगे !
स्वतंत्रता के ठीक पश्चात प्रारम्भ से ही कोंग्रेसनीत भारत सरकार ने सम्प्रभुता को लेकर लापरवाही का परिचय दिया , कश्मीर विवाद को यूएन ले जाना , चीन पर अंधविश्वास और फिर धोखा फलतः हजारों वर्ग किमी भूमि हार जाना।
इनके पीछे जो मुख्य कारण था वह था दो विश्वयुद्ध जिनमे परमाणु बम तक चले थे ,उनके बाद हिंसा की अति से दग्ध विश्व को अहिंसा का नया मार्ग दिखाना और ये अपेक्षा करना कि विश्व इसे हाथोंहाथ लेगा और उसका लाभ भारत /महात्मा गाँधी और जवाहलाल नेहरू को छविलाभ के रूप में होगा ! किन्तु ऐसा सोचते समय हमारे तत्कालीन नीतिनिर्धारक मानवीय मूल अवधारणाओं की अवहेलना कर गए ,वे ये नही आँक पाये की मानवीय विश्व अब भी “जिसकी लाठी उसकी भैंस ” अर्थात शक्ति के सिद्धान्त को ही सम्प्रभुता का एकमात्र कारक मानता है।
यही चूक हमे बहुत भारी पड़ी जिसके चलते हम “बनाना रिपब्लिक” के टैग के साथ पिछली सरकार (यूपीए -2) तक अपमानित होते रहे।
मित्रों ! सम्प्रभुता की रेस हम उसी दिन हार गये थे जब सरदार पटेल को छोड़कर नेहरू प्रधानमंत्री बने थे , जो केवल खोखले आदर्शो के जाप से विश्वशक्ति बनने का मृदु स्वप्न देखते रह गए।
भारत जिसे कब का सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बन जाना था वह तीसरी दुनिया का पिछड़ा देश बना रहा । यह थी भारत के ब्राह्य सम्प्रभुता की असफलताओ के प्रारूप के तहत पहली अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक विफलताएं !
दूसरा बेहिसाब ऋण लेकर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ाया गया , आज तक हम वर्ल्ड बैंक , वर्ल्ड ट्रेड फाउंडेशन के प्रछन्न अनुबंधों के पाश से बंधे हुए है। ये है हमारी ब्राह्य सम्प्रभुता की आर्थिक विफलताएं !
तीसरा भारत जैसा राष्ट्र अब तक कभी ओलंपिक आयोजित नही करवा पाया , नोबल पुरुस्कारों में भारत का कोई विशेष प्रभाव नही , अध्यात्म की राजधानी होते हुए भी विश्व दर्शन में कोई प्रभावी हिस्सा नही ,ये थी हमारी सांस्कृतिक सम्प्रभुता की असफलता !
ऐसे ही आतंकवाद ,नक्सलवाद , खालिस्तान विवाद के रूप में आंतरिक सुरक्षा को लेकर आंतरिक सम्प्रभुता की असफलताऐ !
ऐसे दर्जनों विषय है जिसपर एक संपूर्ण पुस्तक लिखी जा सकती है अस्तु संक्षेप में यह समझे कि नवस्वतंत्र भारत के प्रारंभिक नीतिनिर्धारकों की अदूरदर्शिता के चलते भारत को हुई हानियों ने हमारी सम्प्रभुता के संवर्धन को सदैव बाधित किया !
किन्तु अब भारत ने एक बार फिर से अपना सम्पूर्ण चरित्र ही बदलना शुरू कर दिया है ,आक्रामकता अब हमें रास आने लगी है पुरजोर प्रतिरोध अब हमारी पहचान बनता जा रहा है , नवयुवा अब रक्षा ,सैन्य , आईटी , व्यापार सहित सभी मोर्चो पर भारत की पुरानी समझौतावादी लुंजपुंज छवि को तोड़कर आत्मविश्वास एवं सशक्त जेस्चर के साथ आगे बड़ रहे है और भारत की शक्ति के साथ सम्प्रभुता को नए आयाम देने का प्रयास कर रहे है जिसका परचम हाल ही कुछ घटनाएं लहरा रही है ।
यह सब संभव करने वाली देश की जनता के इस पुरुषार्थ को दिशा देने और नेतृत्व करने का जो भागीरथी कार्य वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने किया है वह निश्चित ही अद्वितीय है , उनके कूटनीतिक कौशल ,प्रशासनिक अनुभव , राजनैतिक सूझबूझ ने आज भारत की संप्रभुता को वह ऊँचाई दी है जहाँ से अमेरिका ,रूस जैसी विश्वशक्तिया भी भारत को एक विश्वशक्ति के रूप में ही देख /समझ रही है और उसके अनुरूप ही व्यवहार कर रही है।
मित्रों ! इस ऊँचाई को और सशक्त बनाने एवं सम्प्रभुता के श्रेष्ठतम स्तर पर पहुँचने के लिए हमे हर प्रकार से मोदीजी को शक्ति प्रदान करनी चाहिए , ना केवल वोट देकर उन्हें प्रधानमंत्री बनाकर बल्कि निष्ठापूर्वक अपना अपना प्रदत्त कार्य करके , कर जमा करके , सार्वजनिक कर्तव्यों का निर्वाह करके एवं राष्ट्रहितार्थ जीवन जीकर भारत के प्रति अपने प्रेम का प्रदर्शन करना है।
तो मित्रो आइये एक सशक्त ,सम्प्रभु एवं सक्षम भारत के लिए राजर्षि नरेंद्र मोदी को कमल का बटन दबाकर विजयी बनावे !