स्वामी सूर्यदेव : सृष्टि की प्रथम पुस्तक…
हालांकि वेद का अर्थ ज्ञान होता है,,इसके अलावा लाभ.. अस्तित्व,, विचार भी वेद को ही कहते हैं…
वेद को पुस्तक कहना भी उचित नहीं क्योंकि पुस्तक एक नपा तुला शब्द है और सीमित आकार प्रकार में बंधी एक वस्तु…
फिर भी प्रचलित भाषा के आधार पर वेद यानी वह पुस्तकें जिसमें वैदिक संहिताओं को लिखकर सुरक्षित किया गया है..
सृष्टि के आरम्भ में सर्वप्रथम कोई शब्द मनुष्य के मुँह से बोला गया तो वह था–अग्नि..
सर्वप्रथम कोई वाक्य या पंक्ति बोली गई वह थी वेद की ऋचा–अग्निमिळे पुरोहितं यज्ञस्य देवं ऋत्विज्ञम
सर्वप्रथम कोई ग्रन्थ लिखा गया वह था–#ऋग्वेद,,
विश्व पुस्तक दिवस हो और सृष्टि की प्रथम पुस्तक पढ़ने के लिए हाथ में हो इससे खूबसूरत और हो ही क्या सकता है,,आज एक कहानी लिखने का मन है तो टीप देते हैं..
बीस पच्चीस वय की लड़की–अजनबी पुरुष के समीप जाकर..
लड़की–एक्सक्यूज मि-जब भी देखूं आपको हमेशा पढ़ते हुए ही देखती हूँ,, लगता है आपको पुस्तकों से बहुत प्रेम है…आप पुस्तकें पढ़ने के शौकीन जान पड़ते हैं..
अजनबी पुरुष आंख से चश्मा हटाते हुए–दरअसल पुस्तकों से नहीं मुझे अपनी पत्नी से बहुत प्रेम है… रही बात शौक की तो मुझे नदी जंगल लुभाते हैं उनमें रहना सुहाता है..
लड़की–फिर आप हमेशा पुस्तकें ही क्यों पढ़ते रहते हैं…
अजनबी पुरुष–मेरी पत्नी को पुस्तकें बहुत पसंद हैं,, वह अपने पसन्द की 100 पुस्तकें पढ़ना चाहती थी,,लेकिन तीन ही पढ़ पाई.. विधाता ने उसे बुला लिया..
अब बाकी की बची 97 पुस्तकें मैं पढ़ता हूँ… ताकि जब कभी,कहीं किसी लोक में उससे मिलूं तो उसे बाकी बची सत्तानवे पुस्तकें बोल कर सुना सकूं
ॐ श्री परमात्मने नमः। *सूर्यदेव*
साभार : स्वामी सूर्यदेव
