विद्यासागर वर्मा : होली पर्व का उद्गम स्थान मुल्तान
कार के टायर, कूड़ा करकट, गंदे पेपर आदि दुर्गंध देने वाली वस्तुओं को पवित्र अग्नि में आहुति न दी जाए, तो उत्तम होगा।
i) ऐतिहासिक विवरण :
होली के पर्व का आरम्भ अविभाजित भारत के मुल्तान नगर से हुआ, परन्तु हिंसात्मक विभाजन के पश्चात, अब यह पाकिस्तान में है जहां प्राचीन प्रह्लादपुरी मंदिर के अवशेष ,1992 के बाद भीड़ द्वारा ध्वंस के पश्चात, खण्डहर के रूप में विद्यमान हैं।
आज रात को परिवार के साथ होलिका दहन के समय इस तथ्य से विस्मृत न रहें।
जो संस्कृति अपने इतिहास को भूल जाती है, उसे कभी माफ़ नहीं किया जाता। जो इतिहास को भूल जाते हैं, दुर्भाग्यवश उन्हें इसकी पुनरावृत्ति को भोगना पड़ता है।
कितने हिंदुओं ने मुल्तान में प्रह्लाद पुरी मंदिर का नाम सुना है ? मुल्तान, भारत के बृहद् मंदिरों में से एक भव्य आदित्य ( सूर्य ) मंदिर का स्थान रहा है, जिसे पहले मुहम्मद बिन कासिम ने तोड़ा और बाद में सन् 1026 में महमूद गज़नी ने पूर्णत: ध्वस्त किया।
मुल्तान का नाम संस्कृत के “मूल स्थान” शब्द से पड़ा है जिसका अर्थ है आदि स्थान, जिस में भव्य आदित्य (सूर्य) मंदिर था। मुल्तान की स्थापना हिरण्यकश्यप के पिता कश्यप द्वारा मानी जाती है। उनके नाम पर ही इसका नाम कश्यपपुर पड़ा।
जब चीनी बौद्ध तीर्थयात्री हूआन सेंग ( Hieun Tsang) समस्त भारत के भ्रमण पर आया; उसने सिन्धु क्षेत्र को पार किया ; मुल्तान प्रान्त पहुंचा जिस का वर्णन उसने ” मूलो-सन- पु- लु ” ( मूल स्थान पुर) के नाम से किया। हूआन सेंग ने ‘ आदित्य ( सूर्य) मंदिर ‘ की भव्यता का वर्णन किया, इसे एक सुप्रसिद्ध मंदिर बताया जहां अधिक संख्या में तीर्थयात्री आते थे।
ii) नरसिंह अवतार प्रतिमा ( पौराणिक कथा अनुसार )
जहां तक विस्मृत प्रह्लादपुरी मंदिर का प्रश्न है, जो होलिका दहन से सम्बन्धित है, इसका निर्माण हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद द्वारा विष्णु के अवतार , नरसिंह अवतार, की स्मृति में करवाया गया, जो प्रह्लाद की रक्षा के लिए स्तम्भ से प्रकट हुए।
यह मन्दिर आज खण्डहर के रूप में विद्यमान है। प्रह्लादपुरी मन्दिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा नरसिंह अवतार (आधा मानव, आधा सिंह) के रूप में स्थापित है।
अत: जब हम होलिका दहन के लिए अग्नि प्रज्वलित करते हैं, मुल्तान में होली के आदि स्थान के खण्डहर का स्मरण करना चाहिए ।
यही हमारे सभी भव्य मन्दिरों की कहानी है।
शारदापीठ से प्रह्लादपुरी मन्दिर तक, सभी खण्डहरों में, ध्वस्त अवस्था में हैं और यह इतिहास विस्मृत हो गया है, तथा इसे दुर्भाग्यवश हमे कभी पढ़ाया भी नहीं जाता।
iii) होलिका दहन का लाक्षणिक अर्थ :
होलिका लाक्षणिक अर्थ में हमारे अज्ञान, तृष्णा, अहंकार, लोभ, ईर्षा , क्रोध आदि का प्रतीक है जो हमारे अन्दर सदा पनपते रहते हैं। और हम नियमित रूप से अपनी तृष्णा, अहंकार, क्रोध, अवसाद, लोभ, ईर्षा को कम करने में प्रयासरत रहते हैं। इनका सामूहिक प्रभाव पवित्र आत्मा को जागृत करता है। बालकसम पवित्र स्वभाव हमारी अवांछनीय वृत्तियों को आच्छादित कर देता है।
होलिका दहन में हम अपनी सभी अपवित्रताओं को भस्म कर देते हैं। जब अपवित्रताएं नष्ट हो जाती हैं, हम अपने अन्दर निष्कपट बालक को पाते हैं। हमारे अन्दर का बालक दूसरे दिन होली का उत्सव रंगों को उड़ाने से मनाता है : धूलेति , जो पवित्रता और निर्दोषता का प्रतीक है।
भारत के सभी शत्रु भी इस होलिका की आग में दग्ध हो जाएंगे।
होलिका दहन की बधाई।
हुताशनी पूर्णिमा मंगलमय हो।
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ध्यानाकर्षण
मूल लेख अंग्रेज़ी में है जिसका लेखक अज्ञात है। उन्हें इसका श्रेय देते हुए तथा धन्यवाद करते हुए, इस लेख को, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण, हम यहां प्रसारित कर रहे हैं।
*इसे हमारा अवतारवाद तथा मूर्तिपूजा का अनुमोदन न माना जाए।*
iv) पौराणिक कथा : नरसिंह अवतार
हिरण्यकश्पु नामक राक्षस के वध के लिए, पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया। राक्षस को वर मिला हुआ था कि उसे न कोई मानव मार सकता है और न पशु। अतः विष्णु ने नरसिंह ( आधा नर और आधा सिंह) रूप में अवतार लिया। हिरण्यकशिपु अपने आपको ईश्वर समझता था। उसका पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था और उसने पिता को ईश्वर मानने से इन्कार कर दिया। खिन्न होकर हिरण्यकशिपु ने उसे मारने की ठानी।
हिरण्यकशिपु की बहिन होलिका को योग की कुछ सिद्धियां प्राप्त थीं।अग्नि की ज्वाला उसे जला नहीं सकती थी। योजना बनाई गई कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठ जाए । तत्पश्चात आग जला दी जाएगी और प्रह्लाद की मृत्यु हो जाएगी। दैवीय कृपा से होलिका जल कर मृत्यु को प्राप्त हुई और प्रह्लाद बच गया। तत्काल भगवान नरसिंह अवतरित हुए और हिरण्यकशिपु का वध कर दिया।
v) योग सिद्धि का दुरपयोग आत्मघाती :
योग की सिद्धियां आध्यात्मिक उत्थान की परिचायक होती हैं। इनका सदुपयोग परोपकार के लिए करना चाहिए अन्यथा यह साधक के लिए आत्मघाती सिद्ध होती है। यही इस घटना का मार्मिक संदेश है।
vi) यतो धर्मस्ततो जय: !
यह पर्व धर्म/सचाई की अधर्म/ बुराई पर विजय का प्रतीक है।
हर पर्व को मनाने का अभिप्राय , आत्मोत्थान होता है। अतः इस अवसर पर हमें अपने अन्दर आसुरी शक्तियों के दहन के लिए यजुर्वेद ( 40.16) के निम्न मंत्रांश के जाप से प्रार्थना करनी चाहिए :
” युयोध्यस्मज्जुहुरामेनो भूयिष्ठानन्ते नमsउक्तिं विधेम।”
हे प्रभो ! हम से कुटिलतायुक्त पाप कर्मों को दूर कीजिए ताकि हम श्रद्धापूर्वक आपकी भक्ति कर सकें।
vii) सामाजिक समरसता
यह पर्व सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है। जब अधर्म/ बुराई का नाश होता है तथा धर्म /अच्छाई का समाज में संचार होता है, सभी
आह्लादित होते हैं और एक दूसरे से प्रेम भाव से वर्ताव करते हैं।
इस संदर्भ में यजुर्वेद (36.18) का मंत्रांश है :
” मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे
मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे।”
हे प्रभो ! मै सभी प्राणियों को मित्रताभरे नेत्रों से देखूं
तथा हम मित्रतापूर्ण नेत्रों से देखें जाएं।
viii) होली का वैदिक स्वरूप :
हलिका उत्सव का वैदिक नाम ” वासन्ती नव सस्येष्टि ” है। इस समय नये अन्न उत्पन्न होते हैं। ईश्वर के धन्यवाद हेतु , इस दिन यज्ञ/ हवन किया जाता है और नये अन्नों की आहूतियां दी जाती हैं। केवल दो मंत्र यहां उद्धृत किये जाते हैं :
” ब्रीहयश्च मे यदाश्च मे माषाश्च मे तिलश्च मे
मुद्गाश्च मे खल्वाश्च मे प्रियङ्गवश्च मेsणवश्च मे
श्लामाश्च मे नीवारश्च मे गोधूमाश्च मे
मसूराश्च मे यज्ञेन कल्पताम्।।”
— यजुर्वेद (18.12) : देवता –धान्यदा आत्मा (परमात्मा)
अर्थात् परमात्मा ही चावल, अरहर, उड़द, मटर , तिल, मूंग ,नारियल, गेहूं, चने आदि का दाता है। उसका धन्यवाद करें, इन की यज्ञ में आहूति दें। इनका उत्पादन करके अपना और समाज का कल्याण करें।
” वाज: नोs अद्य प्रसुवति दानं
वाजो देवाॅं२sऋतुभि: कल्पयाति।
वाजो हि मां सर्ववीरं जनान
विश्वा s आशा वाजपतिर्जयेयम् ।।”
— यजुर्वेद (18.33) : देवता — अन्नपति: (अन्नवान्)
जैसे आज जो अन्न हमें समर्थ बना कर, दान देने के लिए प्रेरित करता है; जो अन्न विविध ऋतुओं में विद्वानों को दिव्य गुणों से समर्थ बनाता है; जो अन्न वीरों में शौर्य बढ़ाता है, मैं (अन्नपति) उन्हें और समाज को अन्न प्रदान करके, सभी दिशाओं में ख्याति प्राप्त करूं।
इस उत्सव पर यज्ञ के माध्यम से ईश्वर का धन्यवाद तथा परोपकार का संकल्प लिया जाता है।
viii) निष्कर्ष
होलिका दहन, एक पवित्र यज्ञ है, सभी को अपने घर से अच्छी हवन सामग्री, देशी/भीमसेनी कपूर, गुगुल,चंदन, गाय का उपला, आम की समिधा, रोली, अक्षत,लटजीरा/अपामार्ग की लकड़ी, आदि आदि रोगनाशक/स्वास्थ्य वर्धक सामग्री अग्नि में आहुति देनी चाहिए।
कार के टायर, कूड़ा करकट, गंदे पेपर आदि दुर्गंध देने वाली वस्तुओं को पवित्र अग्नि में आहुति न दी जाए, तो उत्तम होगा।
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होली की हार्दिक शुभ कामनाएँ
विद्यासागर वर्मा
पूर्व राजदूत
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