अमर सिंह : काशी में ही मोक्ष संभव ! (बनारस भाग 18)
लिखना मजबूरी है , बिना पढ़े लिखे नींद नही आती है अतएव
इलेक्ट्रान , प्रोटान और न्यूट्रान / इक्क्षा , क्रिया और ज्ञान / रज , तम और सत / ब्रह्मा , विष्णु और महेश आदि-आदि !
संसार त्रिगुणात्मक है और लोक भी तीन ही हैं !
तीनों का सामंजस्य ही हमें स्वीकार होता है ! तीनों में से किसी एक का अतिरेक या न्यूनता पिण्ड से लेकर ब्रह्माण्ड तक के विध्वंष का कारण बनती है !
शिव की नगरी है इस लिए चर्चा भी शिव की ही हो तो तर्क संगत है !
मेरी अपनी दृष्टि , शिव के हाथ के त्रिशूल के तीन शूल क्रमशः इक्क्षा , ज्ञान और क्रिया के ही प्रतिक हैं !
“इक्क्षा” जीव का स्वभाव है , “ज्ञान” जीव का धर्म है और “क्रिया” जीव का कर्म !
इन तीनों गुण का विस्तार त्रिशूल के एक ही बिन्दू से शुरू होता है ! लेकिन त्रिशूल का आधार “ज्ञान” से जुड़ा होता है अर्थात सबसे प्रमुख ज्ञान है !
मानव शरीर के मेरूदण्ड पर तीन ही नाड़ीयाँ हैं , ईड़ा , पिंगला और सुषुम्ना , जिन्हें गंगा यमुना सरस्वती भी कहा जाता है ! शक्ति का संचरण तीनों में होता लेकिन प्रमुख मध्य नाड़ी सुषुम्ना (सरस्वती) ही है ठीक उसी प्रकार जैसे त्रिशूल का मध्य शूल जो ज्ञान का प्रतिक है !
तीनों नाड़ीयाँ शरीर के मेरूदण्ड (स्पाईनलकार्ड) पर एक साथ गर्दन के पीछे मेरूदण्ड के “मेड्यूला-आबलांगाटा” नामक स्थान पर मिल पुनः दो भाग में विभक्त हो जाती हैं , यहाँ सुषुम्ना (सरस्वती) लुप्त हो जाती है या यूँ कहें गंगा और यमुना में मिल जाती है , यही संगम (संग-गमन) है !
मेरूदण्ड के “मेड्यूला-आबलांगाटा” नामक स्थान पर मिल पुनः दो भाग में विभक्त हो साथ आज्ञा चक्र अर्थात भ्रूमध्य (काशी) पर मिलती हैं !
भ्रूमध्य ही काशी है और उसमें विचरण करने वाला ही शिव है! जहाँ “ईक्क्षा” और “क्रिया” ज्ञान में तिरोहित हो जाते हैं वही काशी है वही मोक्ष है !
अर्थात स्थूल जगत के लिए “काशी” स्थान का नाम हो सकता है किन्तु सूक्ष्म जगत की काशी में ही मोक्ष संभव है !
साभार : अमर सिंह