माइंड..फाइंड..रिफाइंड.. और महारुद्र का काइंड (कृपा)
क्या आपको पता है कि भारत में 12 ज्योतिर्लिंगों के अलावा पांच महत्वपूर्ण पंचतत्व शिंवलिंग भी है। आकाश, अग्नि, जल, वायु एवं प्रथ्वी इन पांचों तत्वों के अलग-अलग शिवालय हैं।
शिवभक्त संकल्पवान होते हैं, जो एक बार मन में ठान लिए उसे पूर्ण करने के लिए जी-जान लगा देते हैं। शिव-संकल्प का शुभ परिणाम है कि अयोध्या में राम मंदिर का नव निर्माण तथा काशी में बाबा विश्वनाथ की जगत में वाह-वाह हुई और वाहेगुरु की कृपा से 3000 sf का मन्दिर परिसर 5 लाख वर्गफुट का हो गया।
यह लेख, देख आप नेक बन, शिव से जुड़ सकते हैं। यह पढ़ते हुए आप सम्मोहित हो जाएंगे। इसे एकादश प्राचीन पुस्तक, ग्रन्थों के शब्दमणियों से पिरोया गया है। सारी खोजबीन के बाद अंत इतना ही है-
तेरी माया का न पाया कोई पार कि- लीला तेरी तू ही जाने….
महाकाल की महानता…सृष्टि में जब समस्त जीव-जगत के पशु-पक्षी, जीव-जन्तु, महिला-मानव …मलिनता में मदमस्त या लिप्त होकर अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा, चेतना, शक्ति, हिम्मत, आत्मबल, आत्मविश्वास खो चुके होते हैं, तब यही वो काल प्रदोष, अंधियारा उत्पन्न करता है है। फिर, दुःखी-पीड़ित सन्सार की रक्षा मात्र महाकाल ही कर पाते हैं।
अगर गुजरे हुए कल और आने वाले हलाहल, कल तथा कष्टरूपी दुष्टकाल से बचना है, तो इस बार शिवरात्रि की रात जागरण अवश्य करें!! अमृतमपत्रिका, ग्वालियर।
1.3.22 को महाशिवरात्रि का महामन्त्र है- !!ॐ शम्भू तेजसे नमःशिवाय!!
रात भर जपकर आप मोह-माया के जाल काटें और अपनी खाल को दुरुस्त बना कर पूरे साल, हर हाल में प्रसन्नता पा सकते हैं। यह प्रयोग अगले साल आपको हर मामले में मालामाल कर देगा।
माइंड की आदत हर चीज फाइंड करने की होती है और इसे रिफाइंड करने के लिए गॉड यानि शिव के काइंड (कृपा) की आवश्यकता है। इसलिए महाशिवरात्रि की रात शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करके सन्सार के सर्वाधि सिद्धि-समृद्धि वाले इंसान बन सकते है।
संकल्पों में सहायक शिवरात्रि! संकल्प कैसे आता है-
‘स्वल्पमयस्य धर्मस्य जायते महतो भयान, शिवसंकल्परूपेण अनेन व्रतेन वान्छित फल प्राप्यते संकल्प का प्रादुर्भाव शिव भक्ति से आता है। जब हम शिवजी के लिए व्रत-उपवास, दुखियों का उपचार करते हैं, तो हमारा मन आत्मबल से भर जाता है।
अनंतकाल शिव ही सत्य है और इसी में सुंदरता का वास है। सत्य की शक्ति, आत्मविश्वास, अहिंसा, समरसता और जगत को अपना बनाने व मानने की हिम्मत व्रत-उत्सवों से मिलती रही है।
शक्ति बिना सब सूना….शक्ति चेतना का रूप है और अगर शिव में शक्ति हटाने का प्रयास भी किया जाए तो पीछे शव ही रह जाता है। शक्ति का शिव और शिव का शक्ति के मिलन की अवस्था हो शिव है। इसलिए शिव को ‘अर्नारीश्वर भी कहते है। शिव को ऋग्वेद में रुद्र रूप में पूज्यकर उनके रुद्र स्तवन में स्तुति की है। शिव पुराण, लिंग, पुराण, स्कन्दपुराण, मत्स्य पुराण कर्म पुराण पुराण और ब्रह्मांड पुराण-यह छह पुराण तो पूर्णतः शैव उपासना से भरे पड़े हैं। मानसिक मंथन करें, तो गहन अंधकार से जागना, स्वयं को उबारना आदि सङ्कल्प हमें शिवरात्रि से सीखने को मिलता है। भारत की परंपरा है कि-सात वारों में 9 उत्सव मनाते हैं क्योंकि उत्सव से उत्साह, उमंग, ऊर्जा की प्राप्ति होती है। उत्सवों, त्योहार, व्रत-उपवास से हमें शक्ति मिलती है।
शिवरात्रि का महत्व इसलिए ज्यादा है क्योंकी ये शिव सङ्कल्प का उत्सव है। आज के की रात शिवलिंग पर रुद्राभिषेक कर सुखी जीवन का संकल्प किया जाता है।
शिवभक्त संकल्पवान होते हैं, जो एक बार मन में ठान लिए उसे पूर्ण करने के लिए जी-जान लगा देते हैं। शिव-संकल्प का शुभ परिणाम है कि अयोध्या में राम मंदिर का नव निर्माण तथा काशी में बाबा विश्वनाथ की जगत में वाह-वाह हुई और वाहेगुरु की कृपा से 3000 sf का मन्दिर परिसर 5 लाख वर्गफुट का हो गया।
कल्पना भी नहीं कि थी किसी ने कि कभी विश्वनाथ ज्योर्तिलिंग से सीधा माँ गंगा से मिलन हो पायेगा। शिव सङ्कल्प से ही भारत का उत्तरोत्तर विकास हो रहा है। दुनिया में आज हमारा भी वजूद स्थापित हो गया। भारतीय संस्कृति में सङ्कल्प यानि शिव का इतना गुणगान है कि वैदिक मंत्रों में हजारों बार तन्मे मन: शिवसंकल्पमस्तु की आवृत्ति होती है।
शिवपुराण लिखता है कि शिव का नाम ही सङ्कल्प है अर्थात जहां जुबां पर शिव है, वही सङ्कल्प भी है। बिना शिव के सब शव है। बाद एक छोटी (इ) की मात्रा हटाना-जोड़ना है।
शिवसंकल्प की यह प्रवृत्ति एवं आवृत्ति है। सतयुग से आज तक सब कुछ शिव पर सदा है, शिव से सन्सार सजा है। दुनिया में रौनक शिवलिंगों से ही है।
चिंतन करेंगे, तो पाएंगे कि मानव मस्तिष्क का रूप आकार शिवलिंग की तरह है और अगर अपने दोनों हाथ आगे कर लें, तो जलहरी बनकर व्यक्ति पूरी तरह शिव हो जाता है। अवधूत अघोरी अपनी ध्यान साधना, मानव पूजा के द्वारा अपने शरीर से 108 शिव मुद्रा बनाकर शिवसाधना करते हैं!! वैदिक परम्परा के हिसाब से सम्पूर्ण जगत ही शिवमय है। शिवसंकल्प की शक्ति का अहसास रामायण और महाभारत काल में भी हुई।
आधुनिक वीरों ने भी भारत की अस्मिता, मानसम्मान शिव सङ्कल्प की दम ही बचाये रखा। ऐसे महावीरों पर हमें गुमान है। हमारा यह शिवसंकल्प सन्सार का मार्गदर्शन कर रहा है।
शिव-शक्ति के मिलन का उत्सव…मानवता और राष्ट्ररक्षा का संकल्प ही कावरों में गंगाजल भरकर कावड़ियों की टोली शिव के द्वारा जाने को आतुर रहती है। यह यात्रा 200 से 800 किलोमीटर की होती है, लेकिन शिवसंकल्प से साथ यह शवयात्रा पूर्ण होती है।
शिव बिना सब शव और शक्तिहीन…तन्दरुस्त हों, तो शक्ति हमारे अंदर से आती है और स्वस्थ्य जीवन तथा रोगप्रतिरोधक क्षमता शिव से आती है। क्योंकि शिव के अलावा इस ब्रह्माण्ड में कोई भी देवता ब्रह्मचारी नहीं है।
देह को दीर्घकाल तक जीवित रखने हेतु चिरस्थाई शक्ति की जरूरत होती है और इसका मूल साधन ब्रह्मचर्य है। सृष्टि में हो या अन्तर्मन की शांति शिव से ही है। इसके लिए सङ्कल्प हो कि शिव के अतिरिक्त सब व्यर्थ है।
शक्ति सयंम की हो या उन्नति की अगर चाहिए, तो शिव से जुड़ना ही पड़ेगा। अतः भटकना वेवकूफी है।
स्कंध पुराण के अनुसार…पृथ्वी के गहन अंधकार का नाश करने हेतु महाशिवरात्रि की रात ही भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। महादेव-महादेवी की इस रात मैरिज एनिवर्सरी भी है।
प्रार्थना और प्रयास से सफलता निश्चित मिलती है…
भारतीय संस्कृति की सत्यता है कि खोजने से भगवान मिल जाते हैं और महादेव को पूजने से संसार के सब सुख। जगतगुरु आदिशंकराचार्य ने अपने एक स्त्रोत में कहा है-चिदानन्दरूपा शिवोहम्-शिवोsम् अर्थात हम शिव उपासना करें, तो एक दिन स्वयं ही शिव बन सकते हैं। हमारी आत्मा का रूप हो या सूर्य का… ये सब शिवलिंग स्वरूप ही हैं। हमारा मस्तक शिव के आकार का है। यदि माने, तो मैं शिव हूँ मैं शिव हूँ मैं शिव हूँ-
विभत्स हूँ, विभोर हूँ, मैं समाधि में ही चूर हूँ।
घनघोर अंधेरा ओढ़कर मैं जनजीवन से दूर हूँ।
श्मशान में हूँ, नाचता मैं मृत्यु का गुरुर हूँ।
मैं राख हूँ,, मैं आग हूँ, मैं ही पवित्र राष हूँ।
मैं पंख हूँ, मैं श्वांस हूँ, मैं ही हाड़ मांस हूँ।
में ही अन्त हूँ और मैं ही आदि अनन्त हूँ।
मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ, मैं ही शिव हूँ।।
पहले समय में बुजुर्ग कहते थे की प्रसिद्ध होने के लिए मजदूर बनना पड़ता है। कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। बड़ी-बड़ी मजबूरी को मजदूरी यानी परिश्रम से मिटाया जा सकता है। मजबूरी और मजदूरी…रोजी-रोटी रोजगार और परिवार चलाने के लिए मजदूरी अर्थात यात्रा करना मेरी मजबूरी रही। इसी कारण अपनो से दूरी भी रही। जीवन में जो लोग मजे से दूर हैं, वही मजबूर हैं।
मजबूरी वश मजदूरी के सहयोग से मुझे पूरे देश में हजारों मंदिरों के दर्शन का सौभाग्य मिला और इसी दरम्यान मुझे यात्रा संस्मरण लिखने का शौक उत्पन्न हुआ। उन फटेहाल, तंगहाली परिस्थितियों में कभी सोचा भी नहीं था कि कभी मेरी यह यात्रा डायरी पाठकों को उपलब्ध हो सकेगी।
भविष्य में कभी 5000 से भी ज्यादा दुर्लभ शिवालय के बारे में जानकारी दी जाएगी।
क्या आपको पता है कि भारत में 12 ज्योतिर्लिंगों के अलावा पांच महत्वपूर्ण पंचतत्व शिंवलिंग भी है। आकाश, अग्नि, जल, वायु एवं प्रथ्वी इन पांचों तत्वों के अलग-अलग शिवालय हैं।
चिदम्बरम का शिवमन्दिर आकाश तत्वशिवलिंग है। अग्नितत्व शिंवलिंग बैंगलौर से 200 km दूर तिरुअन्नामलय शहर में अरुणाचलेश्वरा के नाम से है, यहां 14 km की गिरी परिक्रमा लगाने का विधान है। त्रिची का जम्बुकेश्वर जल तत्व शिंवलिंग है। श्रीकालाहस्ती वायुतत्व और एकम्बरेश्वर प्रथ्वीतत्व चेन्नई के पास स्थित है। नवग्रहों के स्वयम्भू शिवालय…नव ग्रह के 9 शिवालय भी अलग हैं।
【१】तिरुनागेश्वरं कोइल राहु का, 【२】तिरुनल्लार शनिदेव का, 【३】एलनगुड़ी गुरु ग्रह का और 【४】सूर्यनारकोइल सूर्य ग्रह की शान्ति हेतु अदभुत है। 【५】घने वन में बसा दुनिया का एक मात्र राहु-केतु का शिंवलिंग एक जहरीले तलाब के पास स्थित है। 【६】कुम्भकोणम से 7 km दूर महालिंग, 【७】कुम्भकोणम में सुंदरेश्वर, सोमेश्वर, बृहदेश्वर, मयूरनाथ (शाप मुक्ति हेतु) मुनीश्वर, अगस्तेश्वर आदि नाग वाम्बी से स्वयं प्रकट शिंवलिंग हैं। 【८】त्रिभुवनेश्वरा त्रिदेव गुरु मन्दिर चमत्कारी है, जहाँ दक्षिणामूर्ति गुरु के समक्ष एक माला गुरु मंत्र या ॐ नमः शिवाय की करने के बाद ही शिंवलिंग के दर्शन हो पाते हैं। 【९】कपिलतीर्थ में हजारों नाग प्रतिमायें दर्शनीय हैं 【१०】वेल्लोर का जलकण्ठेश्वरं, महालक्ष्मी गोल्डन मन्दिर, 【११】चित्तूर जिले के कनिपाकम में स्वयम्भू गणेशजी, 【१२】शिरकांजी की महाकाली, कालेश्वर शिव, त्रिकालेश्वर शिंवलिंग। 【१३】दातावरम के भीमा शिंवलिंग, 【१४】कुमारावराम का शंकर शिवालय स्कन्दपुराण के अनुसार ये दोनो मिलाकर मूल यानी ओरिजनल भीमा-शंकर ज्योतिर्लिंग हैं। 【१५】नागमुक्ति नाथ, नागमले, मन्नारशाला विशेष सिद्ध नाग तीर्थ हैं। 【१६】केरल का गुरुवायुर शबरीमाला तथा 27 नक्षत्र शिंवलिंग के दर्शन दुर्लभ हैं 【१७】मलयदुथुराई का अमृतेश्वरा आदि 【१८】वेदेहीश्वरं कोइल का मूल वैधनाथ ज्योतिर्लिंग है। 【१९】 एक हजार आँख वाले शिवजी आदिकालीन स्वयम्भू शिंवलिंग हैं, जिनके दर्शन से निश्चित परिवर्तन होता है। इन सब स्वयम्भू शिवलिंगों का महत्व, रहस्य, इतिहास जानने के लिए अमृतमपत्रिका डॉट कॉम की वेबसाइट पर पढ़ें। 【२०】असम का तांत्रिक नवग्रह शिवमंदिर एकांत पहाड़ी पर बसा, लाखों साल पुराना है। 【२१】मेघालय के मोइसराम के जंगल में गुफा के अन्दर शेषनाग शिंवलिंग है, जहां छत में स्थित नागफनों से जल टप-टप बून्द-बून्द गिर रहा है। मोइसराम के इस शिवालय से बंग्लादेश की सीमा महज 4 km की दूरी पर है। 【२२】 एक हजार आँख वाले शिवजी आदिकालीन स्वयम्भू शिंवलिंग हैं, जिनके दर्शन से निश्चित परिवर्तन होता है। इन सब स्वयम्भू शिवलिंगों का महत्व, रहस्य, इतिहास जानने के लिए अमृतमपत्रिका डॉट कॉम की वेबसाइट पर पढ़ें। 【२३】असम का तांत्रिक नवग्रह शिवमंदिर एकांत पहाड़ी पर बसा, लाखों साल पुराना है। अपनी नोकरी की जिम्मेदारी निभाते हुए, कम्पनी के व्यापार में वृद्धि के साथ-साथ यात्रा सम्बन्धी जानकारी एकत्रित कर चारों दिशाओं में जगह-जगह जाकर हजारों शिवालय, देवालय के दर्शन किये। मन्दिरों के महत्व, उनका आदिकालीन इतिहास जाना।
भागने से ही भाग्य जगता है–सौ जगह भागने के कारण धीरे-धीरे सौभाग्य भी जागा। अध्यात्म सहित आत्मज्ञान पाया। जीवन ऊर्जावान होकर शक्तिपुंज का अनुभव हुआ। कभी भी-कहीं भी कोई प्राचीन शिवालय दिखता या कोई बताता, तो मैं वहां जरूर जाता। अपने पूरे जीवन में अभी तक सम्पूर्ण भारत के लगभग 30 हजार से ज्यादा सिद्ध, स्वयम्भू शिवलिंगों के दर्शन का मुझे भोलेनाथ ने मौका दिया। बुरे से बुरे वक्त में हमेशा यही सोचकर मन्दिर पहुंच जाता चलो भोले बाबा के द्वारे, सब कष्ट मिटेंगे तुम्हारे।
यह महादेव की विशेष कृपा है। जीवन में एक आत्मानुभूति जरूर हुई कि प्रवास के दौरान कहीं कोई 10 km के क्षेत्र में सिद्ध शिंवलिंग है, तो मुझे शिवजी वहां खींच लेते हैं। विपरीत और खतरनाक परिस्थितियों में यही विचार करता कि
वादे-बाहरी जरा आहिस्ता चल,
इन दिनों ‘जी’ मेरा अच्छा नहीं है।
मेरी जिंदगी का क्या भरोसा,
आज है, सुनते हैं कल नहीं है।।
भोलेनाथ ने मुझे दुःख-तकलीफ एव कष्टों ने खतरों से खेलना सीखा दिया।
■ अमरनाथ का महत्व और
हिम शिवलिंग का रहस्य जानकर दिमाग ही चक्र जाएगा।
■ बद्रीनाथ की विशालता अनन्त है। भगवान विष्णुजी को सुदर्शन चक्र भोलेनाथ ने यहीं पर प्रदान किया था।
■ कालसर्प क्या है
■ क्या आपको पता है?
गरीबी कष्ट का कारण पितृदोष है।
शिव ही सब, शिव ही शून्य हैं- सृष्टि में सदियों से सभी आत्माओं की शिव से शव और शव से शिव बनने के प्रक्रिया निरन्तर चलायमान है। दक्षिण भारत के तिरुणामलय नामक शहर में स्थित स्वयम्भू अग्नितत्व शिवलिंग श्री अरुणाचलेश्वरा महादेव के परम भक्त, तपस्वी महर्षि रमण कहते थे-
आज के आधुनिक विज्ञान ने सिद्ध-साबित किया है कि इस सृष्टि में सब कुछ शून्यता से आता है और वापस शून्य में ही चला जाता है।
इस अस्तित्व का आधार और संपूर्ण ब्रम्हांड का मौलिक गुण ही एक विराट शून्यता है। उसमें मौजूद आकाश गंगाएं केवल छोटी-मोटी गतिविधियां हैं, जो किसी फुहार की तरह हैं। उसके अलावा सब एक खालीपन है।
काशी विश्वविद्यालय के महान विद्वान द्वारा लिखी गई मन्त्र और मातृकाओं का रहस्य किताब में बताया है कि-
संसार जिन्हें महादेव शिव नाम से जानता, समझता वही सब दुःख-सुख का कर्ता-धर्ता है। शिव ही वो गर्भ हैं जिसमें से सब कुछ जन्म लेता है, और वही वो गुमनामी हैं, जिनमें सब कुछ फिर से समा जाता है। सृष्टि में सब कुछ शिव से आता है, और फिर से शिव में चला जाता है।
डमरू व प्रलय का गणित…तत्व संग्रह पुस्तक के मुताबिक-डमरू का नाद है, जो प्रत्येक चराचर जीव के शरीर में जो ह्रदय धडकता है। डमरू की रिदम या उसकी आवाज़ डम डम डम डम, धक धक धक धक होती है जब धडकन बदं हो जाती है तो ये केवल शव रह जाता है। स्वामी विवेकानन्द ने भी शून्य की व्याख्या कर विश्व को व्यथित, बेचैन कर चौंका दिया था।
काशी के एक शिव हठयोगी श्री श्री विश्वनाथ यति जी ने कहा है- एक अंगूठा, चार उंगलियां,
सब झूठा, सत्य नाम है शंकर।
वृक्ष में बीज, बीज में बूटा,
सब झूठा सत्य नाम है शंकर।
इसकी व्याख्या बहुत विशाल है।
आदिशंकराचार्य ने कहा है कि- व्यक्ति ठान ले, तो वह स्वयं ही शिव बन सकता है। उन्होंने अनेकों बार शिवोहम, शिवोहम अर्थात “मैं शिव हूँ, “मैं ही शिव हूँ”-कहकर संसार को चेताया है। कभी ध्यान से चिंतन-मंथन करें, तो अनुभव होगा हमारा मस्तिष्क शिवलिंग की तरह ही है। और जलहरी या अरघा हमारे हाथ हैं। दोनों हाथों को आगे की तरफ फैलाएं, तो ह्रदय तक का हिस्सा अरघा सहित शिवलिंग बन जाता है।
अघोरी कहते हैं कि मन्त्र-जाप करते समय जप मन्त्रों को अपनी नाभि में एकत्रित करने से शीघ्र ही सिद्धि मिलती है अर्थात जैसे हम धन-सम्पदा, रुपये-पैसे को तिजोरी, अलमारी या बैंक में संग्रहित करते हैं, तभी वे सुरक्षित रहते हैं, वैसे ही हमें अपने जप-मन्त्रों को नाभि में स्टोर करने चाहिए। यह परम ज्ञान आज के गोरखधन्धे में लगे गुरुओं को भी कम है। परम् सूर्य उपासक स्वामी विशुद्धआनंद, इन्होंने दुनिया के महान वैज्ञानिकों के सामने सायनाइट विष पीकर सबको हिला दिया था। काशी में इनका आश्रम रेलवे स्टेशन के पास ही है। इनके अनुसार भगवान भोलेनाथ संसार की सारी विषरूपी नकारात्मक ऊर्जा यानि निगेटिव एनर्जी के मालिक हैं। शिव के हाथों में विष का प्याला है, जिसमें नकारात्मक ऊर्जा रूपी जहर एकत्रित होता रहता है, जिसे वे ग्रहण कर चराचर जगत को प्रसन्न रखने का प्रयास करते हैं। स्वामी जी के मुताबिक भोले की भक्ति से हमारी द्वेष-दुर्भावना, दुर्बलता, दुर्घटना, दुर्भाग्य, दुर्व्यवहार, जलन-कुढ़न, नीच प्रवृत्तियों का विनाश होने लगता है।
शिव की भक्ति से सौभाग्य जागकर दुःख-दारिद्र दूर होने लगते हैं।
अतः शिवपुराण,लिंगपुराण,स्कंदपुराण तथा रुद्र उपनिषद, ईश्वरोउपनिषद आदि धर्मग्रन्थों में भोलेनाथ ही शिव अविनाशी ,साकार-निराकर स्वरुप तथा परम पिता परमेश्वर हैं।
सनातन धर्म की यह बात तो जगतप्रसिद्ध है कि- ब्रह्मांड का कंकर-कंकर, शंकर है, जो भयंकर भी है और दयालु भी। शिव का अर्थ है- ई+शव=ईश्वर निराकार ओर शव साकार। यदि ई शब्द हटा दे तो केवल शव बचता है ओर पंचमहाभूतों यानी तत्वों में मिल जाता है। भोलेनाथ जगत की आत्मा और धड़कन है।
शिव ही सब शरीरों में रम रहा है।
महान महर्षियों की महानता….
सप्त ब्रह्मर्षि देवर्षि, महर्षि, परमर्षय:।
कण्डर्षिश्च श्रुतर्षिश्च राजर्षिश्च क्रमावश:।।
अर्थात – ¶~ ब्रह्मर्षि, ¶~ देवर्षि, ¶~महर्षि, ¶~ परमर्षि, ¶~ काण्डर्षि, ¶~ श्रुतर्षि और ¶~ राजर्षि। वैदिक काल में ये 7 प्रकार के ऋषिगण होते थे।
सभी सप्तऋषि भोलेनाथ के कठोर उपासक थे। इन सात ऋषियों ने भोलेनाथ के अलग-अलग 1008 नाम लिखे। ऐसे महादेव के कुल नाम 90000 हजार से भी ज्यादा उपलब्ध ग्रन्थ-शास्त्रमत हैं। दुनिया को बस इतना ज्ञात है कि- शिव सहस्त्रनामावली में भोलेनाथ के केवल1008 नाम हैं।
प्रतीक शास्त्र के हिसाब से-बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि सृष्टि के हरेक अस्त्र-शस्त्र-अस्त्र, सुदर्शन चक्र, पशुपात, त्रिशूल, अणु-परमाणु, यन्त्र-तन्त्र-मन्त्र, वेद-आयुर्वेद, ज्ञान-विज्ञान, आकाश, अग्नि, जल, वायु और पृथ्वी इन पंचमहाभूतों के आदि निर्माता भगवान शिव ही हैं। सबसे पहले यह ज्ञान महादेव ने आदिशक्ति माँ भगवती को दिया और कोई रहस्यमयी ज्ञान अपने गण नन्दीनाथ को दिया। अपने देखा होगा कि जंगल, गाँव आदि स्थानों पर शिवलिंग के समक्ष नन्दी अवश्य बैठे रहते हैं। भले ही उनके पुत्र, पत्नी पार्वती या गौरी बैठी हो या नहीं।
ये भौतिक दुनिया पँचमहाभूतो से बनी हुई और ये पंचमहाभूत तीन तत्वों से मिलकर बने हुए हैं।
यही ब्रह्मा-विष्णु-महेश कहे जाते हैं। इन तत्वों को गॉड/GOD भी कह सकते है।
!- सत्व अर्थात -न्यूट्रॉन,
!!- तमस यानि -इलेक्ट्रॉन तथा
!!!- रजस मानते हैं -प्रोटोन को।
आदि-अनन्त, अविनाशी, अजन्मा, त्रिकालदर्शी, त्रिलोचन, त्रिलोकीनाथ, त्रियोदशांग, त्रिगुणात्मक, त्रिनागेश्वरम, त्रिदेव, त्रिदोष, तृवंग, त्रयस, साकार-निराकार, अखण्ड ऊर्जा, योगी-भोगी, जन्म-मृत्यु से परे, नियंता, नियमरहित नित्य नए नाटक करने वाला नटराज। सम्पूर्ण ब्रह्मांड, जड़,चेतन स्वर्ग ,नरक सदाशिव से ही उत्पन्न हुआ है और अंत में सभी अपनी यात्रा पूरी करके वापस शिव में ही समाहित हो जाते हैं।
– साभार :
