पवन विजय : तुलसीदास से लेकर राम पर कुटिल भाव से की गयी व्याख्याएं स्वीकार्य नही.. लिबरल चेहरे के पीछे एक विद्रूप चेहरा

पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार में जब दूल्हा कलेवा खाने जाता है तो महिलाएं दे गाली दे गाली उसकी सात पुश्तें तार देती हैं। अब इस बात को कोई लिख दे कि एक लड़के को खाना खाते समय गाली दिया गया, बाद में उसी बात को कोई कुटिल कोचिंग संचालक व्यंग्य करते हुए छात्रों को मजे देते हुए बताए तो कलेवा खाने वाला भाव कितना कुचल जाता है।

कोई कितना संदर्भ दे पर तुलसीदास से लेकर राम पर कुटिल भाव से की गयी व्याख्याएं स्वीकार्य नही है। इन कुटिल व्यख्याओं से समाज मे विष ही फैलता है। आप यदि चेतना के उच्च स्तर पर हैं तो कूड़े को खाद बनाइये, यही मनुष्य होने की परिभाषा है बाकी आजकल जिसे देखो अपने लाभ के लिए नीचता की पराकाष्ठा छूने से नही हिचक रहा है। वह मनुष्य नही है, उसके लिबरल चेहरे के पीछे एक विद्रूप चेहरा है जिसे मैं जानता हूँ। उस नेक्सस को जानता हूँ जिससे पूरा समूह संचालित होता है।

कोई कितना बड़ा ज्ञानी हो पर यदि उसमें अपने प्रतीक पुरुषों, ग्रन्थों को लेकर श्रद्धा भाव नही है तो वह दो कौड़ी का आदमी है। ज्ञान होने का यह अर्थ नही कि आप अपने माता पिता के मध्य वैषयिक सम्बन्धों की चर्चा करके अपना पेट पालें। आप याद रखिये आप मनुष्य हैं कुत्ता नही।

लक्ष्मी गणेश को न मानने वाले राजेन्द्र पाल गौतम को एमसीडी चुनाव का स्टार प्रचारक बनाया है केजरीवाल जी ने, यह कैसा दोहरापन है कि नोटों पर आप लक्ष्मी गणेश की तस्वीर छापने की बात करते हैं और उनको न मानने वाले को प्रचारक बनाते हैं।

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