स्वामी सूर्यदेव : यजुर्वेद में तस्करों को नमन जघन्य को नमन..?

आप कहेंगे ये तो उचित नहीं,, चोर डाकू व्यभिचारी बलात्कारी देशद्रोही शत्रु को कोई कैसे नमस्ते करे?? देखते ही उनका तो गला दबाने का मन होता है।

देखो भाई,,जैसे साधारण संस्कृत के लिए सामान्य व्याकरण होती है ऐसे ही वैदिक संस्कृत के लिए निरूक्त शास्त्र को वेद का व्याकरण कहा जाता है। उसके रचयिता आचार्य #यास्क कहते हैं कि वेद में नमः के तीन अर्थ हैं।

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1-नमः–कठोर दंड देना,, वज्र का प्रहार करना,,
2-नमः–कार्य के अनुसार अन्न या धन देना,,
3-नमः–विशेष प्रतिभा का कार्य के लिए सम्मान या सत्कार करना।

इसलिए प्रत्येक को नमस्ते करना आवश्यक है,, लेकिन नमस्ते कौनसी वाली है ये व्यक्ति और उसके कर्मो के हिसाब से तय करना है।
अब देखो तीनों बातों के दो दो उदाहरण दे रहा हूँ वेद से..

1- तस्कराणाम पतये नमः–यजुर्वेद

कहने को तो जड़बुद्धि शोर मचा सकते हैं कि हाय देखो कैसे धर्मग्रंथ हैं कि तस्करों को भी नमस्कार करने की कह रहे हैं,, उनसे भी बड़े जड़बुद्धि जिनको कई बार आप महात्मा मान लेते हैं वे कहेंगे कि अहा,, यह है सनातन की ऊंचाई, यह है वेद की ऊंचाई,, तस्करों को भी नमस्कार करो।
जबकि यहां वेद के ऋषि कह रहे हैं कि
चोरी करने वालों और उन्हें चोरी की प्रेरणा देने वाले को दंडित करें.. उन्हें वज्र से मारें..

2-कुलालेभ्य नम :-मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुंभकार को जो तुम्हे मटके दिए व अन्य मिट्टी के पात्र उपलब्ध कराता है उन्हें अन्न देवें।

3-सेनाभ्य नमः–सेनाओं का सत्कार करो,, अपने सैनिकों को नमस्कार करो..सम्मान दो..

1-विकृन्नतानाम पतये नमः-झूठ कपट से दूसरों का धन ठगने वालों को वज्र से मारो..दंडित करो..उनके लिए कठोर सजा का प्रावधान है ताकि समाज स्वस्थ सुखी रहे।

2-उगणाभ्य नमः-विभिन्न प्रकार से तर्क करने वाली,,तर्क से धर्म की, संस्कारो की, संस्कृति की प्रतिष्ठा करने वाली प्रज्ञावान स्त्रियों को अन्न देवें,, यानी विदुषी शास्त्रज्ञ माता को धनादि दें।

3-अन्नानाम पतये नमः-अन्न पैदा करने वाले उसकी रक्षा करने वाले किसान का सत्कार करो,, उसे नमन करो।

नमो जघन्याय च–जघन्य कर्म करने वालों। यहाँ जघन्य का अर्थ ये नहीं है जो आजकल समाज में चल रहा है यानी साफ सफाई करने वालों,कचरा उठाने वालों या और गंदगी को साफ करने वाले लोगों का सम्मान करो।

श्वभ्य:नमः-कुत्तों को अन्न देवें यानी बेसहारा जानवरों पशु पक्षियों को कुछ खाने को दें।

अरे भाई बहुत बड़ी महिमा है अपने पूर्वज ऋषियों की। परम पवित्र वेदवाणी की। उसे गुरु आचार्य के सानिध्य में पढ़ा करो,समझा करो, आत्मसात किया करो। बिना सही से जाने अर्थ के अनर्थ करते मत घूमा करो भाई।

अपनी संस्कृति..अपना गौरव…सूर्यदेव

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