सर्वेश तिवारी श्रीमुख : पिलीज डू नॉट गो टू हनिमून विदिन वन ईयर ऑफ बियाह!

हेलो ब्वायज!
पिलीज डू नॉट गो टू हनिमून विदिन वन ईयर ऑफ बियाह! अगर घूमने में ही आनन्द आता है तो गो टू मामा के घर, मौसी के घर, बड़की बुआ के घर, छोटकी दीदी के ससुराल… दे विल बिकम भेरी हैप्पी। खूब खर्च बर्च भी करेंगे वे लोग… खूब खाओ रसमलाई, रसगुल्ला, काजू कतली… बीवी को खूब खिलाओ चाट, समोसा, गोलगप्पा… इंज्वाय विथ चचेरे-ममेरे-मौसेरे भाई बहन! बट डोंट गो टू जंगल, पहाड़… इंस्टा के लिए चार वीडियो और दस फोटो के लिए इतना खतरा मोल लेना इज नॉट होशियारी ब्रो!


अगर बहुत मन है तो गो! लेकिन बियाह के साल दो साल बाद गो। विवाह के अगले ही दिन लव नहीं हो जाता भाई। समर्पण आने में समय लगता है। लभ कब उपजता है? जब कभी आपके बीमार होने पर पत्नी रात भर जाग के माथे पर पट्टी करती है। जब उसके दुखी होने पर पति कहता हैं- चिंता मत करो, हम हैं न जी! जब हम हैं तो काहे का टेंशन? तब होता है लभ! धीरे धीरे आप एक दूसरे को समझते हैं, विश्वास बढ़ता है, और तब समर्पण भी आ जाता है। यह समझ विकसित होने में समय लगता है कि हम दोनों एक गाड़ी के दो पहिये हैं, हमारा अस्तित्व, सुख-दुख एक दूसरे पर निर्भर है। तो जब यह समझ हो जाय, तब गो। और कहाँ गो? सुरक्षित जगहों पर गो। क्यों जाना उस कश्मीर में जहाँ कदम कदम पर खतरा है? सरवा कवनो दो कौड़ी का अनपढ़ जाहिल बंदूक लेकर आता है और नाम पूछ कर गोली मार देता है। क्यों जाना उन खतरनाक रास्तों वाले जंगल जंगलात और झरनों की ओर जहां पैर का फिसलना भी जान ले लेता है।
खतरा केवल इतना ही नहीं है कि नव ब्याहता आपके साथ छल कर के जान भी ले सकती है, खतरे सैकड़ों हैं। उन खतरों से खेलना कुछ धूर्त फिल्मकारों की कहानियों में भले अच्छा लगे, पर वास्तविक जीवन में वह अच्छा होता नहीं है। आपके लिए आपके जीवन से अधिक महत्वपूर्ण और कुछ भी नहीं। एक फर्जी फिल्मी नशे के लिए जान जोखिम में डालना विशुद्ध मूर्खता है दोस्त।
जो कश्मीर में मरे, उनमें तो छल नहीं था न? फिर भी जान चली गयी न? इसी शिलॉन्ग की ओर एक और जोड़ा गायब है शायद, उसकी कहानी में भी छल नहीं था। तो मामला केवल साथी के छल का ही नहीं है दोस्त! खतरे हजार हैं।
विवाह एक बड़ी ही पवित्र परम्परा है दोस्त! दो परिवार अपने बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए, सारे समाज के सामने, ईश्वर से प्रार्थना करते हुए उनकी गृहस्थी, एक नया संसार बसाने की व्यवस्था बनाते हैं। यह पूजा है। यह चूतिये आमिर खान की भाषा में केवल साथ रहने का लाइसेंस मात्र नहीं है। इसे मजाक बनाओगे, तो तुम्हारा ही मजाक बनेगा।
और ब्वायज! और ब्वायज के माँ-बाप! बियाह अपने गाँव-जवार में, अपने जान पहचान में किया जाना मंगता! एकदम जान पहचान में। बुजुर्गों का बनाया एक भी नियम गलत नहीं डार्लिंग।
एक बात और! कन्फ्यूजन इतना अधिक है कि इस पोस्ट की भी कोई भी बात पूरी तरह सटीक नहीं है। सो सोच समझ के निर्णय लो, पर डोंट गो…

Veerchhattisgarh

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