प्रहलाद सबनानी : राम-कृष्ण के देश में एकात्म दर्शन पर आधारित सर्वसमावेशी सनातन संस्कृति ही भारत का मूल तत्व

भारत ने अन्य देशों में हिंदू धर्म को स्थापित करने अथवा उनकी जमीन हड़पने के उद्देश्य से कभी भी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया है। परंतु, वर्ष 1947 में, लगभग 1000 वर्ष के लम्बे संघर्ष में बाद, भारत द्वारा परतंत्रता की बेढ़ियों को काटने में सफलता प्राप्त करने के पूर्व भारत की हिंदू सनातन संस्कृति पर बहुत आघात किए गए और अरब आक्रांताओं एवं अंग्रेजों द्वारा इसे समाप्त करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई थी। परंतु, भारतीय जनमानस की हिंदू सनातन संस्कृति के प्रति अगाध श्रद्धा एवं महान भारतीय संस्कृति के संस्कारों ने मिलकर ऐसा कुछ होने नहीं दिया। भारत में अनेक राज्य थे एवं अनेक राजा थे परंतु राष्ट्र फिर भी एक था। भारतीयों का हिंदू सनातन संस्कृति एवं एकात्मता में विश्वास ही इनकी विशेषता रही है। आध्यात्म ने हर भारतीय को एक किया हुआ है चाहे वह देश के किसी भी कोने में निवास करता हो और किसी भी राज्य में रहता हो। आध्यात्म आधारित दृष्टिकोण है इसलिए हम सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। आध्यात्मवाद ने ही भारत के नागरिकों की रचना की है और आपस में जोड़ा है। परंतु अभी हाल ही में भारत के अंदर एवं वैश्विक स्तर पर कुछ इस प्रकार की घटनाएं घटित हो रही हैं जिसके चलते एक बार पुनः यह आभास हो रहा है कि कहीं यह घटनाएं हिंदू सनातन संस्कृति एवं सनातन चिंतन पर विपरीत प्रभाव तो नहीं डाल रही हैं।

भारत हिंदू सनातन संस्कृति को मानने वाले लोगों का देश है और यह राम और कृष्ण का देश है, इसलिए यहां हिंदू परिवारों में बचपन से ही “वसुधैव कुटुम्बमक”, “सर्वे भवन्तु सुखिन:” एवं “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” की भावना जागृत की जाती है जिसके चलते भारत में जीव, जंतुओं एवं प्रकृति को भी देवता का दर्जा दिया जाता है। दरअसल हिंदू सनातन संस्कृति एकात्म दर्शन पर आधारित सर्वसमावेशी है। इसमें ईश्वरीय भाव जाहिर होता है। जो मेरे अंदर है वही आपके अंदर भी है। हिंदू सनातन संस्कृति, अन्य संस्कृतियों को भी अपने आप में आत्मसात करने की, क्षमता रखती है।

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भारत में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग आपस में एक दूसरे के धर्म का आदर करते हुए रहते आए हैं परंतु हाल ही के समय में ऐसा ध्यान में आता है कि भारत में जनसंख्या असंतुलन पैदा कर भारत के हिंदू सनातन चिंतन पर आघात किए जाने का प्रयास हो रहा है। आज भारत में प्रजनन दर हिंदूओं के लिए 1.94 है, सिखों के लिए 1.61 है, बौद्धों के लिए 1.39 है और जैनियों के लिए 1.60 है। वहीं मुसलमानों के लिए 2.36 है तो ईसाईयों के लिए  1.88 है। दूसरे, भारत के पड़ौसी देशों के माध्यम से रोहंगिया मुसलमानों को भारत में बहुत बड़ी मात्रा में प्रवेश कराया जा रहा है। तीसरे, हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कर मुसलमान अथवा ईसाई बनाया जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष लगभग 8 लाख हिंदुओं का धर्मांतरण कर मुसलमान बनाया जा रहा है। भारत में लव जिहाद भी इसी दृष्टि से फलता फूलता दिखाई दे रहा है। विशेष रूप से वर्ष 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से तो भारत में हिंदुओं की स्थिति लगातार दयनीय होती जा रही है। आज भारत के 9 प्रांतो में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं एवं इस्लामी/ईसाई मतावलंबी बहुमत में आ गए हैं। जैसे, नागालैंड मे 8%, मिजोरम में 2.7%, मेघालय में 11.5%, अरुणाचल प्रदेश में 29%, मणिपुर में 41.4%, पंजाब में 39%, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में 32%, लक्षद्वीप में 2%, लदाख में 2% आबादी हिंदुओं की रह गई है। कुछ राज्यों में तो हिंदुओं की आबादी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है। जिन जिन क्षेत्रों, जिलों अथवा प्रदेशों में इस्लाम को मानने वाले अनुयायियों की संख्या बढ़ी है उन उन क्षेत्रों, जिलों एवं प्रदेशों में हिंदुओं द्वारा निकाले जाने वाले धार्मिक जुलूसों पर पत्थरों से आक्रमण किया जाता है एवं हिंदुओं को हत्तोत्साहित किया जाता है ताकि वे अपने धार्मिक आयोजनों को नहीं कर पाएं। लगभग इन्हीं कारणों के चलते वर्ष 1975 में इंडोनेशिया में ईसाई बहुल ईस्ट तिमोर इलाका एक अलग देश बन गया, वर्ष 2008 में सर्बिया में मुस्लिम बहुल कोसावा इलाका एक अलग देश बन गया तथा वर्ष 2011 में सूडान से ईसाई बहुल इलाका दक्षिण सूडान नामक एक अलग देश बन गया।

भारत में हिंदू सनातन संस्कृति का गौरवशाली इतिहास विश्व में सबसे पुराना माना जाता है। यदि भारत की इतनी प्राचीन एवं महान हिंदू  सनातन संस्कृति के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि सनातन संस्कृति एवं सनातन वैदिक ज्ञान वैश्विक आधुनिक विज्ञान का आधार रहा है। इसे कई उदाहरणों के माध्यम से, हिन्दू मान्यताओं एवं धार्मिक ग्रंथों का हवाला देते हुए, समय समय पर सिद्ध किया जा चुका है। इसी भारतीय सनातन चिंतन के आधार पर यह कहा जाता है कि भारत एक राष्ट्र के रूप में सनातन है, पुरातन है और हजारों/लाखों वर्षों से चल रहा है। परंतु भारत के भी हाल ही के इतिहास पर यदि नजर डालें तो आभास होता है कि जब जब देश के कुछ इलाकों में हिंदुओं की संख्या कम हुई है तब तब या तो देश का विभाजन हुआ है अथवा उन इलाकों में शेष बचे हिंदुओं को या तो मार दिया गया है या हिंदुओं को अन्य धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया गया है अथवा उन इलाकों से हिंदुओं को भगा दिया गया है।  जैसे वर्ष 1947 में पाकिस्तान, वर्ष 1971 में बंगला देश, वर्ष 1990 में जम्मू एवं काश्मीर में इस प्रकार की दुर्घटनाएं हिंदुओं के साथ घट चुकी हैं। आज केरल, बंगाल, उत्तर प्रदेश के कुछ जिले, दिल्ली के कुछ इलाके इसी आग में जल रहे हैं। जबकि हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि बर्मा, श्रीलंका, अफगानिस्तान आदि भी कभी भारत के ही भाग रहे हैं।

अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया, आदि देशों में हाल ही के समय में हिंदुओं पर हिंसा बढ़ी है। आज पूरी दुनिया में भारत व खासकर हिंदू समाज के खिलाफ झूठा विमर्श स्थापित करने का प्रयास हो रहा है। हिंदुओं को अल्पसंख्यकों व दलितों पर उत्पीड़न करने वाली कौम के रूप में दिखाने का प्रयास हो रहा है। जबकि आज भारत की राष्ट्रपति एक वनवासी महिला है, पंजाब में मुख्यमंत्री एक सिक्ख है एवं नागालैंड, मिजोरम और मेघालय में मुख्यमंत्री ईसाई हैं।

वर्ष 1947 में भारत द्वारा राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित करने के चलते भी सनातन चिंतन पर आघात होता रहा है। धर्मनिरपेक्षता की नीति के अंतर्गत विशेष रूप से मुस्लिम मतावलंबियों को तो बहुत सुविधाएं प्रदान की जाती रही हैं परंतु  हिंदू धर्मावलम्बियों को उनके अधिकारों से वंचित किया जाता रहा है। जैसे, मुस्लिम वक्फ बोर्ड जमीनों पर अधिकार कर कहीं भी मजारें एवं मस्जिदें बना लेते हैं वहीं हिंदूओं के मंदिरों को राज्य सरकारों के प्रशासन के अंतर्गत चलना होता है एवं इन मंदिरों को चड़ावे एवं दान के माध्यम से होने वाली आय पर भी इन सरकारों का नियंत्रण रहता है। आज देश में वक्फ बोर्ड की जमीनें, केंद्र सरकार के रेल्वे विभाग को छोड़कर, सम्भवतः सबसे अधिक हो गई हैं।

देश में, भारतीय सिने जगत के माध्यम से एवं अन्यथा भी, माहौल ही कुछ इस प्रकार का बनाया गया ताकि हिंदू धर्म की मान्यताओं को दकियानूसी एवं कालकल्पित कहानियां सिद्ध किया जा सके। अंग्रेजों एवं आक्रांताओं की इन कुत्सित चालों में हिंदू धर्म के कुछ अनुयायी भी फंस गए एवं अपने बच्चों को पाश्चात्य मान्यताओं की ओर मोड़ दिया एवं इस प्रकार देश में पाश्चात्य मान्यताओं को बढ़ावा देने वाला एक वर्ग पैदा हो गया है जो भारतीय परम्पराओं को छोड़कर भौतिकवादी जीवन जीने में ही अपनी भलाई समझता है।

आज भी आतंकवादी संगठन एवं विदेशी ताकतें जो भारत को अस्थिर करना चाहते हैं वे इसी परिकल्पना पर अपना कार्य प्रारम्भ करते हैं एवं समाज के विभिन्न वर्गों को आपस में लड़ाने का प्रयास करते नजर आते हैं। हाल ही के समय में न केवल भारत बल्कि विश्व के कई देशों यथा, स्वीडन, ब्रिटेन, फ्रांस, नार्वे, भारत, अमेरिका आदि में आतंकवाद की समस्या ने सीधे तौर पर इन देशों के आम नागरिकों को एवं कुछ हद्द तक इन देशों की अर्थव्यवस्था को विपरीत रूप से प्रभावित किया है। आतंकवाद के पीछे धार्मिक कट्टरता को मुख्य कारण बताया जा रहा है और आश्चर्य होता है कि पूरे विश्व में ही आतंकवाद फैलाने में एक मजहब विशेष के लोगों का अधिकतम योगदान नजर आ रहा है। इसके कारण खोजने पर ध्यान जाता है कि इस मजहब विशेष की एक किताब में ही यह बताया गया है कि इन्हें इस्लाम के अलावा अन्य कोई धर्म बिलकुल स्वीकार नहीं है और इस्लाम को नहीं मानने वाले लोगों को इस पृथ्वी पर रहने का कोई अधिकार नहीं है।  ब्रिटेन की लगभग 7 करोड़ की आबादी में 4 प्रतिशत मुस्लिम हैं लेकिन ब्रिटेन की जेलों में कैदियों की संख्या में मुस्लिम 18 प्रतिशत हैं। वहीं दूसरी ओर इंग्लैंड एवं वेल्स की कुल आबादी में दो प्रतिशत हिंदू हैं, किंतु कोई भी हिंदू जघन्य अपराध में आरोप में जेल में नहीं पाया जाता है।

अब तो विश्व के कई विकसित देशों को भी यह आभास होने लगा है कि भारतीय सनातन  हिंदू संस्कृति इस धरा पर सबसे पुरानी संस्कृतियों में एक है और भारतीय वेदों, पुराणों एवं पुरातन ग्रंथों में लिखी गई बातें कई मायनों में सही पाई जा रही हैं। इन पर विश्व के कई बड़े बड़े विश्वविद्यालयों में शोध किए जाने के बाद ही यह तथ्य सामने आ रहे है।

प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940
ई-मेल – psabnani@rediffmail.com

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अतिथि संपादक

प्रहलाद सबनानी : आर्थिक विकास की दृष्टि से एक दशक ही नहीं बल्कि अगली पूरी सदी ही भारत की होगी..

November 16, 2022  Prakash Sahu  0 Comments Edit

अभी हाल ही में अमेरिका के निवेश के सम्बंध में सलाह देने वाले एक प्रतिष्ठित संस्थान मोर्गन स्टैनली ने अपने एक अनुसंधान प्रतिवेदन में यह बताया है कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास की दृष्टि से अगला दशक भारत का होने जा रहा है। इस सम्बंध में उक्त प्रतिवेदन में कई कारण गिनाए गए हैं।
भारत में केंद्र सरकार ने विनिर्माण के क्षेत्र में बड़े आकार की कई नई इकाईयों को स्थापित करने के उद्देश्य से हाल ही के समय में कई निर्णय लिए हैं, जिनका उचित परिणाम अब दिखाई देने लगा है। इनमे शामिल हैं, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना, कम्पनियों द्वारा अदा की जाने वाली कर की राशि को 25 प्रतिशत तक कम करना और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना, ईज आफ डूइंग बिजिनेस के क्षेत्र में कई निर्णय लेना, आदि, शामिल हैं। इसके चलते चीन से विनिर्माण के क्षेत्र में कई इकाईयां भारत में अपना कार्य प्रारम्भ करने जा रही हैं। भारत में वर्तमान में चीन की तुलना में श्रम लागत भी बहुत कम है।
कोरोना महामारी के दौरान सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों के कामकाज में एक विशेष परिवर्तन दिखाई दिया था। इन संस्थानों ने अपने कर्मचारियों को कार्यालय में न आकर, अपने घर से कार्य करने की छूट प्रदान की थी। यह परिवर्तन भारत के हित में कार्य करता दिख रहा है क्योंकि कर्मचारी यदि कार्यालय के स्थान से घर में ही कार्य कर सकता है तो उसे सिलिकोन वैली (केलीफोरनिया) में रहने की क्या जरूरत, वह तो मुंबई, बैंगलोर, हैदराबाद, चेन्नई, दिल्ली एवं पुणे में रहकर भी अपना कार्य बहुत आसानी से कर सकता है। इससे कम्पनी को बहुत बचत हो सकती है क्योंकि अमेरिका में वेतन का स्तर भारत की तुलना में बहुत अधिक रहता है। इस प्रकार, बहुत बड़े स्तर पर सूचना प्रौद्योगिकी कम्पनियां अपने कार्य को मुंबई में निवास कर रहे भारतीय इंजिनीयरों से करवाने पर गम्भीरता से विचार कर रही हैं। बल्कि कुछ कम्पनियों ने तो तकनीकी कार्य को भारत में आउट्सॉर्स करना शुरू भी कर दिया है। इससे भारत में तकनीकी कार्य के क्षेत्र में रोजगार के बहुत अधिक अवसर निर्मित होने की प्रबल संभावनाएं बन रही हैं। इससे भारत में अधिक आय वाले परिवारों की संख्या में भारी वृद्धि दृष्टिगोचर होगी। भारत में वर्तमान में 50 लाख परिवारों की आय 35000 अमेरिकी डॉलर से अधिक है। आगे आने वाले 10 वर्षों में यह संख्या 5 गुना बढ़कर 250 लाख परिवार होने जा रही है। इससे भारत में विभिन्न वस्तुओं का उपभोग द्रुत गति से बढ़ने जा रहा है। वर्ष 2022 की दीपावली के दौरान भारत में विभिन्न कम्पनियों द्वारा निर्मित उत्पादों की हुई बिक्री, इस दृष्टि से सबसे स्पष्ट उदाहरण बताया जा रहा है। वर्तमान में भारत में प्रति व्यक्ति आय 2278 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष है जो 10 वर्षों के दौरान दुगनी से भी अधिक होकर 5242 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष हो जाएगी।
भारत में शीघ्र ही विनिर्माण क्षेत्र एवं पूंजीगत क्षेत्र में निवेश बहुत भारी मात्रा में बढ़ने जा रहा है। यह न केवल केंद्र सरकार, राज्य सरकार एवं विभिन्न सरकारी संस्थानों के माध्यम से होगा बल्कि निजी क्षेत्र एवं विदेशी निवेशकों द्वारा का भी इसमें भारी योगदान होगा। वर्तमान में, भारत में स्थापित विनिर्माण इकाईयों द्वारा उनकी उत्पादन क्षमता का 75 प्रतिशत के आसपास उपयोग किया जा रहा है। इस क्षमता के उपयोग होने के बाद सामान्यतः नई विनिर्माण इकाईयों की स्थापना प्रारम्भ हो जाती है। विनिर्माण इकाईयों की स्थापना, ऊर्जा की खपत में क्रांतिकारी सुधार, डिजिटल क्रांति एवं आधारभूत संरचना के क्षेत्र में अत्यधिक निवेश से भारत में विकास को रफ्तार मिलेगी।
अभी तक चीन पूरे विश्व के लिए एक विनिर्माण केंद्र बन गया था और अमेरिका उत्पादों के उपभोग का मुख्य केंद्र बन गया था। परंतु, आगे आने वाले 10 वर्षों के दौरान स्थिति बदलने वाली है। भारत चीन से भी आगे निकलकर विश्व में सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने जा रहा है, जिससे भारत में उत्पादों का उपभोग तेजी से बढ़ेगा। अतः भारत न केवल उत्पादों के उपभोग का प्रमुख केंद्र बन जाएगा बल्कि विश्व के लिए एक विनिर्माण केंद्र भी बन जाएगा। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत पूर्व में ही वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े केंद्र के रूप में विकसित हो चुका है।
भारत में वर्तमान में ऋण:सकल घरेलू उत्पाद अनुपात 57 प्रतिशत है। जबकि चीन में 225 प्रतिशत एवं अमेरिका में 200 प्रतिशत है। भारत में बैंकों द्वारा प्रतिभूति आधारित ऋण प्रदान किए जाते हैं अतः जिनके पास प्रतिभूति का अभाव होता है, उन्हें बैकों से ऋण लेने में परेशानी आती है, हालांकि केंद्र सरकार ने इस प्रकार के ऋणों पर अब अपनी गारंटी देना प्रारम्भ किया है परंतु फिर भी बैंकों से ऋणों का उठाव तुलनात्मक रूप से कम ही है। अब आने वाले समय में शीघ्र ही भारतीय बैकों द्वारा रोकड़ प्रवाह आधारित ऋण प्रदान किए जाएंगे  जिससे ऋण:सकल घरेलू उत्पाद अनुपात में तीव्र वृद्धि दृष्टिगोचर होगी। इस अनुपात में सुधार से न केवल उत्पादों की मांग में वृद्धि होती बल्कि बैकों के तुलन पत्र का आकार भी बढ़ेगा।
वर्तमान के सेवा क्षेत्र के निर्यात में वैश्विक स्तर पर भारत की हिस्सेदारी 3.7 प्रतिशत से बढ़कर 4.2 प्रतिशत पर पहुंच गई है। वहीं विनिर्माण क्षेत्र में यह 1.7 प्रतिशत से बढ़कर 1.9 प्रतिशत पर पहुंच गई है। वर्ष 2021-2030 के दौरान पूरे विश्व में बिकने वाली कुल कारों में से 25 प्रतिशत कारें भारत में निर्मित कारें होंगी। साथ ही, 2030 तक यात्री वाहनों की बिक्री में 30 प्रतिशत हिस्सा विद्युत चलित वाहनों का होगा, जिनका निर्माण भी भारत में अधिक होगा। इस प्रकार, वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों द्वारा किए जा रहे उत्पादों के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 2.2 प्रतिशत से बढ़कर 4.5 प्रतिशत पहुंचने की प्रबल सम्भावना है।
वर्तमान में भारत में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 900 वाट ऊर्जा का उपयोग होता है जबकि यह आगे आने वाले समय में बढ़कर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 1450 वाट ऊर्जा होने जा रहा है, क्योंकि भारत में 6 लाख से अधिक गावों में बिजली पहुंचाई जा चुकी है। हालांकि, फिर भी यह अमेरिका में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 9000 वाट ऊर्जा से बहुत कम ही रहने वाला है। परंतु, इसमें एक सिल्वर लाइनिंग जो दिखाई दे रही है वह यह है कि भारत में ऊर्जा के उपयोग में होने वाली वृद्धि का 70 प्रतिशत से अधिक भाग नवीकरण ऊर्जा के क्षेत्र से प्राप्त होने वाला है। अतः नवीकरण ऊर्जा के क्षेत्र में भारत में निवेश बहुत बड़ी मात्रा में होने जा रहा है, इसमें विदेशी निवेश भी शामिल है। इस कारण से भारत में जीवाश्म ऊर्जा की मांग कम होगी और कच्चे तेल (डीजल, पेट्रोल) की मांग भी कम होगी। इससे पर्यावरण में भी सुधार दृष्टिगोचर होगा। इसके साथ ही, भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच जो वर्तमान में 30-40 प्रतिशत जनसंख्या तक ही सीमित है वह आगे आने वाले समय में बढ़कर 60-70 प्रतिशत जनसंख्या तक हो जाएगी।
उक्त वर्णित कारणों के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार वर्तमान स्तर 3.50 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2031 तक 7.5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच जाएगा और इस प्रकार भारतीय अर्थव्यवस्था अमेरिका एवं चीन के बाद  विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी। इसी प्रकार, भारत का पूंजी बाजार भी अपने वर्तमान स्तर 3.5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर पर 11 प्रतिशत की, चक्रवृद्धि की दर से, वार्षिक वृद्धि दर्ज करते हुए अगले 10 वर्षों में 10 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच जाएगा। भारत में घरेलू मांग के लगातार मजबूत होने से एवं भारत में डिजिटल  क्रांति के कारण भारतीय नागरिकों की आय में बहुत अधिक वृद्धि होने की सम्भावना के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास का पांचवा हिस्सा भारत से निकलेगा, ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है।
प्रायः यह देखा गया है कि किसी भी देश में विकास चक्र, प्रारम्भ होने के बाद, लगभग 70-80 वर्षों तक लगातार चलता है, हालांकि, इस खंडकाल में अर्थव्यवस्था में कुछ समस्याएं बीच के समय में आती रहती हैं। इस प्रकार, भारतीय अर्थव्यवस्था भी अब विकास चक्र के दौर में प्रवेश कर गई है इस दृष्टि से यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि “आर्थिक विकास की दृष्टि से अगला दशक ही नहीं बल्कि अगली पूरी सदी ही भारत की होगी”।
भारत को विदेशी आक्रांताओं एवं अंग्रेजी शासकों द्वारा पिछले 1000 वर्षों तक लगातार लूटा गया है। अब समय आ गया है कि भारत से लूटी गई सम्पत्ति को व्यापार के माध्यम से भारत में हस्तांतरित किया जाए। अतः भारत से लूटी गई सम्पत्ति के पुनः भारत में लौटने का समय अब आ गया है।
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
मोबाइल क्रमांक – 9987949940
ई-मेल – psabnani@rediffmail.com
लेखक श्री प्रहलाद सबनानी के बारे में
श्री प्रहलाद सबनानी, उप-महाप्रबंधक के पद पर रहते हुए भारतीय स्टेट बैंक, कारपोरेट केंद्र, मुम्बई से सेवा निवृत हुए है। आपने बैंक में उप-महाप्रबंधक (आस्ति देयता प्रबंधन), क्षेत्रीय प्रबंधक (दो विभिन्न स्थानों पर) पदों पर रहते हुए ग्रामीण, अर्ध-शहरी एवं शहरी शाखाओं का नियंत्रण किया। आपने शाखा प्रबंधक (सहायक महाप्रबंधक) के पद पर रहते हुए, नई दिल्ली स्थिति महानगरीय शाखा का सफलता पूर्वक संचालन किया। आप बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग, कारपोरेट केंद्र, मुम्बई में मुख्य प्रबंधक के पद पर कार्यरत रहे। आपने बैंक में विभिन पदों पर रहते हुए 40 वर्षों का बैंकिंग अनुभव प्राप्त किया। आपने बैंकिंग एवं वित्तीय पत्रिकाओं के लिए विभिन्न विषयों पर लेख लिखे हैं एवं शोधपत्र भी प्रस्तुत किए हैं। श्री सबनानी ने व्यवसाय प्रशासन में स्नात्तकोतर (MBA) की डिग्री, बैंकिंग एवं वित्त में विशेषज्ञता के साथ, IGNOU, नई दिल्ली से एवं MA (अर्थशास्त्र) की डिग्री, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर से प्राप्त की।आपनेCAIIB, बैंक प्रबंधन में डिप्लोमा (DBM), मानव संसाधन प्रबंधन में डिप्लोमा (DHRM) एवं वित्तीय सेवाओं में डिप्लोमा (DFS) भारतीय बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थान (IIBF) मुंबई से प्राप्त किया। आपको भारतीय बैंक मुंबई द्वारा प्रतिष्ठित संघ(IBA),”C.H.Bhabha Banking Research Scholarship” प्रदान की गई थी, जिसके अंतर्गत आपने “शाखा लाभप्रदता इसके सही आँकलन की पद्धति” विषय पर शोध कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न किया। आप तीन पुस्तकों के लेखक भी रहे हैं -( i ) विश्व व्यापार संगठन: भारतीय बैंकिंग एवं उद्योग पर प्रभाव (11) बैंकिंग टुडे एवं (111) बैंकिंग अप्डेट।

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