ओम लवानिया ‘प्रोफेसर’ : मोदी-पुतिन संवाद …अब जब भारत बोलता है तो दुनिया सुनती है

कल भारतीय मीडिया में जैसे ही न्यूज़ ब्रेक हुई। कि पीएम नरेंद्र मोदी जी रूस के राष्ट्रपति पुतिन से टेलिफोनिक वार्ता करेंगे। तो लिबरल गैंग भौंए तानकर कहे, चौधरी बनने निकले है।

वाक़ई इन्हें लगा। मोदी जी यूक्रेन के डिप्लोमेट आइगर पोलिखा की अपील से चने के झाड़ पर चढ़ कर फ़ोन घुमा दिए। ख़ूब नाचने लगे। दरअसल, इनके मन की हो रही है न, कामरेड रूस अपनी सीमाओं का विस्तार कर रहा है। तो इनके लिए जंग अच्छी है। वरना तो तख्तियां लेकर खड़े नजर आते। ख़ैर

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पीएम मोदीजी वैश्विक नेता है। अंतराष्ट्रीय पटल पर मोदी जी की जो छवि है न! गंभीर और सुझले नेता है। बिना वजह किसी के फटे में टांग नहीं अड़ाते है। अगर कोई आंख दिखलाकर बात करें। तो उसे पड़ोसी देश जैसे समझा भी देते है।

पीएम मोदी जी को रूस से निमंत्रण मिला था। कि पुतिन बात करना चाहते है। कल शाम को कई मीडिया न्यूज़ चैनल की पट्टी पर खबर दौड़ रही थी और तेजी से दौड़ रही थी। शायद इन लोगों की आँखें कमज़ोर है। दिखा नहीं होगा।

दूसरे विश्व युद्ध के बाद हर देश चाहे छोटा हो या बड़ा, सब किसी न किसी देश से सीमा विवाद में उलझा पड़ा है। अमेरिका और मेक्सिकन सीमा विवाद, चीन और ताइवान, चीन तो भारत से भी उलझ रहा है। रूस और यूक्रेन, भारत और पाकिस्तान, नॉर्थ कोरिया और साउथ कोरिया, इजराइल और सीरिया व पेलेस्टाइन आदि।

अमेरिका को छोड़कर, बाक़ी देशों की समस्या की जड़ के ज़िम्मेदार फ्रांस और ब्रिटेन है। क्योंकि इन दोनों देशों ने अपने औपनिवेशिक देशों को रिहा किया। तो उनके गले में समस्याओं का पट्टा डाल दिया। ज़िंदगी भर लड़ते रहे।

राष्ट्र संघ की तरह संयुक्त राष्ट्र भी बेबुनियाद संस्था है। ओशो की भाषा में कहे बकवास करने का अड्डा…राष्ट्र संघ को बर्खास्त करने के पीछे अमेरिका का आर्थिक व सैन्य समर्थन न होने के कारण रद्द कर दिया था। संयुक्त राष्ट्र संघ अमेरिका के हिसाब से बना। अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस और चीन वीटोधारी है।

रूस और यूक्रेन मुद्दे दो पक्ष बन गए है। रूस और चीन लामबंद है और अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस एक समूह में खड़े है। संयुक्त राष्ट्र के पास बैठक युद्ध देखने के सिवाय कोई चारा नहीं है।

अमेरिका रूस के मामले में टांग नहीं अड़ा सकता है। वैसे चिचा बाइडेन ने हाथ खड़े कर दिए है। यूक्रेन अपनी परिस्थितियां खुद संभाले। चिनवा वायरस काल में कौन देश आर्थिक रिस्क लेगा। दो साल से आर्थिक तौर पर दुनिया जूझ रही है। वैसे ये वीटोधारी देश अक्सर अपनी दबंगई दिखाते है। जो करना होता है। कर जाते है।

कुछ दिनों पहले पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प के निर्देश पर अमेरिकी सेना ने अपने जवानों की रक्षा के लिए जनरल कासिम को मार गिराया। वे ईरान की विशेष सेना रिवॉल्यूशनरी गार्ड की कुद्स फोर्स के प्रमुख थे। यह अमेरिका के लिए आतंकी संगठन है। इसी बीच ईरान ने अमेरिका को बदले की चेतावनी देते हुए इस्माइल कानी को कुद्स सेना का नया प्रमुख नियुक्त किया। ईरान और अमेरिका में तलवारें खींची हुई है। उधर, मेक्सिकन से मामला लटका है। रूस के बीच मे आया तो आगे रूस भी अमेरिका के मामले में दखल देगा।

संयुक्त राष्ट्र के अस्थाई सदस्य देशों के लिए यूएन एक्टिव है। उनके मामले दखल देता है। क्योंकि चौधरी चिचा अमेरिका को पँच बनने का शौक रहा है।

भारत सरकार भी बड़ी सावधानीपूर्वक मामले को देख रही है। क्योंकि भारत दोहरे मोर्चे पर सीमा विवाद की लड़ाई लड़ रहा है। पाकिस्तान और चीन। मामला द्विपक्षीय रहे। कोई दूसरा दखल न दे। इसलिए मोदी सरकार ने सधे डिप्लोमेसी के तहत रूस से बात की है।

इतना तय है दुनियाई पटल पर मोदी जी का कद विशाल है। अब जब भारत बोलता है तो दुनिया सुनती है। मोदी जी के नाम से विपक्षी नौ नौ बांस उछल जाते है। बस कैसे भी मोदी जी की किरकिरी हो।

साभार : ओम लवानिया ‘प्रोफेसर’

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