मात्र 12 श्लोक के मांडुक्य उपनिषद में ॐ का महत्व
मांडुक्य उपनिषद में मात्र 12 श्लोक हैं लेकिन उपनिषदों में इसे श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है।
इसका कारण ये कि इस उपनिषद में आत्मा को ॐ कार से परिभाषित किया गया।
ये जो एक ॐ कार सतनाम् कहनेवाले लोग हैं उनके पास इसकी कोई परिभाषा नहीं है कि ॐ कार ही सत्य नाम कैसे है? लेकिन मांडुक्य उपनिषद आज से हजारों साल पहले इस ॐ कार की परिभाषा करता है।
मांडुक्य उपनिषद कहता है कि जैसे ॐ के चार पद हैं वैसे ही इस आत्मा के चार पद हैं। ये आत्मा चतुष्पद है। पहला पद, अकार है। दूसरा पद उकार है। तीसरा पद मकार है और चौथा पद वह सूक्ष्म बिन्दू है जो ध्वनित होकर भी अव्यक्त है।
ऐसे ही आत्मा के भी चार पद हैं। जाग्रत, स्वप्न, सुसुप्ता और तुरीया। इसलिए ॐ कार आत्मा की इन चारों अवस्थाओं का प्रकटीकरण है।
ॐ इत्येतदक्षरमिदꣳ सर्वं तस्योपव्याख्यानं, भूतं भवद् भविष्यदिति सर्वमोंकार एव यच्चान्यत् त्रिकालातीतं तदप्योंकार एव॥ १॥
‘ॐ’ – यह अक्षर ही सर्व है । सब उसकी ही व्याख्या है। भूत, भनिष्य, वर्तमान सब ओंकार ही हैं। तथा अन्य जो त्रिकालातीत है, वह भी ॐ कार ही है।
साभार : संजय तिवारी मणिभद्र
