पंकज कुमार झा : भाजपा स्थापना दिवस.. चुनावी जीत से अधिक भाजपा के लिए चारित्रिक विजय महत्वपूर्ण

भाजपा स्थापना दिवस!

अपने लिखे भाजपा से संबंधित कुछेक दर्जन भर लेखों में से निम्न शीर्षक स्वयं मुझे बड़े पसंद हैं।

लगभग 20 वर्ष पहले इन्टरनेट इतना आम नहीं था, सोशल मीडिया था ही नहीं। हिन्दी के दो-चार वेबसाइट थे और आ. लालकृष्ण आडवानी जी अपना ब्लॉग और एक फोरम चलाते थे। भाजपा अपना 25 वां स्थापना दिवस मना रही थी….

तब आश्चर्य का पारावार नहीं रहा था, जब एक छोटी सी टिप्पणी के साथ आडवानी जी ने तब मेरे लिखे दो लेखों को अपनी साइट पर मेरे नाम से प्रकाशित कराया था। 6-7 वर्ष बाद मिलने पर आडवानी जी को स्मरण भी कराया था।

लेख का शीर्षक था :-

– भाजपा : आकार लेना एक वटवृक्ष का।

– भाजपा : सूरज न बन पाए तो, बन के दीपक जलता चल।

उसके बाद कुछ और लेख लिखे अलग-अलग जगह। क्या आप शीर्षक से अनुमान लगा सकते हैं कि कौन से लेख किस सन्दर्भ में लिखे गए होंगे? किसी एक शीर्षक का अनुमान लगाइए। आसान है समझना पार्टी की यात्रा को।

– भाजपा : तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला

– भाजपा : न भीतो मरनादस्मी, केवलम दूषितो यशः

– तट पर रख कर शंख शीपियां उतर गया है सिन्धु हमारा

– भरी दुपहरी में अंधियारा

– मैले हो जाते हैं रिश्ते भी लिबासों की तरह

– अंतिम जय का अस्त्र बनाने नव दधीचि हड्डियां गलायें

– खैंचि सरासन श्रवण लगी छोड़े शर इकतीस

अंतिम आलेख 2014 में लिखा था जिसमें भाजपा को मिले ‘मात्र’ 31 प्रतिशत वोट की वामीना आलोचना पर यही कहा था कि यह 31 प्रतिशत जनादेश वैसा ही समझिये जैसे रावण वध के लिए एक साथ श्रीराम ने 31 वाणों का संधान किया था। लोकतंत्र में क्यूंकि जनार्दन, जनता ही होती है तो इस इकतीस प्रतिशत को वही वाण संधान समझिये जिससे अनाचार-भ्रष्टाचार रूपी रावण का संहार होना है।

ऐसा मत समझिएगा कि लेखों में अपन केवल विरुदावलि गाते गए थे। अनेक मामलों में सकारात्मक लेकिन कटु आलोचना भी की और अक्सर पार्टी के कर्णधारों ने उसे सहज रूप से लिया भी। आखिर आलोचनाओं ने ही/भी तो पार्टी को आज यहां तक पहुचाया है।

हार्दिक शुभकामना भाजपा। कामना यही कि पार्टी हमेशा आलोचनाओं के प्रति सहिष्णु और अतिशय विनम्र बनी रहेगी। चुनावी जीत से अधिक हमेशा भाजपा के लिए चारित्रिक विजय का महत्त्व रहा है/रहना चाहिए।

पार्टी की विचारधारा वास्तव में अकेली ‘भारत की विचारधारा’ है। यही बड़ी बात है। शेष तो जब हारते थे तब जो मन्त्र था, वही आज भी होना चाहिए – क्या हार में क्या जीत में …..!

हार्दिक बधाई और विनम्र शुभ कामना!

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