विद्यासागर वर्मा : वैदिक मान्यताएं कर्म सिद्धांत..कर्म और पुनर्जन्म..कर्म और भाग्य

महाभारत में इस आशय को इस प्रकार स्पष्ट किया गया है  —

“केवलं ग्रहनक्षत्रं न करोति शुभाशुभम् ।

Veerchhattisgarh

सर्वमात्मकृतं कर्म लोकवादो ग्रहा इति ।।”

   —  अनुशासन पर्व 145 

कर्म सिद्धांत

58) (i) कर्म और पुनर्जन्म

(ii) कर्म और भाग्य

कर्म और पुनर्जन्म

हमने पूर्व लेख में बताया ” अवश्यमेव हि भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।” अर्थात् अच्छे या बुरे कर्म का फल अवश्य भोगना पड़ता है। संसार में हम देखते हैं कि एक हत्या के लिये भी एक मृत्युदण्ड और सौ हत्याओं के लिये भी एक मृत्युदण्ड दिया जा सकता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कानून से बचने के लिये दोषी सौ हत्याएँ करके आत्महत्या कर लेता है अर्थात् उसने 101अपराध किये और फिर कानून के शिकंजे से भी बच गया ।

पाश्चात्य देशों में घोर कुकर्मियों को 400 वर्ष तक की कारावास की सजा दी जाती है, जिसको भोगना सम्भव नहीं। अतः कोई ऐसा विधान होना चाहिये जो ऐसी स्थितियों से निपट सके ।

भारतीय दर्शन में इसका विधान है । वह है पुनर्जन्म । अर्थात् कर्मों के भुगतान का खाता अगले जन्म में जारी रहेगा । विस्तार से इस विषय पर ‘पुनर्जन्म सिद्धान्त’ शीर्षक के अन्तर्गत विचार किया गया है ।

कर्म और भाग्य

उपरोक्त स्थिति के सर्वथा विपरीत पक्ष भी है । मनोवांछित फल एक बात है, अत्यधिक परिश्रम करने पर भी, कुछ भी, हाथ न लगना दूसरी बात है । एक अत्यन्त परिश्रमी एवं विद्या-निपुण बालक ठीक परीक्षा से एक-दो दिन पूर्व रोगग्रस्त हो जाता है, परीक्षा नहीं दे पाता, उसका पूरा वर्ष व्यर्थ हो जाता है ।

एक पिता बड़ी कठिनाई से अपने पुत्र को शिक्षा दिलाता है । एम.ए. या एम टैक की डिग्री मिलते ही उसके पुत्र की मृत्यु हो जाती है । उसकी सारी आशाएँ कि उसका पुत्र उसके बुढ़ापे की लाठी बनेगा, धूल में मिल जाती हैं ।

इसी प्रकार बिना कोई विशेष परिश्रम किये, अप्रत्याशित, अनपेक्षित फल मिल जाता है जैसे घर के आँगन में मकान बनाते समय किसी दबे हुए धन का मिल जाना अथवा करोड़ो रुपयों की लॉटरी का निकल आना।

कर्म सिद्धान्त ऐसी स्थिति में क्या कहता है ? यह सब अकस्मात् (By Chance) है, ऐसा कहने से समस्या का समाधान नहीं होता। कहा गया है :  Chance has neither Memory nor Will अर्थात् अकस्मात् की न तो स्मरण शक्ति है न इच्छा शक्ति। तो सब कुछ नियोजित ढंग से कैसे घटित होता है।

कई बार इसे भाग्य का नाम दे दिया जाता है ।

वैदिक विचारधारा में भाग्य नाम की कोई चीज़ नहीं । पूर्वजन्मकृत कर्मों का फल ही भाग्य है । अच्छे कर्मों का फल सौभाग्य और बुरे कर्मों का फल दुर्भाग्य है । ग्रहों के प्रभाव से किसी का शुभ व अशुभ नहीं होता। उसके अपने कर्म ही, उसका भाग्य बनते हैं।

महाभारत में इस आशय को इस प्रकार स्पष्ट किया गया है  —

“केवलं ग्रहनक्षत्रं न करोति शुभाशुभम् ।

सर्वमात्मकृतं कर्म लोकवादो ग्रहा इति ।।”

—  अनुशासन पर्व 145

अर्थात् केवल नक्षत्र किसी का शुभ व अशुभ नहीं करते । उसके अपने किये कर्मों को ही लोग ग्रहों का नाम दे देते हैं ।

किस आत्मा ने किस योनि में जन्म लेना है, किस माता- पिता के घर जन्म लेना है, उसकी कितनी आयु होगी, उसे किस प्रकार के सुख-दुःख भोगने को मिलेगे, यह सब उसके कर्मों के अनुसार ईश्वर व्यवस्था करता है , जो वैदिक वाङ्गमय में कर्माध्यक्ष कहा गया है।

जाको राखे साईंया मार सके न कोय

यहां हम एक विश्व विख्यात व्यक्ति की ऐतिहासिक दैवीय घटना का संदर्भवश वर्णन करते हैं।

एक सैनिक कुछ दिनों के अवकाश पर घर आ रहा था। अभी अपने घर के आसपास ही था, उसने देखा कि बमबारी में मारे गए व्यक्तियों की लाशों ( Dead Bodies) को  ट्रक में लादा जा रहा है। दिवंगतों को श्रद्धाञ्जलि देने हेतु , वह ट्रक के पास पहुंचा। उन मृतकों में उसने एक ‘ मृतक ‘ महिला के पैर में सैंडल (जूता) देखा। इस प्रकार का जूता उसने गत वर्ष  अपनी पत्नी को  लेकर दिया था। वह दौड़ा- दौड़ा घर गया और दौड़ा-दौड़ा वापस आया।

उसने सम्बन्धित कर्मचारी से निवेदन किया कि अमुक ‘ मृतक ‘ उसकी पत्नी है जिसका दफ़्न ( Burial) वह व्यक्तिगत रूप  करना चाहता है। जब उसे मृतकों के ढेर से निकाला गया, पाया कि उसकी श्वास चल रही है। उसे हस्पताल ले जाया गया। कुछ  दिनों बाद वह सकुशल घर आ गई।

देखिए किस प्रकार उसकी जान बच गई !

इतना ही नहीं। वह गर्भवती थी। कुछ मास बाद उसने पुत्र – रत्न को जन्म दिया। उस बच्चे का नाम है ” व्लादिमीर पुतिन ” —  रूस के वर्तमान राष्ट्राध्यक्ष।

क्या यह सब अकस्मात् ( By Chance) है ? वैदिक विचारधारा के अनुसार यह ईश्वरीय व्यवस्था है : पूर्वजन्म कृत शुभ कर्मों का फल।

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पादपाठ

1) The principle of Karma insisted on the primacy of the ethical and identified God with the rule of Law. Karma is not a mechanical principle, but a spiritual necessity. God is its supervisor — Karmadhyaksha.

— S. Radhakrishnan

(The Hindu View of Life : Page 52)

कर्म सिद्धांत नैतिकता पर बल देता है और ईश्वर को न्याय विधान से चिन्हित करता है। कर्म सिद्धांत कोई यान्त्रिक विधान नहीं है, अपितु आध्यात्मिक अनिवार्यता है। ईश्वर इसका कर्माध्यक्ष है।

डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन्

( द हिन्दू व्यू आफ़ लाइफ़ : पृष्ठ 52 )

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शुभकामनाएं

विद्यासागर वर्मा

पूर्व राजदूत

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