डॉ. पवन विजय : असंख्य फर्जी जानकारियों के सहारे आई.ए.एस. बन रहे है

जिस साम्राज्यवाद को पुख्ता करने के लिए असत्य और मनगढंत व्यस्थाओं को आधार बना कर हमारे सामने परोसा गया और आज तक हम उसे रट रट कर शिक्षा मानते रहे अपने को हीं तौहीन समझते रहे ।

आज आवश्यकता है उन शोधकार्यों की जिनको पूर्व में प्रतिबंधित या “रिजेक्ट” कर दिया गया था। सिर्फ इस वजह से कि उनका बाप अमेरिका और यूरोप तथा माई “वोट बैंक” नाराज हो जाएगा।

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मै एक उदहारण देता हूँ,

महान भारतीय गणितज्ञ एवं सर्वेक्षक श्री राधानाथ सिकदर ने दुनिया की सबसे ऊँची चोटी ” सगरमाथा ” की ठीक ठीक गणना की किन्तु इसे अंग्रेज एवरेस्ट के नाम के साथ जोड़ दिया गया और श्री सिकदर इतिहास के गुमनामी के अँधेरे में चले गए।

सिकदर की गणनाओं के आधार पर साल 1856 में एवरेस्ट का डेटा एशियाटिक सोसायटी के आगे पेश किया गया। सर्वेयर जनरल ऐंड्रू स्कॉट ने एवरेस्ट को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी बताते हुए उसका नाम पूर्व जनरल जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर रखने की सिफ़ारिश की। काफ़ी माथापच्ची के बाद 1865 में Royal Geographical Society ने चोटी का नाम माउंट एवरेस्ट रख दिया। कमाल की बात ये है कि जॉर्ज एवरेस्ट को हिमालय में कुछ ख़ास दिलचस्पी नहीं थी। इतिहासकार जान की के अनुसार उन्होंने अपनी ज़िंदगी में कभी उसे देखा तक नहीं।

अंग्रेज शुरुआत में माउंट एवरेस्ट को पीक-15 कहते थे।
बहरहाल एवरेस्ट को तो इज्जत और रसूख़ के चलते क्रेडिट मिल गया। लेकिन इसे खोजने वाले राधानाथ सिकदर का क्या? साल 1861 में ‘The Manual Of Surveying For India’ नाम से छपी पत्रिका के पहले संस्करण में में सिकदर का नाम बाबू राधा नाथ सिकदर के नाम से दर्ज था। और उन्हें कम्प्यूटिंग टीम के हेड होने का क्रेडिट भी दिया गया था.l। लेकिन जब 1875 में इस मैन्यूअल का तीसरा संस्करण छपा, सिकदर का नाम उसमें से ग़ायब हो चुका था।

लिव हिस्ट्री इंडिया नाम की वेब साइट में छपे एक आरिकल में मयूर मुल्की के लिखते हैं कि सदियों बाद 2011 में कुछ शोधकर्ताओं ने सिकदर के बारे में और जानकारी इकट्ठा करने की कोशिश की। इस खोज में वो पश्चिम बंगाल में कोलकाता से कुछ 50 किलोमीटर दूर चंदननगर पहुंचे। यहां उन्हें राधानाथ सिकदर के नाम पर एक गली का नाम मिला। पता चला कि रिटायरमेंट के बाद वो यहां आकर बस गए थे और साल 1870 में उनकी मौत हो गई। उनका घर और बाक़ी निशानियां तोड़ी जा चुकी हैं।

ऐसे ही असंख्य फर्जी जानकारियों के सहारे आज हिन्दुस्तान के बच्चे पढ़ कर आई.ए.एस. बन रहे है।

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