प्रसिद्ध पातकी : …फिर तो आचार्य ने अपने शिष्य के चरण छुए
गुरु गोष्ठीपूर्ण ने जब अपने शिष्य को मंत्र दिया तो ताकीद की कि यह परम रहस्यमय मंत्र है. साक्षात् बैकुंठ का पासपोर्ट. इसे किसी के समक्ष प्रकट नहीं करना. अन्यथा रौरव नर्क में जाओगे.
पर जैसे ही नारायण मंत्र यतिराज के कर्णपटु से अंतर्मन में उतरा, उनके भीतर प्रचंड आंदोलन शुरू हो गया. महात्मा का मन माता का मन होता है. हे नारायण! कर्मबंधन के दुष्चक्र में बंधा जीव निरुपाय कैसे कैसे कष्ट झेल रहा है. पीड़ा का कोई अंत नहीं. व्यष्टिगत सुख और ईश्वर लाभ का क्या अर्थ? समिष्ट के जीव को जब तब ईश्वर कृपा प्राप्त ना हो , नारायण भक्ति का क्या लाभ?
यतिराज ने पूरे नगर में चिल्ला चिल्लाकर कहना शुरू कर दिया कि मुख्य मंदिर में सभी नगर जन पहुंचिए. मैं आपके सारे, दुखों कष्टों से मुक्ति की औषधि दूंगा.
ऐसी अनूठी मुनादी सुन मंदिर परिसर में हुजूम उमड़ आया. यतिराज मंदिर के गोपुर पर चढ़ गये. उन्होंने कहा, सब ध्यान से सुनिए..मैं आपके लिए एक अनूठी औषधि बता रहूं. यह आपके सारे कष्टों का निवारण कर आपको बैकुंठ में वास देगी. फिर उन्होंने अपने आचार्य के समक्ष किए गये प्रण को बेधड़क तोड़ते हुए अष्टाक्षर मंत्र का उच्चारण किया और सभी से इसको जपने को कहा.
यतिराज के दौर में मंत्र उपदेश की कठोर शास्त्रीय वर्जना को तोड़ना, वह भी एक विशाल मंदिर परिसर में, किसी सामाजिक क्रांति से तनिक भी कम प्रयास ना था. वर्ण,वर्ग, जाति, परिवार आदि किसी श्रेणी को ना मानते हुए यतिराज ने नारायण भक्ति रूपी नदी में सभी को प्लावित कर दिया. द्रविण देश में भक्ति को उपजा दिया
उस समय वहां गुरु गोष्ठीपूर्ण के कुछ शिष्य भी उपस्थित थे. उन्होंने अपने गुरु के पास जाकर इस घटना को अभिधा ही नहीं व्यंजना और लक्षणा में रिपोर्ट किया. गुरु अशांत हो गये. शास्त्राज्ञा पर ऐसा होना कुछ विचित्र भी नहीं है. कुछ समय बाद यतिराज वहां पहुंचे. गुरु को दंडवत करने के लिए झुके भी नहीं थे कि बादलों की गड़गड़ाहट की तरह गुरु गरजे, “चला जा मूढ़ यहां से…मैं तेरा मुख भी नहीं देखना चाहता. जो तुमने किया, उससे तुम ही नहीं मैं भी रौरव नर्क में जाऊंगा”.
यतिराज ने अपने गुरु के चरण पकड़ते हुए कहा, ” परम आदरणीय आचार्य मुझे जन्म जन्मांतर तक रौरव नर्क में जाना सहर्ष स्वीकार है. आपके बताये इस अद्भुत मंत्र से यदि सैकड़ों लोगों की मुक्ति हो रही है तो रौरव नर्क जाना श्रेयस्कर है.”
शिष्य का यह उत्तर सुन गुरु गहरे ध्यानमग्न हो गये. सोचने लगे हे नारायण !! यह भला आपकी कौन सी लीला है. जिस अष्टाक्षर मंत्र का मैं पूरे जीवन पूर्ण निष्ठा से जप करता रहा,मुझे यह सद्बु्द्धि् प्राप्त ना हो पायी. और इस युवक के कर्णपुट में आपका नाम जाने मात्र से इसके भीतर ऐसा अनूठा जीव कल्याण का बोध जाग गया. हे हरि, ऐसी कठिन परीक्षा ली आपने?
ग्लानि के इस बोध के साथ ही गुरु को समझ आ गया कि यह कोई सामान्य जन नहीं वरन् नारायण की परम कृपा पात्र कोई महात्मा है. फिर तो आचार्य ने अपने शिष्य के चरण छुए.
नारायण भक्ति के प्रेम में डूबे रस में आज भी जब भाष्यकार के इन शब्दों को कोई पढ़ता है तो तो उसका मन भक्ति में आकंठ डूब जाता है…
“कदाsहं भगवतं नारायणं मम कुलनाथं मम कुलदैवतं मम कुलधनं मम भोग्यं मम मातरं मम पितरं मम सर्वं साक्षात्करवाणि चक्षुषा”
(भगवान नारायण जो मेरे कुल के नाथ, मेरे कुल देवता, मेरे कुलधन, मेरे माता, मेरे पिता, मेरे सर्वस्व हैं, उनके कब मैं अपने नेत्रों से साक्षात्कार कर पाऊंगा)
भाष्यकार रामानुजाचार्य के जन्म दिन की शुभकामनाएं .
उत्तर भारत में हम भाष्यकार का जन्म तिथि से मनाते हैं. दक्षिण भारत में उनका जन्म मेष मास यानी सूर्य के मेष राशि में गोचर करने के दौरान जब चंद्रमा आर्द्रा नक्षत्र पर संचरण करता है तो मनाया जाता है. सुखद संयोग है कि दोनों मान्यताओं से आज ही भाष्यकार का जन्मदिन है.
जय श्रीमन्नारायण