सुरेंद्र किशोर : बोफोर्स और 2 जी घोटालों के हश्र की असली कहानी

ये तथ्य आपको मुख्य धारा के मीडिया में पढ़ने-देखने को नहीं मिलेंगे।इसलिए थोड़ा समय निकाल कर पढ़ लीजिए।

हर चुनाव के समय कांग्रेस ये सवाल उठाती है।
आज भी उठा रही है।
बोफोर्स घोटाले की जांच में क्या मिला ?
2 जी घोटाले में क्या मिला ?
खोदा पहाड़ निकली चुहिया ?!!
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क्या यह सच है कि इन मामलों में कुछ नहीं मिला ?
यह सच नहीं है।
जानिए असलियत
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बोफोर्स दलाली केस
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6 नवंबर, 2019 को बोफोर्स दलाल विन चडढा के पुत्र हर्ष चडढा के मुम्बई स्थित फ्लैट को भारत सरकार के आयकर महकमे ने नीलाम कर 12 करोड़ रुपए वसूल लिए।
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ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भारत सरकार के आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण ने मनमोहन सिंह के प्रधान मंत्रित्वकाल में ही सबूतों के आधार पर यह कह दिया था कि बोफोर्स तोप सौदे में क्वात्रोचि और विन चडढा को 41 करोड़ रुपए की रिश्वत(दलाली) दी गई थी।
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एक दलाल से पैसे तो वसूल लिए गए।
इटालियन दलाल क्वात्रोचि को मिले दलाली के पैसे स्विस बैंक की लंदन शाखा में जमा थे।
पहले तो क्वात्रोचि को भारत से भागने दिया गया।
उसके खाते को भारतीय अदालत ने जब्त कर लिया था।
पर ,बाद में मनमोहन सरकार ने सन 2006 में यहां से एक लाॅ अफसर श्री दत्ता को भेज कर उस जब्त खाते को चालू करवा दिया और क्वात्रोचि उसमंे ंसे पैसे निकाल कर फरार हो गया।
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इस बीच भी इस केस में बहुत सी कहानियां हैं जो भारत की राजनीति के स्याह और सफेद पक्षों को अच्छी तरह उजागर करती हैं।याद रहे कि तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी यह कहते रहे हैं कि बोफोर्स सौदे में कोई दलाली नहीं ली गयी।


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2 जी घोटाला केस खत्म नहीं हुआ है।
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बल्कि दिल्ली हाई कोर्ट में अभी विचाराधीन है।
सी.बी.आई.ने लोअर कोर्ट के जजमेंट के खिलाफ अपील कर रखी है।
हां, सन 2024 में यदि राजग विरोधी सरकार केंद्र में बन गयी तो उसे समाप्त किया जा सकता है।
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2 जी घोटाले से संबंधित मुकदमे की जानकारी संक्षेप में–
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2 जी. स्पैक्ट्रम घोटाला मुकदमे में ए.राजा और कनिमोझी को दोषमुक्त करते हुए दिल्ली स्थित विशेष सी.बी.आई. जज ओ.पी.सैनी ने 2017 में कहा था कि कलाइनगर टी.वी.को कथित रिश्वत के रूप में शाहिद बलवा की कंपनी डी.बी.ग्रूप द्वारा 200 करोड़ रुपए देने के मामले में अभियोजन पक्ष ने किसी गवाह से जिरह तक नहीं की।
कोई सवाल नहीं किया।
याद रहे कि उस टीवी कंपनी का मालिकाना करूणानिधि परिवार से जुड़ा है।
मान लिया कि कोई सवाल नहीं किया ।क्योंकि शायद मनमोहन सरकार के कार्यकाल में सी.बी.आई. के वकील को ऐसा करने की अनुमति नहीं रही होगी।
पर, खुद जज साहब के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम में ऐसे ही मौके के लिए धारा -165 का प्रावधान किया गया है।आश्चर्य है कि धारा -165 में प्रदत्त अपने अधिकार का सैनी साहब ने इस्तेमाल क्यों नहीं किया।
संभवतः इस सवाल पर अब हाई कोर्ट में विचार होगा कि
जज ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा -165 में मिली शक्ति का उपयोग क्यों नहीं किया जबकि उनके पास यह सूचना थी कि
इस घोटाले में 200 करोड़ रुपए की रिश्वत देने का आरोप लगा हैै ?
इस केस का यह सबसे प्रमुख सवाल है।
उक्त धारा के अनुसार- ‘न्यायाधीश सुसंगत तथ्यों का पता चलाने के लिए या उनका उचित सबूत अभिप्राप्त करने के लिए ,किसी भी रूप में किसी भी समय, किसी भी साक्षी या पक्षकारों से, किसी भी सुसंगत या विसंगत तथ्य के बारे में कोई भी प्रश्न, जो वह चाहे पूछ सकेगा तथा किसी भी दस्तावेज या चीज को पेश करने का आदेश दे सकेगा और न तो पक्षकार और न उनके अभिकत्र्ता हकदार होंगे कि वे किसी भी ऐसे प्रश्न या आदेश के प्रति कोई भी आक्षेप करंे , न ऐसे किसी भी प्रश्न के प्रत्युत्तर में दिए गए किसी भी उत्तर पर किसी भी साक्षी की न्यायालय की इजाजत के बिना प्रति परीक्षा करने के हकदार होंगें।’
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दिल्ली हाईकोर्ट को तय करना है कि जज सैनी साहब का फैसला सही था या गलत।
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निष्कर्ष–
बोफोर्स तथा अन्य घोटालों के कारण कांग्रेस सन 1989 के लोक सभा चुनाव में हार कर सत्ता से बाहर हो गयी।
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2 जी तथा कोयला घोटाले जैसे घोटालों के कारण कांगे्रस सन 2014 का लोक सभा चुनाव हार गई और सत्ता से बाहर हो गयी।
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हो रहे राज्यों के चुनाव और सन 2024 के लोक सभा चुनाव में आम मतदातागण जिस दल या नेता को भ्रष्ट मानेंगे,उसे सत्ता से बाहर कर सकतें हैं।

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