दयानंद पांडेय : प्लेन और जीप की समानांतर दौड़ जारी थी और सब की जान सांसत में..
एक जीप प्लेन के समानांतर हवाई पट्टी पर दौड़ रही थी। न सिर्फ़ दौड़ रही थी प्लेन से बाक़ायदा होड़ किए हुए लगातार आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थी। बिना ख़तरे की परवाह किए। जीप का ड्राइवर न सिर्फ़ प्लेन से होड़ किए था बल्कि पायलट को लगातार ललकारता चल रहा था जैसे देखें कि, कैसे हम से आगे जा पाते हो, देखें तो भला? वह एक हाथ से स्टेयरिंग संभाले दूसरे हाथ से इशारों-इशारों में लगातार ललकार रहा था।
‘अगर कहीं आगे से मोड़ कर सामने आ गया या बगल में ही कहीं से टकरा गया तो समझिए प्रलय है सर।’ जीप वाले को इंगित करते हुए पायलट बौखला कर बोला।
‘तो उसको हाथ के इशारे से तुम भी रोको।’ नेता जी बोले, ‘रुकने को कहो।’
‘सर यह जीप नहीं प्लेन है!’ पायलट हड़बड़ाता हुआ चीख़ा, ‘कि उस की तरह हाथ बाहर निकाल कर इशारे करूं!’
प्लेन और जीप की समानांतर दौड़ जारी थी। और सब की जान सांसत में।
‘बस सर ईश्वर से प्रार्थना कीजिए सभी लोग।’ पायलट हड़बड़ी में चीख़ा। सामने दूर से भीड़ भी पास आती दिख रही थी।
सबके हाथ पांव फूल गए। सबने आंख मूंदी और हाथ जोड़ लिए। देवेंद्र ने देखा अपने को वामपंथी शो करने वाले कामरेड चंद्रशेखर ने भी आंख मूंदी, हाथ जोड़ा और ज़ोर-ज़ोर से हनुमान चालीसा का पाठ करने लगा। तो विनय महामृत्युंजय के मंत्र पढ़ने लगा। देवेंद्र और बाक़ी साथी आंख बंद कर निःशब्द बैठ गए। चंद्रशेखर का हड़बड़ाया हुआ हनुमान चालीसा पाठ देख कर एक क्षण के लिए देवेंद्र को हंसी आ गई। पर मृत्यु की कल्पना करते ही वह भी संयत हो कर आंख मूंद कर ईश्वर को याद करता बैठा रहा।
[ हवाई पट्टी के हवा सिंह कहानी से । पूरी कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर सकते हैं । ]
https://sarokarnama.blogspot.com/2012/02/blog-post_13.html
