“वह क्रिकेट के भगवान हैं। उन्हें देखकर ही मैंने खेलना शुरू किया। कभी नहीं सोचा था उनके इतने रिकार्ड में से एक रिकार्ड के पास आ पाऊंगा। पर उनसे मेरी तुलना बेईमानी है। आप एक ऐसे इंसान से मेरी तुलना कर रहे हो जिसे देखकर मैंने खेलना शुरू किया। जिन्होंने हमेशा मुझे शुरू के दिनों में गाइड किया। वह बल्लेबाजी में perfection की सीमा से परे थे। आप तुलना नहीं कर सकते। उनके समय ढकी हुई पिचें हुआ करती थीं, क्रिकेट रूलस और गेंदबाजी दोनों काफी अलग थे और तब गेंदबाज 4 की औसत से रन दिया करते थे और एक one day में कुल मिलाकर भी बहुत बार 400 नहीं बनता था जो आज एक innings में बनता है, वह बहुत महान हैं”।
कोहली का यही down to earth attitude आज उन्हें यहां तक लाया है। कोहली सचिन के जिस दौर की बात कर रहे हैं उस समय one day में 15 ओवर का ही फील्डिंग restriction होता था जो अब पूरे मैच में रहता है। 20 आवर का power play जैसा कोई rule नहीं था। ना ही दो नई गेंदे हुआ करती थीं। DRS नहीं था। ना जाने कितनी बार steve bucknor जैसे अम्पायर्स ने सचिन को गलत out दिया।
उस समय के गेंदबाजों पर नजर डालें तो ऑस्ट्रेलिया के पास मैकग्राथ, ब्रेट ली, गिल्सपी, कासप्रोविच, शेन वार्न, पाकिस्तान के पास वसीम, वकार, अख्तर, रज्जाक, स्क्लैन,मुश्ताक अहमद,श्रीलंका के पास वास, मुरली, दक्षिण अफ्रीका के पास पोलक, डोनाल्ड, क्लूजनर, कैलिस, स्टेयन, न्यूजीलैंड के पास बांड, वेटोरी, क्रिस केयर्ंस, वेस्टइंडीज के पास वाल्श, एंब्रोस और यहां तक जिम्बावे के पास हीथ स्ट्रीक, ओलंगा, नील जानसन जैसे गेंदबाज थे। सचिन के पास nets में कभी भी इनकी बराबरी का कोई bowler ना था practice करने के लिए। ना भारत का बोर्ड तब bowling machines खरीद सकने की आर्थिक हालत में था।
भारत के पास अजरूदीन, नयन मोंगिया, अजय जडेजा जैसे मैच फिक्सर थे। सारा बोझ अकेले सचिन पर होता था। सचिन रन भी बनाए। पारी की शुरवात भी करे और मैच भी खतम कर कर दे नहीं तो हार जायेंगे। याद आता है चेन्नई का वो मैच जब पाकिस्तान के खिलाफ 16 रन चाहिए थी और सचिन 136 बनाकर आउट हुए और 3 विकेट बाकी थीं। टीम 12 रन से टैस्ट मैच हार गई।
वह दौर अलग था। उस समय ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान, इंग्लैंड के बोर्ड्स पर अधिक पैसा था। वह खिलाड़ियों पर हमसे अधिक invest करते थे। उनकी ट्रेनिंग भी उसी लेवल पर थी। ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, अफ्रीका स्पोर्ट्स साइंस को अपना चुके थे।
ऐसे हालातों में एक साधारण मराठी ब्राह्मण मास्टर के घर जन्मे सचिन ने भारत में अपने दम पर क्रिकेट को खड़ा किया। सचिन की महानता उनके रिकार्ड या रन से नहीं बल्कि क्रिकेट का globalization और commercialization करने से है। वह विश्व क्रिकेट के पहले global super star थे जिन्हें देखने लोग हजारों की फ्लाइट पकड़ कर और हजारों का टिकट लेकर मैच देखने पहुंचा करते थे। इन्होंने क्रिकेट को football की तरह brands से जोड़ा। क्रिकेट में आया पैसा सचिन की वजह से ही है जिससे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट आज फल फूल रहा है और ICC और BCCI के पास sponsers हैं।
आज फुटबाल की दुनिया में मैसी हैं । पहले माराडोना थे। उनके देश में लोग मैसी और माराडोना दोनों का सम्मान करते हैं। माराडोना ने वहां फुटबाल को जीवंत किया। मैसी ने उसे नई उड़ान दी। भारत की क्रिकेट में माराडोना वाला काम सचिन ने किया। और फिर गांगुली, धोनी, रोहित, कोहली उसे नई पहचान देते चले गए।
किसी भी इंजेमांम, लारा या पोंटिंग के लिए सर डॉन ब्रैडमैन ने नहीं कहा की यह मेरी तरह खेलता है सिर्फ सचिन के लिए कहा था। इसलिए सचिन सिर्फ एक है। एक ही रहेंगे। सचिन ने जो बाग बनाया था वहां धोनी, रोहित, कोहली जैसे फूल खिलते रहेंगे हर युग में। पूरी उम्मीद है की कोहली सचिन के 100 शतक के रिकार्ड को भी तोड़ेंगे।
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