सुरेंद्र किशोर : मांस-मछली-मुर्गा-अंडा.. कैंसर से मरने से पहले जो भीषण दर्द…
जब तक इस देश-प्रदेश में ‘‘चोर-सिपाही का खेल’’
बंद या कम नहीं होता, तब तक हमें कुछ सावधानियां
बरतनी ही पड़ेंगी।
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यदि आप किसी भीड़- भाड़ वाले इलाके में हैं और आपके मोबाइल पर काॅल आ जाता है।
काॅल रिसीव कत्तई मत कीजिए।
(अन्यथा बगल में खड़े किसी झपट्टेमार का शिकार हो जाइएगा।
यदि थाने में जाइएगा तो वहां कहा जाएगा कि लिखकर दीजिए कि आपका मोबाइल कहीं गिर गया।)
बगल के किसी एकांत स्थान में चले जाइए।काॅल करने वाले को काॅल कर लीजिए।
यदि आप बाजार गये हैं या किसी समारोह में हैं तो अपना मोबाइल शर्ट के ऊपरी पाॅकेट में ही रखिए।शर्ट में ‘‘चोर पाॅकेट’’ बनवा लीजिए तो बेहतर है।
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जो महिलाएं मार्निंग वाॅक में निकलती हैं,क्या यह जरूरी है कि वे सोने की चेन पहन कर ही निकलें ?
यह एक महंगा सौदा साबित हो रहा है।
एक तो सोना चला जाता है,दूसरे चेन खींचते समय बेदर्दी आपकी गर्दन के छिल जाने की परवाह नहीं करता।
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पाॅकेट में बिकने वाले आंटे पर कत्तई भरोसा मत कीजिए।
संभव है ,उनमें से कुछ कंपनियों का आटा सही हो।
पर, ताजा खबर यह है कि अब उजले पत्थर को पीस कर पाॅकेट वाले आटे में मिला दिया जाता है।क्या यह खबर सही है ?
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मांस-मछली-मुर्गा-अंडा का जितना कम इस्तेमाल हो ,वह अच्छा।
अन्यथा कैंसर से मरने से पहले जो भीषण दर्द मरीज को झेलना पड़ता है,उस दर्द को कम करने की दवा का अब तक आविष्कार नहीं हुआ था।
एडवांस स्टेज का कैंसर वैसे ही लाइलाज है।
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बाजार के भोजन या बाजार से पैकेट्स या बोतल में आए किसी खाद्य पदार्थ की शुद्धता पर जल्दी भरोसा न करें।
सरकार ने कहा है कि सामान्य व्यक्ति भी किसी दुकान से मिठाई या कोई अन्य चीज खरीद कर उसकी शुद्धता की जांच सरकारी प्रयोगशाला में करवा सकता है।पर,उस मिठाई के साथ उसकी खरीद की रसीद होनी चाहिए।
सवाल है कि किसी खरीदार को रसीद मिलेगी ?
कोई सरकारी अफसर अपना भेष बदल कर किसी दुकान पर जाए और खुद जांच ले कि रसीद उसे मिलती है या नहीं।
कोई गैर-बेईमान खाद्य निरीक्षक भी पुलिस सुरक्षा के साथ जाकर ही किसी दुकान से रसीद ले सकता है।