NRI अमित सिंघल : पुलिस कर्मी 36 घंटे की ड्यूटी.. वर्क-लाइफ बैलेंस, ट्रांसफर-पोस्टिंग अपने होम टाउन में की दुहाई..
भारत में अधिकांश लोगो को भ्रांति होती है कि विदेशी लोग आलसी होते है; 9 से 5 की नौकरी करते है; बीच में दो घंटे का लंच ब्रेक लेते है; दारु पीकर, नशा करके लोटे रहते है।
भारत में जरा सा कार्य अधिक करने को दे दिया जाए, तो वर्क-लाइफ बैलेंस की दुहाई देने लगते है। ट्रांसफर-पोस्टिंग अपने होम टाउन में चाहते है।
जब विदेश में पढ़ा और बाद में कार्य करना शुरू किया तो देखकर आश्चर्य हुआ कि युवा कर्मी कितनी कमरतोड़ मेहनत करते है। सुबह से लेकर रात तक कार्य में व्यस्त रहते है। ऑफिस में अपनी डेस्क पर कॉफ़ी पीते है, भोजन करते है। भोजन भी क्या – बस सैंडविच, दही, केक एवं फल खा लेते है और कंप्यूटर स्क्रीन से आँख नहीं हटाते।
यहाँ तक कि कई क्षेत्र में (जैसे इन्वेस्टमेंट बैंकिंग, एकाउंटिंग, रिसर्च, जूनियर डॉक्टर, सर्जन, mergers and acquisitions, शांति एवं सुरक्षा इत्यादि) में लोग रात्रि 2-3 बजे तक कार्य करते है और अगली सुबह 8 बजे पुनः उपस्थित। इनमे से कई महिला कर्मी होती है, बाल-बच्चे भी होते है, कुछ केसो में बच्चो को तगड़ी बीमारी भी होती है। लेकिन पति या पार्टनर या किसी परिवार के सदस्य के सहयोग से यह समय निकाल ले जाती है। अगर कोई सहयोग करने वाला नहीं है, तो बच्चो को कार्यालय या सामुदायिक डे केयर सेंटर में छोड़ देती है। रात्रि में कोई बेबी सिटर की व्यवस्था करती है जो बच्चे को डे केयर सेंटर से घर ले जाती है।
श्रीमती जी की एक समय सरकारी हॉस्पिटल में 36 घंटे की ड्यूटी लगती थी। आधे दिन के आराम के बाद अगले दिन पुनः 36 घंटे की ड्यूटी शुरू हो जाती थी। उसी समय वह माँ भी बनाने वाली थी। अभी भी श्रीमती जी के लिए 12-13 घंटे प्रतिदिन कार्य करना एक सामान्य बात है। उनकी एक सहकर्मी स्पेन में डॉक्टर है। अभी दूसरे बच्चे की माँ बनी है लेकिन देर रात्रि तक कार्य करती रहती है। दूसरा बच्चा होने के एक महीने बाद ही अपनी थीसिस को डिफेंड किया जिसकी एक गाइड श्रीमती जी भी थी।
कार्यालय के कार्य के बाद घर का भी काम करना होता है। एक आम अमेरिकी-यूरोपियन घर किसी भी दिन एक आम भारतीय घर की तुलना में साफ़-सुथरा एवं व्यवस्थित मिलेगा। रसोई एवं बाथरूम एकदम चमचमाता हुआ। कही कोई दाग-धब्बा या काई नहीं दिखाई देगी। जबकि भारत में गृहकार्य के लिए सेवक उपलब्ध है।
एक उद्यमी मित्र सोशल मीडिया पर हैं। उनसे व्यक्तिगत रूप से भी मिल चुका हूँ। उनका बिज़नेस ट्रवेल, होटल, रेस्टोरेंट इत्यादि दिखाई देगा; समृद्धि दिखाई देगी। नहीं दिखाई देगा तो उनकी कमरतोड़ मेहनत। वह 16-18 घंटे प्रतिदिन कार्य करते है।
कई पुलिस कर्मी 36 घंटे की ड्यूटी करते है। कड़ी दोपहर हो या ठंडी रात, सड़क पर व्यवस्था बनाते हुए मिल जाएंगे। खुले आसमान के नीचे भोजन करेंगे। आप 31 दिसंबर की रात को पार्टी करेंगे, जबकि पुलिस आपकी सुरक्षा में तैनात रहेगी। इनमे से कई के बॉस खड़ूस एवं निर्दयी भी होंगे।
विदेश में वर्क-लाइफ बैलेंस पर जोर दिया जाता है। इसके बाद भी लोग परिश्रम करते है; 12-15 घंटे कार्य करते है।
कार्यालय में workplace harassment (कार्यस्थल उत्पीड़न), सेक्सुअल harassment या फिर लिंग, धर्म या वर्ग के आधार पर भेदभाव रोकने के लिए कठोर दिशानिर्देश है। सभी स्टाफ को ट्रेनिंग दी जाती है कि कैसे इन harassment को पहचाने और उससे निपटे; कहाँ और कैसे शिकायत करे। मैं स्वयं workplace harassment को पहचानने एवं उससे निपटने का सर्टिफाइड ट्रेनर हूँ।
यह मान सकता हूँ कि बॉस खड़ूस हो; जान-बूझकर परेशान करता हो या करती हो। मेरे भाग में भी खड़ूस बॉस आये थे। एक तो इतनी निर्मम थी कि मैंने तो फिर भी किसी तरह समय काट लिया, उस समय भारत सरकार के वरिष्ठतम बाबू की पुत्री को भी रुला दिया। रुलाना गलत होगा – वह सहकर्मी फफक-फफक कर रोइ। रोते हुए बतलाया कि उस समय उनके वृहद परिवार के आठ लोग IAS-IPS -IRS थे।
लेकिन यह भी जीवन चक्र का एक पड़ाव है जो चला जाएगा।