ध्रुव कुमार : सूर्यदेव ही भगवान विष्णु हैं और भगवान विष्णु ही सूर्यदेव हैं
जगतपिता व ब्रह्मंड के संचालक का शयन
ब्रह्मंड के चार महान बलों को धारण करने वाले व अपने तीन विशाल डगों से पृथ्वी, अंतरिक्ष और स्वर्ग को प्रतिदिन पार करने वाले वे महान विष्णु ही हैं जिन्होंने इस पूरे ब्रह्मंड को धारण किया हुआ है।
जिन महान विष्णु के तीन पगों में पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ है। श्रोतागण ऋग्वेद की ऋचाओं से उसी प्रकार उनकी स्तुति करते हैं जैसे वन में रहने वाले प्राणी वनराज सिंह की स्तुति करते हैं।
ऋग्वेद के अनुसार “वे महान विष्णु प्राकृतिक नियम ऋतं के रक्षक हैं। हम सब जगत के स्वामी, महापराक्रमी देवराज इंद्र के प्रिय अनुज व माता अदिति की संतान भगवान विष्णु की आराधना करते हैं….
जिन विष्णु की महानता व तेज से तीनों लोक प्रकाशित होते हैं । वे हमारे द्वारा तैयार किए गए इस सोमरस को ग्रहण करें। वे हम पर प्रसन्न हो।”
भगवान विष्णु की महिमा अपरंपार है ऋग्वेद की ऋचाओं में उनकी महानता का वर्णन है जिन्हें तीन पगों में पूरे ब्रह्मांड को नापने वाला कहा गया है और जिनकी महिमा का कोई अंत नहीं है।
वेदों में उन्हें माता अदिति का पुत्र कहा गया है और वे वज्रधारी भगवान इंद्र के सबसे प्रिय अनुज हैं। इसीलिए भगवान विष्णु को उपेंद्र भी कहा गया है।
वज्रधारी भगवान इंद्र ने सर्वप्रथम अपने प्रिय अनुज भगवान विष्णु को अपने साथ सोमरस पीने का अधिकार दिया तथा यज्ञ का भागीदार बनाया, परिणामस्वरूप उनकी शक्ति अत्यंत बढ़ गई।
यह भी वर्णन हैं कि महान विष्णु ने अपने भ्राता वज्रधारी इंद्र के साथ मिलकर अनेक युद्ध किए और दैत्यों का संहार किया।
यह भी महत्वपूर्ण है कि ऋग्वेद में सूर्यदेव को भी तीन पगों में पूरे ब्रह्मंड को नापने वाला कहा गया है साथ ही सूर्यदेव के घोड़ों का नाम “हरि” बताया गया है।
वास्तव में सूर्यदेव ही भगवान विष्णु हैं और भगवान विष्णु ही सूर्यदेव हैं। वेदों की ऋचाओं को पढ़ने से यह बात स्प्ष्ट होती है कि सूर्यदेव जो तीनों लोकों में अपनी सप्तरश्मी से प्रकाशित हैं और जिनकी महिमा तीनों लोकों में फैली हुई है वही भगवान विष्णु हैं।
वेदों पर भाष्य लिखने वाले शायण ने भी यही बताया है।वे भगवान विष्णु ही सूर्यदेव के रूप में जगत का पालन करते हैं, धर्म और प्राकृतिक नियमों ऋतं की रक्षा करते हैं, प्राणियों को जीवन देने वाले हैं।
वही भगवान विष्णु ही सूर्यदेव के रूप में मनु भी कहलाते हैं जिन्होंने सूर्यवंश की स्थापना की जिसमें भगवान श्रीराम का जन्म हुआ, वही विष्णु भगवान कृष्ण के रूप में ज्ञान देते हैं।
गीता में भगवान कहते भी हैं कि “यह ज्ञान मैं पहले भी दे चुका है सर्वप्रथम मैंने सूर्यदेव के रूप में इसे दिया था।”
आज असाढ एकादशी हैं अर्थात आज से जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु चार मास के लिए विश्राम करते हैं और जगत के संचालन का दायित्व महादेव को सौप देते हैं।
दरसअल यह एक वैज्ञानिक घटना का जनसमुदाय के लिए कहानियों के रूप में रूपांतरण भी है।
क्योंकि अब वर्षा ऋतु का आगमन हो गया है अर्थात अब चार माह तक भगवान विष्णु सूर्यदेव के रूप में बादलों की ओट में छिपने वाले हैं।
मेघों के चलते इन चार महीनों में सूर्यदेव का प्रकाश पूरी तरह पृथ्वी को प्राप्त नही होता है जिसके परिणामस्वरूप अनेक छोटे- छोटे जीव जंतु पैदा हो जाते हैं, अनेक प्रकार की बीमारियों का उदय होता है जो लोगों के लिए घातक होती है।
इसीलिए इन चार माह में विवाह आदि किसी भी प्रकार का शुभ कार्य वर्जित होता है।क्योंकि यह मौसम उनके लिए उचित नही होता है।
इस प्राकृतिक रहस्य को हमारे पूर्वजों ने एक रूपक के माध्यम से बताया ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे ग्रहण कर सकें।
और इस समय जब पृथ्वी को भगवान विष्णु की किरणों का अमृत नही मिलता है तो ऐसी परिस्थिति में इस जगत का संचालन कौन कर सकता है?
ऐसी परिस्थिति में इस जगत का संचालन वही कर सकता है जो इस जगत में हो अर्थात रुद्र या महादेव, जो ऊंचे पर्वतों पर निवास करते हैं और सभी जीव, जंतु, सर्प और विष आदि जिनके अधीन हैं। इसीलिए अब जगत का संचालन महादेव करेंगे।
देवशयनी एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएं।।
जगत पिता महान विष्णुदेव को शत शत नमन।।
नमो भगवते वासुदेवाय।।
