पवन विजय : सैल्यूट यू वृंदा करात
अपनी विचारधारा के लिए बुलडोजर के सामने आने वाली वृंदा करात अभिनंदन की पात्र है। वामपंथियों के बड़े नेताओं का अपने कार्यकर्ताओं तथा एक दूसरे का साथ, हाथ कभी न छोड़ने का जज्बा अभिनंदन का पात्र है। ममता बनर्जी किस तरह से अपने एक अधिकारी के लिए धरने पर बैठ गयीं थी याद करिये फिर याद करिये अपने कार्यकर्ताओं को अकेले छोड़ कर भाजपा के लोग बंगाल में कैसे अपने घरों में घुसे रहे। फिर याद करिये कैसे एक जितेंद्र नारायण त्यागी को अकेला छोड़कर हिंदू हृदय सम्राट टाइप के लोग आर एस एस और भाजपा के दफ़्तरों में पंचायत और नगर निगम के टिकट बाँट रहे। फिर याद करिये दिल्ली में हनुमान मंदिर पर जब बुलडोजर भिजवाया गया था तो एक भी नेता जाकर सामने खड़ा हुआ था क्या?
वामपंथी अपनी ताकत जानता है इसलिए वह अकेला भी सबसे भिड़ जाता और सुरक्षित निकल जाता क्योंकि उसे पता है कि उसे सहायता हर हाल में मिलेगी और यहाँ का हाल यह कि भैया जी को फोन करिये तो भैया जी अभी पूजा में हैं, मीटिंग में हैं, सो रहे हैं, बाहर गए हैं। बात हो भी गयी तो भैया जी कहेँगे मुझसे पूछ कर लंका में कूदे थे। अगर भैया जी मूड में हैं तो फोन पर बिना पैसे वाली रणनीति समझा कर कहेँगे चढ़ जा बेटा सूली पर देश के बलिदान हो जा, हम तेरी तस्वीर पर चुनाव के दौरान फूल चढ़ा कर तेरे नाम का चौक बनवायेंगे।
जैसे भारत की पुलिस घटना के बाद आती है वैसे भैया जी बाद में आएंगे और हत भाग्य करते समय को कोसते छाती फाड़ कैमरे पर रोयेंगे कि यमराज भी एक बारगी चौंक पड़ें कि कार्यकर्त्ता की जगह इसे ही लाना था क्या।
दक्षिणपंथ के नेताओं के लालच और पाखंड वामियों से कई गुना ज्यादा है, उन्हें याद रखना चाहिए कि काठ की हांडी कई बार चूल्हे पर नही चढ़ पाती। क्या आप लोगों के पास वकील नही है? क्या आप लोगों के पास ताकत नही है? क्या आप लोगों के पास मीडिया नरेटिव नही है? क्या आप लोगों के पास पैसा नही है? क्या आप लोगों के पास बुद्धिजीवी लोग नही हैं? ध्यान रखिये एसी कल्चर आपका नाश कर देगा। वातानुकूलित कमरे से निकलिए नहीं तो पहचानने के काबिल भी नही रहेंगे।
साभार : पवन विजय
