डॉ. पवन विजय : आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा के चित्रों में जनेऊ क्यों गायब है..!

बिरसा मुंडा ने वनवासियों को मिशनरियों के चंगुल से छुड़ाने और वनवासियों के लिए एक जीवन पद्धति को अपनाने का आग्रह किया जिसे बिरसायत कहा जाने लगा। बिरसायत वैष्णव परम्परा की वनवासी शाखा है जिसे भगवान बिरसा ने अपने गुरु स्वामी आनंद पांडेय से ग्रहण किया था। उन्होंने इस मत के तीन प्रमुख आचरण विधि रखी। प्रथम शाकाहार, मद्य मांस से दूर तथा स्वयं भोजन बनाकर उसका ग्रहण, द्वितीय श्वेत वस्त्र धारण करना और तृतीय जनेऊ धारण करना।

तीनों आचरणों से हीन झारखंड के राजनैतिक लोग किस मुंह से भगवान बिरसा की बात करते हैं। जिस बिरसा ने स्वयं तथा कुल परिवार को ईसाइयत से मुक्त किया, उनके विरुद्ध अभियान चलाया, सनातन धर्म का उद्घोष किया , उन बिरसा के सहारे वामियों और मिशनरियों ने हिंदुत्व के प्रति किस तरह का घृणा अभियान चला रखा है यह बड़ी आसानी से देखा जा सकता है।

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एक मजे की बात और है कि जनेऊ को प्रत्येक वनवासी के लिए अनिवार्य करने वाले भगवान बिरसा की तस्वीरों में जनेऊ गायब है और यह बात चर्चा में ही नही आती।

भगवान बिरसा मुंडा के प्रति सच्ची कृतज्ञता उनके द्वारा निर्धारित तीनों आचरणों के प्रति सम्मान ही है।

जय बिरसा जय जोहार।।

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