नितिन त्रिपाठी : यह यहाँ के मूल अधिकार में आता है कोई बग़ैर बंदूक के जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता..
हर देश का अपना अपना कल्चर और मोटो होता है – अमेरिका का है न्यू टेक्नोलॉजी और बंदूक. देश की स्थापना ही इसी बेसिक प्रिंसिपल पर हुई है. एक औसत अमेरिकन इतना एग्रेसिव होता है उसके पास इतने उन्नत हथियार होते हैं कि पाकिस्तान की सेना के पास वैसे न मिलेंगे. कल्चरल डिफरेंस की वजह से हमें लगता है कि वह बंदूक रखने पर बैन क्यों नहीं करते जबकि यह यहाँ के मूल अधिकार में आता है कोई बग़ैर बंदूक के जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता. सोशल मीडिया पर फनी फनी पोस्ट पढ़ता हूँ कि गन लॉबी आदि, जैसे कि उस लॉबी के दबाव में बंदूक रखी जाती है. ये वैसे ही है जैसे अमेरिकन मीडिया को लगता है कि भारत में लोग मंदिर पूजा अर्चना आदि सरकार और धार्मिक लॉबी के दबाव में करते हैं. ब्रो ये लाइफस्टाइल है कल्चर है यहाँ का.
यही दो बेसिक्स देश की सारी पॉलिसीज़ में हैं. दुनिया की लगभग सभी न्यू टेक्नोलॉजी अमेरिका में इंवेंट होती आई हैं पिछले दो सौ सालों से. यहाँ रोड पर खड़े होकर चिल्ला दो कि मैंने पानी से पेट्रोल बनाने का फार्मूला विकसित कर लिया है तो सौ लोग सुनने वाले है और पाँच लोग पैसा लेकर आ जाएँगे.
एज ए कंट्री यह बिल्कुल मोटे तौर पर दो काम करता है. पहला सदैव न्यू टेक्नोलॉजी से शेष विकसित देश से दस साल आगे चलो. और फिर जब एक बार तकनीक विकसित हो जाये तो बन्दूक के दम पर यह इंस्योर कर लो कि दुनिया तुम्हारी बात सुने. साथ वालों का फायदा कराओ और बीच बीच में नए टारगेट ढूँढते रहो अपना भौकाल बनाये रखने के लिए.
लाइक इट ओर हेट इट, यह पालिसी सफल भी है. इंग्लैंड जब विश्व का अगुआ था तो वह विशुद्ध व्यापारी थे. उनका एक मकसद होता था लूटना, स्वयं कुछ न करना, दूसरे देश जो करें उन्हें लूटना. चाइना अगुआ बनता है उसका एक मकसद सारी ज़मीन हड़प उस पर अपना कब्ज़ा कर लेना और दुनिया को अपने कारख़ाने का मज़दूर बना देना. बीच बीच में इस्लामिक देश भी उछल कूद करने लगते हैं – मक़सद एक मज़हब फैलाना. अमेरिका न्यू टेक और बन्दूक के दम पर पिछले सत्तर सालों से बैलेंस रखे हुवे है. कब तक – जब तक कोई नया दादा न मिल जाये दुनिया को.
-साभार।
