कौशल सिखौला : एक अकेला सब पर भारी बनाम इंडिया

एनडीए की दिल्ली बैठक में 38 दलों ने एकजुटता का प्रदर्शन किया । विपक्षी एकता के बावजूद एनडीए का हौसला कितना बुलंद है , यह बात प्रधानमंत्री मोदी के लंबे भाषण से साफ हुई । एनडीए की बैठक में कईं दल आए । इनके अलावा भी बीजेडी , बसपा आदि कुछ दल ऐसे हैं जो विपक्षी गठबंधन के साथ नहीं और प्रकारांतक से एनडीए का समर्थन कर सकते हैं ।

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एनडीए पहले से मौजूद है , जबकि विपक्ष ने यूपीए का नाम मिटाकर इंडिया नामकरण कर दिया है । एनडीए की बैठक उसी दिन बुलाना जिस दिन विपक्षी दलों की दूसरी बैठक थी , कुछ संकेत जरूर देता है । कल की दो बैठकों से यह बात साफ हो गई है कि 2024 एक धड़ा मोदी को तीसरी बार लाना चाहता है तो दूसरा मजबूती के साथ इंडिया बैनर के तले आकर सीधे मुकाबले की चुनौती पेश कर रहा है ।

ये INDIA नाम कहां से आया , पूछा जा रहा है ?
आदत पुरानी है !
याद है न आपको देवकांत बरुआ ?
पुरानी पीढ़ी को तो याद ही होगा उनका नाम ?
अरे वही आपातकाल के जमाने वाले कांग्रेस अध्यक्ष ?

जिन्होंने नारा दिया था ” इंदिरा इज इंडिया इंडिया इज इंदिरा ” !
तो उसी तर्ज पर यूपीए का नाम बदलकर रख दिया INDIA ?
UPA की अध्यक्ष कल तक थी सोनिया गांधी , तो क्या अगली मुंबई बैठक में INDIA की अध्यक्ष भी सोनिया होंगी ?
यह नाम तो उन्हीं ने दिया है !

गठबंधन का नाम बदला तो यूपीए का नाम ही दफ्न हो गया !
जाहिर है सोनिया गांधी के पास जो संयोजक का पद था , वह समाप्त हुआ !
आने वाले कल की पिक्चर भी साफ हुई !
आगे चलकर एनडीए वाले कहेंगे कि हम BHARAT , विपक्ष वाले कहेंगे कि हम INDIA ?

तो 2024 का संग्राम भारत बनाम इंडिया के बीच होगा ?
एनडीए का चेहरा मोदी तो इंडिया का चेहरा कौन ?
राहुल , नीतीश , ममता , शरद पवार या केजरीवाल ?
अजीब लगा जब खड़गे ने कहा कि हमारा लक्ष्य पीएम बनना नहीं !
तो क्या कांग्रेस ने खुद को पीएम की रेस से बाहर कर लिया है ?

एक बात साफ है । नीतीश कुमार ने जो शुरुआत की थी वह खासा रंग लाएगी । परंतु उन्हें पीएम फेस बनाने की बात कोई नहीं कर रहा , न आगे करेगा । उल्टे उनकी सीएम कुर्सी संकट में पड़ गई है । माना कि पीएम उम्मीदवार का चयन और एक एक सीट पर तालमेल काफी कठिन काम है । आश्चर्य होगा कि आगे चलकर विपक्ष ने यह तालमेल सचमुच कर लिया ।

अलबत्ता इंडिया गठबंधन बना रहा तो एनडीए बनाम इंडिया का मुकाबला काफी दिलचस्प मोड़ पर पहुंच जाएगा । तो क्या इन्हीं आशंकाओं के चलते ” एक अकेला सब पर भारी ” का नारा देने वाली भाजपा को बेंगलुरु बैठक वाले दिन ही दिल्ली में विस्तारित एनडीए की बैठक बुलाकर जवाबी शक्ति प्रदर्शन करना पड़ा ?

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